16 June, 2009

ये कविता मेरे शहर के गौरव मेरे पडोसी के बेटे और मेरेहाथों मे खेले शहीद कैप्टन अमोल कालिया की शहादद पर उनके माता पिता के लिये लिखी गयी थी1उनके शहादत दिवस पर आपके सामने प्रस्तुत कर रही हूँ1

कैसे गाऊँ (कविता )

दो पँछी अन्जान दिशा से आये
एक डाल पर बैठ सपने सजाये
सुन्दर सा इक महल बनायेंगे
इसमे प्यार के फूल खिलायेंगे
दोनो का सपना पूरा हुआ
इक डाल पे महल सजा लिया
दोनो इक दूजे मे खो गयी
दुनियाँ से बेखबर हो गये
प्यार के गुलशन महक उठे
आशियाँ मे नन्हें चहक उठे
जैसे ही उनका प्यार बढा
वैसे ही घर संसार बढा
खुशी खुशी बच्चों को पाला पढाया
फिर सरहद पर जा बिठाया
दोनो खुश थे खुश था देश
मन मे कभी ना आया खेद
पर दुश्मन को उनकी खुशी ना भायी
कारगिल से इक आँधी आयी
दुश्मन उनकी सरहद मे था आया
दानवता का नंगा नाच दिखाया
सर पे बाँध कफन बच्चे दुश्मन पर टूट पडे
सीने पर गोली खाकर भी ना पीछे हटे
दुश्मन को सरहद से मार भगाया
खुद शहीद हुये अमरत्व पाया
जब माँ बाप ने देखी थीं लाशें
दुख से बरस पडी थीं आँखे
उनके आशियाँ की महक ना रही
उनके नन्हों की चहक ना रही
दोनो के दुख का अन्त ना कोई
बाप भी रोया माँ भी रोई
कहो शहादत या कुर्बानी
उनकी आँख से छलके पानी
कौन सुनेगा बातें उनके दुख की
फिर किसी ने ना उनकी सुध ली
दोनो को अब कुछ ना भाये
भाग्य की लिखी को कौन मिटाये
कैसे कुरबानी के गीत सुनाउँ
कैसे विजय अभियान मनाऊँ

21 comments:

  1. मंत्रमुग्ध कर देने वाली रचना है

    ReplyDelete
  2. निर्मला जी,
    बहुत ही हृदयस्पर्शी कविता लिखी है आपने, मेरी और मेरे परिवार की ओर से स्व. कैप्टन अमोल कालिया को भाव-भीनी श्रधांजलि अर्पित करती हूँ, हमें उनकी शहादत पर नाज़ है, अपने मन के उदगार हम तक पहुँचाने के लिए आपका आभार मानती हूँ
    सविनय
    स्वप्न मंजूषा
    http://swapnamanjusha.blogspot.com/

    ReplyDelete
  3. दिल को choo गयी.abhar.

    ReplyDelete
  4. स्व अमोल समेत देश पर मर-मिटने वाले सारे शहीदो को सलाम्।रूला दिया आपने।

    ReplyDelete
  5. हृदयस्पर्शी...वजह भावुक कर गई!!

    ReplyDelete
  6. नमस्कार निर्मला जी मैं आप की कविताओ का बहुत बड़ा समर्थ हूँ आप की कविताओ पर कमेन्ट करने की मेरे औकात नहीं , लेकिन इस बार आप ने रुला देने वाली कविता लिख कर कारगिल के जख्म फिर हरे कर दिए कितने भारत माँ के लाल सो गए मरू नीद और कितने माँ बाप के सरे ख्वाब ख़तम हूँ गए कितनी बहने बिना भाई के और कितनी पत्निया बिना विधवा हो गयी बड़ा भिवत्स है ये मेरे सादर सम्मान और और आदर शहीदों के परीवारो के लिए है
    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084

    ReplyDelete
  7. पक्षियों के बहाने आपने बडी बात कह दी। बधाई।

    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

    ReplyDelete
  8. निर्मला जी भावुक कर दिया आपने....हम अपने शहीदों को कितनी जल्दी भूल जाते हैं...उनको हमारी श्रद्धांजलि...कविता सचमुच रुलाने वाली है..

    ReplyDelete
  9. bilkul sahi likha hai...meri to aankhein bhar aayi

    ReplyDelete
  10. hridyasparsi rachana jisame ek puri kahani hai .......jisame bhagat singh jaisa ek sapoot bhi hai.....bahut sundar .......aapke bhawo ko jaanane ke baad aapki kawita
    .....mano khushaboo aa jaatee hai.

    ReplyDelete
  11. बढ़िया कविता।
    इस अमर शहीद को मेरी भी श्रद्धांजलि।

    ReplyDelete
  12. भीतर तक उतर गई आपकी यह रचना।देश की खातिर जिन परिवारों के जवान शहीद होते हैं उन परिवारो को उन के जाने के बाद कैसा लगता रहता है यह सोच कर ही मन काँप जाता है।हम देशवासी कभी भी उन शहीदों का कर्ज नही चुका सकते।

    ReplyDelete
  13. इस ह्रदयस्पर्शी रचना को पढ़ कर निः शब्द हूँ............... सलाम है ऐसे वीरों को जिनको कुर्बानी हमें चैन की नींद सोने देती है......

    ReplyDelete
  14. निर्मला जी,

    शहीद अमोल कालिया और उनके तमाम साथी जो शहीद हुये हैं उन्हें मेरी विनम्र श्रृद्धांजलि।

    कृतज्ञ हैं हम उनकी कुर्बानी के।

    सलाम!!

    मुकेश कुमार तिवारी

    अंततः भावुक कर ही दिया ना आपने.....

    ReplyDelete
  15. shaheed ko bhavpurn shradhanjali ke saath, aapki lekhni ko naman, aapke vicharon ko naman.

    ReplyDelete
  16. बहुत मार्मिक रचना है आपकी निर्मला जी...साहिर की लिखा ये गीत याद आ गया: " खुदा-ऐ-बरकत तेरी ज़मीं पर ज़मीं की खातिर ये जंग क्यूँ है..."
    नीरज

    ReplyDelete
  17. एक सांस मै आप की यह पुरी कविता पढ गया, बहुत ही सुंदर....... लेकिन जब मां बाप की नजर से देखे तो मेरे पास कोई शव्द नही बचता.
    इन शहीदो को जो हमारे लिये अपनी जान देते है सलाम

    ReplyDelete
  18. शहीदों के चितावों पे लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मरने वालों का यही बाकी निशाँ होगा...

    इतनी मार्मिक कविता आपने लिखी के कुछ कहा बनता नहीं बस मूक हूँ और नाम आँखों से अपने तरफ से शराधंजी अर्पित करता हूँ...

    अर्श

    ReplyDelete
  19. बेहद भावभीनी कविता.
    _______________________________
    मेरे ब्लॉग "शब्द-शिखर" पर भी एक नजर डालें तथा पढें 'ईव-टीजिंग और ड्रेस कोड'' एवं अपनी राय दें.

    ReplyDelete
  20. very nicely written and a tribute to all the parents who have lost their brave sons in war....you are a great poetess and writer!

    ReplyDelete

आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी प्रेरणा है।