09 May, 2009

इंद्र धनुष

रोज़ कितने वायदे करते
कसमे खाते
तुम कहते
जो चाहोगी
ले आऊँगा
मै केहती
तारे तोड लाना
इन अंतहीन वायदों मे
भूल जाते एक वायदा
पल पल साथ निभाने का
इंद्रधनुष की चाह मे
चल देते विदेश
मुझे छोड कर
घर
और छूट जाते
जीवन के कुछ
सुहाने पल
जवानी के
हसीन ख्वाब
प्रिय छोडो अब
इस मृ्गतृ्ष्णा को
क्यों ये पल भी गवायें
जो पास है उसे
क्यों ठूकरायें
आओ
अपने छोटेसे
घर की
छत के नीचे
एक दूसरे की
बाहों मे
अपनी साँसों के
इंद्रधनुष
महका लें
इस छोटे से जीवन के
बाकी पल
अपने बना लें

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना. उसकी भी क्या गलती है, तारे तोड़ने में ही जीवन बीत जाता है.

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  2. itne khubsurat jajbaat aur bhav ... ufff kamaal ka likhaa hai aapne kitne chhote se mahsusiyat ko aapne kitna tawajjo diya hai jise log amuman gaur nahi karte...kya karine se aapne apna hak aadaaa kiya hai ... is kavita pe to kya kahun lekhani ko salaam aapke


    arsh

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  3. आओ
    अपने छोटेसे
    घर की
    छत के नीचे
    एक दूसरे की
    बाहों मे
    अपनी साँसों के
    इंद्रधनुष
    महका लें
    इस छोटे से जीवन के
    बाकी पल
    अपने बना लें

    सकारात्मक सोच की सुंदर रचना.....!!

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  4. जीवन है तो चूहा दौड़ भी रहेगी और तारे तोड़ने की मजबूरी भी लेकिन वक्‍त नहीं रुकता। अच्‍छी अभिव्‍यक्ति।

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