आज कुछ् टाईप नहीं कर पाई इस लिये एक कविता जो तहलका काँड पर लिखी थी आपके सामने रख रही हूँ पता नहीं इस काँड का क्या बना मगर इसके बाद तो काँड ही काँड दिखे कोई इस चक्रव्यूह के तोड पाया कि नहीं ये आप सब के सामने है
चक्रव्यूह (कविता )
चक्रव्यूह (कविता )
मेरे देश का प्रजातन्त्र्
कब से
तिल तिल कर मर रहा है
भ्रश्टाचार की आग मे
जल रहा है
देश के शासक
इसकी धक्कियाँ उडा रहे हैं
भूखे भेडियों की तरह खा रहे हैं
और आज जब
एक और अभिमन्यू ने
इन दुर्योधनों के चक्रव्यूह मे
सेँध लगायी
प्रजातँत्र् क बलात्कारी साँसदों की
काली करतूत टी वी पर दिखाई
देश की प्रजा ने
शर्म से सिर झुकाया
प्रजातँत्र भी ना सह पाया
लडखडाते हुये कराहा और बोला
अरे! है कोई अर्जुन् तो आये
मुझे इन दुर्योधनों के
चंगुल से बचाये
और मैं लाचार खडी देख रही हूँ
इसका हाहाकार व्यर्थ जायेगा
इस चक्रव्यूह को
कोई नहीं भेद पायेगा
फिर इतिहास
खुद को दोहरायेगा
और एक दिन
ये अभिमन्यूं भी मारा जायेग
kamaal ki soch
ReplyDeletekamaal ki nazar
kamaal ki kavita
kamaal hain kapilaji aap!
badhaai ...............
एक अभिमन्यु का शहीद होना लाखों अभिमंयुओं को जन्म देता है
ReplyDeletebhavuk rachana,bahut khub
ReplyDeletesaty ki ladhayi hai..
ReplyDeletekuch bhi ho..jeet to abhimanu pakshy ki hi hoti hai..
aur nishchay hi jeet hogi..
to bas gujarish hai abhimanu tayyar rahe ab kabhi bhi aise ladane ka vakt aaye to..
vicharon ka samagam..bahut sundar kavita..
badhayi
एक अभिमन्यु.............
ReplyDeleteसुंदर अभिब्यक्ति.
यह कविता आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी लिखे जाने के समय थी !
ReplyDeleteअभिमन्यु का मरना रण हार जाना नहीं। बलिदान कभी व्यर्थ नहीं जाता।
ReplyDeletebehtareen soch
ReplyDeleteबंहुत ही बेहतरीन रचना आभार्
ReplyDeleteबहुत खूब कहा, आज तो हर तरफ दुर्योधन ही खड़े हैं.
ReplyDeleteनिर्मला जी!
ReplyDeleteआपकी यह रचना पहले भी पढ़ी है।
बहुत सुन्दर रचना है। जितनी बार पढ़ो,
उतना ही आनन्द देती है।
बधाई!
सदैव समसामयिक.
ReplyDeleteहमारे देश का प्रजातंत्र कितनी बार ऐसे ही लहूलुःान हुवा है............. और शर्म की बात तो ये है की हमारे कर्णधार ही सबसे आगे होते हैं......... गहरी वेदना से लिखी मार्मिक रचना ..
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी सोच को दिखती यह कविता ...........बहुत ही सुन्दर भाव और क्या कहे ......बधाई
ReplyDeletedesh ke halat par chot karti kavita........magar abhimanyu kabhi mar ka rbhi nhi mara.........bas roop badal badal kar aata rahega aur ladta rahega.
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन लगी...एक अच्छी सोच के साथ
ReplyDeleteयदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
ReplyDeleteअभ्युत्थानम्धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।।
आपकी उम्दा सोच को दर्शाती एक बेहतरीन रचना!!!!
ReplyDeleteएक अभिमन्यु...
ReplyDeleteजबरदस्त सोच..एक बेहतरीन रचना!
pranam,
ReplyDeleteNet kharab hone ke karan aapse sampark nahi ho paaya....
...aapki kavita, kahani aadi ke baare main koi comment karna bhi chta muh badi baat hogi.
Main sooraj ko roshni nahi dikha sakta.
"इस चक्रव्यूह को
कोई नहीं भेद पायेगा
फिर इतिहास
खुद को दोहरायेगा"
Is kavita se ek pustak yaad ho aie "The alchemy of desire".
Koi samanta nahi hai par novel ka lekhak aur "telhalka" ka editor ek hi hai.
एक कामयाब अभिव्यक्ति
ReplyDeleteकड़वी सच्चाई भी ,व्यंग्य भी ,लाजवाब रचना
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