23 July, 2009

आज कुछ् टाईप नहीं कर पाई इस लिये एक कविता जो तहलका काँड पर लिखी थी आपके सामने रख रही हूँ पता नहीं इस काँड का क्या बना मगर इसके बाद तो काँड ही काँड दिखे कोई इस चक्रव्यूह के तोड पाया कि नहीं ये आप सब के सामने है

चक्रव्यूह (कविता )

मेरे देश का प्रजातन्त्र्
कब से
तिल तिल कर मर रहा है
भ्रश्टाचार की आग मे
जल रहा है
देश के शासक
इसकी धक्कियाँ उडा रहे हैं
भूखे भेडियों की तरह खा रहे हैं
और आज जब
एक और अभिमन्यू ने
इन दुर्योधनों के चक्रव्यूह मे
सेँध लगायी
प्रजातँत्र् क बलात्कारी साँसदों की
काली करतूत टी वी पर दिखाई
देश की प्रजा ने
शर्म से सिर झुकाया
प्रजातँत्र भी ना सह पाया
लडखडाते हुये कराहा और बोला
अरे! है कोई अर्जुन् तो आये
मुझे इन दुर्योधनों के
चंगुल से बचाये
और मैं लाचार खडी देख रही हूँ
इसका हाहाकार व्यर्थ जायेगा
इस चक्रव्यूह को
कोई नहीं भेद पायेगा
फिर इतिहास
खुद को दोहरायेगा
और एक दिन
ये अभिमन्यूं भी मारा जायेग


22 comments:

  1. kamaal ki soch
    kamaal ki nazar
    kamaal ki kavita

    kamaal hain kapilaji aap!

    badhaai ...............

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  2. एक अभिमन्यु का शहीद होना लाखों अभिमंयुओं को जन्म देता है

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  3. saty ki ladhayi hai..
    kuch bhi ho..jeet to abhimanu pakshy ki hi hoti hai..

    aur nishchay hi jeet hogi..
    to bas gujarish hai abhimanu tayyar rahe ab kabhi bhi aise ladane ka vakt aaye to..

    vicharon ka samagam..bahut sundar kavita..
    badhayi

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  4. एक अभिमन्यु.............
    सुंदर अभिब्यक्ति.

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  5. यह कविता आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी लिखे जाने के समय थी !

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  6. अभिमन्यु का मरना रण हार जाना नहीं। बलिदान कभी व्यर्थ नहीं जाता।

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  7. बंहुत ही बेहतरीन रचना आभार्

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  8. बहुत खूब कहा, आज तो हर तरफ दुर्योधन ही खड़े हैं.

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  9. निर्मला जी!
    आपकी यह रचना पहले भी पढ़ी है।
    बहुत सुन्दर रचना है। जितनी बार पढ़ो,
    उतना ही आनन्द देती है।
    बधाई!

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  10. सदैव समसामयिक.

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  11. हमारे देश का प्रजातंत्र कितनी बार ऐसे ही लहूलुःान हुवा है............. और शर्म की बात तो ये है की हमारे कर्णधार ही सबसे आगे होते हैं......... गहरी वेदना से लिखी मार्मिक रचना ..

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  12. बहुत ही अच्छी सोच को दिखती यह कविता ...........बहुत ही सुन्दर भाव और क्या कहे ......बधाई

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  13. desh ke halat par chot karti kavita........magar abhimanyu kabhi mar ka rbhi nhi mara.........bas roop badal badal kar aata rahega aur ladta rahega.

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  14. बहुत बेहतरीन लगी...एक अच्छी सोच के साथ

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  15. यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
    अभ्युत्थानम्धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।।

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  16. आपकी उम्दा सोच को दर्शाती एक बेहतरीन रचना!!!!

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  17. एक अभिमन्यु...


    जबरदस्त सोच..एक बेहतरीन रचना!

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  18. pranam,
    Net kharab hone ke karan aapse sampark nahi ho paaya....

    ...aapki kavita, kahani aadi ke baare main koi comment karna bhi chta muh badi baat hogi.
    Main sooraj ko roshni nahi dikha sakta.

    "इस चक्रव्यूह को
    कोई नहीं भेद पायेगा
    फिर इतिहास
    खुद को दोहरायेगा"

    Is kavita se ek pustak yaad ho aie "The alchemy of desire".
    Koi samanta nahi hai par novel ka lekhak aur "telhalka" ka editor ek hi hai.

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  19. एक कामयाब अभिव्यक्ति

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  20. कड़वी सच्चाई भी ,व्यंग्य भी ,लाजवाब रचना

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आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी प्रेरणा है।