14 April, 2009

गज़ल


मेहरबानियों का इज़हार ना करो
महफिल मे यूँ शर्मसार ना करो

दोस्त को कुछ भी कहो मगर
दोस्ती पर कभी वार ना करो

प्यार का मतलव नहीं जानते
तो किसी से इकरार ना करो

जो आजमाईश मे ना उतरे खरा
ऐसे दोस्त पर इतबार ना करो

जो आदमी को हैवान बना दें
खुद मे आदतें शुमार ना करो

इन्सान हो तो इन्सानियत निभाओ
इन्सानों से खाली संसार ना करो

कौन रहा है किसी का सदा यहां
जाने वाले का इन्तज़ार ना करो

मरना पडे वतन पर कभी तो
भूल कर भी इन्कार ना करो

पाप का फल वो देता है जरूर
फिर माफी की गुहार ना करो

12 comments:

  1. कौन रहा है किसी का सदा यहां
    जाने वाले का इन्तज़ार ना करो
    ........ बहुत सुंदर पंक्तियाँ।

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  2. प्रेरणादायी ग़ज़ल. आभार..

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  3. पाप का फल वो देता है जरूर
    फिर माफी की गुहार ना करो
    बेहतरीन ग़ज़ल...बधाई...
    नीरज

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  4. HAR EK SHE'R APNE AAP ME MUKAMMAL HAI BAHOT HI BADHIYA GAZAL PADHWAAYA AAPNE... BADHAAYEE SWIKAAREN... MERI GAZAL PE AAPKA PYAR AUR AASHIRVAAD WAANCHHANIYA HAI...

    ARSH

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  5. अच्‍छे विचारों से युक्‍त यह रचना बहुत ही सुंदर लगी।

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  6. सभी शेर उत्तम हैं .साधुवाद.

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  7. जो आदमी को हैवान बना दें
    खुद मे आदतें शुमार ना करो
    wah, mujhe yah sher sabse jyada pasand aaya..
    कौन रहा है किसी का सदा यहां
    जाने वाले का इन्तज़ार ना करो
    yanha thoda saa khatka vo yah ki JAANE VAALE KAA INTZAAR hota he YAA AANE VAALE KAA???
    kintu baavzood iske aapki gazal kasoti par khari utarti he.
    sadhuvaad

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  8. बहुत सुन्दर ग़ज़ल प्रस्तुत की है, मन को भा गयी

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  9. aise sher kah ke dil pe dhar na karo!

    bahut khub!

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