09 July, 2009

अमर कवितायें (कविता )

कुछ कवितायें
कहीं लिखी नहीं जाती
कही नहीं जाती
बस महसूस की जाती हैं
किसी कोख मे
वो कवियत्री सीख् लेती है
कुछ शब्द उकेरने
भाई की कापी किताब से
जमीन पर उंगलियों से
खींच कर कुछ लकीरें
लिखना चाह्ती है कविता
बिठा दी जाती है
डोली मे
दहेज मे नहीं मिलती कलम
मिलता है सिर्फ
फर्ज़ो का संदूक
फिर जब कुलबुलाते हैं
कुछ शब्द उसके ज़ेहन मे
ढुढती है कलम
दिख जाता है घर मे
बिखरा कचरा,कुछ धूल
और कविता
कर्तव्य बन समा जाती है
झाडू मे और सजा देती है
घर के कोने कोने को
उन शब्दों से
फिर आते हैं कुछ शब्द
कलम ढूढती है
पर दिख जाती हैं
दो बूढी बीमार आँखें
दवा के इंत्ज़ार मे
बन जाती है कविता करुणा
समा जाते हैं शब्द
दवा की बोतल मे
जीवनदाता बन कर
शब्द तो हर पल कुलबुलाते
कसमसाते रहते हैं
पर बनाना है खाना
काटने लगती है प्याज़
बह जाते हैं शब्द्प्याज़ की कडुवाहट मे
ऐसे ही कुछ शब्द बर्तनों की
टकराहत मे हो जाते है
घायल
बाकी धूँए की परत से
धुंधला जाते हैं
सुबह से शाम तक
चलता रहता है
ये शब्दों का सफर्
रात में थकचूर कर
कुछ शब्द बिस्तरकी सलवटों
मे पडे कराहते
तोड देते हैं दम
पर नहीं मिलती कलम
नही मिलता वक्त
बरसों तक चलता रहता है
ये शब्दों का सफर
बेटे को सरहद पर भेज
फुरसत मे लिखना चाहती है
वीर रस मे
दहकती सी कोई कविता
पर तभी आ जाती है
सरहद पर शहीद बेटे की लाश
मूक हो जाते हैं शब्द
मर जाती है कविता
एक माँ की
अंतस मे समेटे शहादत
की गरिमा ऐसे ही
कितनी ही कवियत्रियों को
नहीं मिलती कलम
नहीं मिलता वक्त
नहीं मिलता नसीब
हाथ की लकीरों पर ही
तोड देती हैं दम
जन्म से पहले
जो ना लिखी जाती हैं
ना पढी जाती हैं
बस महसूस की जाती हैं
शायद यही हैं वो
अमर कवितायें


27 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना है.

    हिन्दी कुंज

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  2. बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है!

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  3. जो ना लिखी जाती हैं
    ना पढी जाती हैं
    बस महसूस की जाती हैं
    शायद यही हैं वो
    अमर कवितायें

    हकीकत बयान करती कविता के लिए बधाई।

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  4. aaj ki subah dhnya ho gayi ...
    waah
    waah
    bahut khoob
    apko bar bar badhaai !
    kavita ka hardik abhinandan !

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  5. सच ही तो कहा है ...यही है वो कविता

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  6. बहुत ही सुन्‍दर,गहरे भावों के साथ दिल को छूता हर शब्‍द बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये आभार्

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  7. atynt sundar kavita jo dil ko chhu jaye..

    sach kaha aapne amar kavita aise hi banati hai..jo mahsoos ki jati hai..

    aapki rachnaye itani sundar hoti hai ki sach kah raha hoon..baar baar padhane ka man karata hai..aur sabse badi baat ise dil se mahsoos karana padata hai kewal padhana hi paryapt nahi hai..

    bahut bahut dhanywaad

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  8. यही वह अफसाना है जिसे कोई गीत गा नही पाती क्योकि नज्मे बिना शब्द होती है जिन्हे फर्जो की सन्दूक से बाहर निकालने की कोशिश होनी चाहिये .........बहुत ही सही मुद्दा को शब्द देकर हमे कृतज्ञ कर दिया..............

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  9. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों से सजी यह रचना, आभार्

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  10. बहुत लाजवाब रचना. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  11. कमाल लिखा है ..औरत की स्थिती पर
    यथार्थ बयां करती असाधारण ,उत्तम , अद्भुत रचना !!

    नमन है आप को और आपकी रचना को !!

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  12. सही है
    सबको कलम कब मिली है?
    बहुत सुन्दर रचना

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  13. बहुत बढ़िया सुन्दर रचना आभार !

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  14. आप की यह अमर कवितये सच मै बहुत अमर लगी.
    धन्यवाद

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  15. sach kaha ......... jindagi की kitaab padhte huve शब्द kho jaate हैं.......... bas mahsoos ही kiye jaate हैं........dard में dhal jaate हैं.........सीधे दिल में उतर gayee ...... आपके शब्द , आपका गहरा एहसास लाजवाब है

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  16. अमर कविताऐं..बिल्कुल सही कहा...एक बेहतरीन रचना.

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  17. kavita ka khav dil ko choo gaya........sach kuch kavitayein aise hi dam tod deti hain jo amar ho jati hain..

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  18. आपकी इस रचना को पढ़कर हम तो हथप्रभ हैं. तारीफ करने के लिए भी उपयुक्त शब्द नहीं मिलते और यदि मिलते भी हैं तो पर्याप्त नहीं लगते. आपको नमन. आभार.

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  19. बहुत सुन्दर अमर कवितायें ऐसी ही लिखी जाती है

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  20. वाहवाही तो अनेक रचनाओं में दी है. लेकिन आपकी इस रचना को अंतर्मन से वाहवाही देता हूँ. प्रशंसा के शब्द नही खोज पा रहा हूँ. इन दो टिप्पणियों को उधृत करना चाहूंगा -

    कमाल लिखा है ..औरत की स्थिती पर
    यथार्थ बयां करती असाधारण ,उत्तम , अद्भुत रचना !!

    नमन है आप को और आपकी रचना को !!
    ***********************************
    आपकी इस रचना को पढ़कर हम तो हथप्रभ हैं. तारीफ करने के लिए भी उपयुक्त शब्द नहीं मिलते और यदि मिलते भी हैं तो पर्याप्त नहीं लगते. आपको नमन. आभार.

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  21. bhut sundar schhe bhav .kisi jmane me ase hi hota tha subh subh kitne hi vichar ckle belan aur kapde dhone ke sangeet me kho jate the .
    fir khote hi rheprivar ki prathmiktao me .apne yade taja kar di.
    dhnywad

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  22. YAHEE KAHUNGAA KI AAPKEE RACHNA
    " AMAR KAVITAYEN" DIL MEIN UTAR
    GAYEE HAI.

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  23. manaviya samvedanaawon me stri jaati ke liye jo ek mukamaal kavita aur rachanaa ho skati hai wo aapni kahi hai ... bakhubi apna hak to adaa kiya hi hai aapne saath hi sabhi ko is kavita ke jariye ek sikh bhi di hai aapne....



    arsh

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  24. जो ना लिखी जाती हैं
    ना पढी जाती हैं
    बस महसूस की जाती हैं
    शायद यही हैं वो
    अमर कवितायें
    बहुत ही सुन्‍दर....

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आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी प्रेरणा है।