11 April, 2009

गज़ल्


ज़िन्दगी ये कैसा दगा दिया तुम ने
आदमी से आदमी ज़ुदा किया तुमने

चौपालो की रोनक छर्खों की गुंजन
नये दौर मे सब कुछ भुला दिया तुमने

सावन के झूले वो पनघट की सखियां
जीने की अदा को मिटा दिया तुमने

सजना की चिठी वो प्यारा कबूतर
भूला सा अफसाना बना दिया तुमने

तुम्हें थामने को जब भी उठा आदमी
पिलाया जाम और सुला दिया तुमने

कौन किस से किस की शिकायत करे
हर रिश्ते मे जहर मिला दिया तुमने

जीने का सलीका खुद को नहीं आया
फिर भी दूसरों से गिला किया तुमने


7 comments:

  1. HAALAKI IS GAZAL KE SAARE HI SHE'R BADHIYA BAN PADE HAI MAGAR IS SHE'R KE KYA KAHANE...
    कौन किस से किस की शिकायत करे
    हर रिश्ते मे जहर मिला दिया तुमने

    BAKHUBI NIBHAYAA APKA HAK AAPNE IS SHE'R KE SAATH.. BAHOT BAHOT BADHAAYEE AAPKO..


    ARSH

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  2. कौन किस से किस की शिकायत करे
    हर रिश्ते मे जहर मिला दिया तुमने


    वाह!! सुन्दर गज़ल!!

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  3. बेहद खूबसूरत भाव हैं ...और शेर बहुत अच्छे लगे

    जिंदगी की यही रीत है ....
    हर एक के साथ ये ऐसा ही करती है

    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

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  4. बड़ी खूबसूरत गज़लें. बड़ी विसंगति हो गयी. हम आपकी रचना को पढने के पहले से गुण गुना रहे थे एक पाकिस्तानी गायक द्वारा गया गीत "तू जो नहीं है तो कुछ भी नहीं है, ये माना कि महफिल जवां है हसीं है"

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  5. जीने का सलीका खुद को नहीं आया
    फिर भी दूसरों से गिला किया तुमने

    बहुत सारी भावो को एक साथ बडी ही खुबसुरती से पिरोया है .....................एक एक पंक्तिया किसी माला की मोती लगती है............

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  6. ज़िन्दगी ये कैसा दगा दिया तुम ने
    आदमी से आदमी ज़ुदा किया तुमने

    sabhi sher khubsurat. bahut badhai.

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  7. आदरणीय निर्मला जी ,
    बहुत गहरी भावपूर्ण गजल ..खासकर इन पंक्तियों ने दिल को छू लिया...

    कौन किस से किस की शिकायत करे
    हर रिश्ते मे जहर मिला दिया तुमने
    जीने का सलीका खुद को नहीं आया
    फिर भी दूसरों से गिला किया तुमने
    पूनम

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