26 May, 2009

( कविता )

तुझे ढूँढाते रहे
तेरे साथ दिवाली थी घर आँगन क्या
मेरे दिल के दिये भी जलते रहे
तेरे बाद दिवाली पे किसी कोने में
इक छोटी सी किरण को तरसते रहे

तू मेरे घर का चिराग था
तेरे दम से था ये घर रोशन्
तेरे बाद जरा सी खुशी के लिये
दूसरों का मुँह तकते रहे

तेरे देश मे दिवाली पे
यूँ दिये जलते नहीं क्या
हम उठा के मुँह सारी रात
आसमाँ मे तेरा घर ढूँढते रहे

ऎ खुदा इक माँ पे तो रहम खाया करो
उसके चिराग को दिवाली पे तो जलाया करो
इसी इन्तज़ार मे अंधेरी ज़िन्दगी के
सहकते से पहर कटते रहें

12 comments:

  1. ek maa ke dil ko rakh diya aapne yahaan ....bahut achchhi rachna

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  2. "उसके चिराग को दीवाली पे तो जलाया करो" बहुत सुन्दर

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  3. निर्मला जी,

    एक माँ की पीड़ा को खूब उभारा है, अगर कोई दिल से पढे और डूब के पढे तो मैं यह मानता हूँ कि आँखें नम हो जायेगी, इस दर्द को बहुत करीब से महसूस किया है।

    यह बंद मुझे कविता की जान लगा :-

    तू मेरे घर का चिराग था
    तेरे दम से था ये घर रोशन्
    तेरे बाद जरा सी खुशी के लिये
    दूसरों का मुँह तकते रहे


    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  4. nirmala ji
    maa ke dil ka dard aapne kavit amein bakhubi ubhara hai.......bahut hi dardbhari rachna

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  5. निर्मला जी आपने इतनी खूबसूरती से एक माँ के दर्द को लिखा है कि आँखें नम हो गई और बहुत ही दर्दभरा कविता लिखा है आपने!

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  6. माँ के दर्द को रचना में उतारा है आपने............. मन में अनायास ही पीडा का आभास होने लगता है............

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  7. माँ के ह्रदय में तो वह चिराग हमेशा जलता रहेगा.

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  8. बहुत सुंदर भाव लिये है आप की कविता.
    धन्यवाद

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  9. वैसे तो माँ का ह्रदय वैसे हिन् बहुत कोमल होता है, पर आप माँ के मनोभावों को ज्यादा कोमलता से दर्शाती हैं.

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  10. बहुत भावपूर्ण रचना है. माँ शब्द अपने आप में महाकाव्य है.

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  11. भाव भरी सुन्दर रचना के लिए बधाई।

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