05 February, 2009


बचपन की कोई याद


मखमली खेतों पर
सुसज्जित हिमकिरणों की
अरुणाइ ने फिर
लालसा जगाई है
पावन पवन
निर्मल मधुर
झरनों की कलकल
केसर की भीनी महक
मुझे फिर खींच लायी है
बचपन की कोई याद
आज गाँव की देहरी पर आई है
शरद पूर्णिमा मे
ठिठुरते हंसते होंठ
आँखों की चंचलता पर
पलकों ने रोक लगायी है
मुझे देख तेरेगालों पर
लालिमा सी छाई है
बच्पन की कोई याद आज
गाँव की देहरी पर आई है
कुचालें उन्मुक्त हिरणी जैसी
रिमझिम बूँदों से भीगा
बदन लिये
मेरे सामने आयी है
तेरी काली जुल्फें देख
कली घटा शरमाई है
बच्पन की कोई याद आज
गाँव की देहरी पर आई है
मुझे देख शर्माना
छलावा बन छुप जाना
कभी तिड बगीचे से
आम अम्रुद जामुन खाना
मुझे लग पेड के पीछे से
निकल मेरे सामने आई है
फिर अपनी कल्पना पर
आँख मेरी भर आई है
बच्पन की कोई याद
आज
गाँव की देहरी पर्
आई है
आज
अतीत और वर्तमान में
समन्वय नही बिठा पाऊँगा
एक अभिलाषा एक लालसा
फिर वैसे ही ले जाऊँगा
शायद फिर ना आ पाऊँगा
तुझे क्यों नहीं आज्
याद मेरी आयी ह
जीवन संध्या मे
ये कैसी
रुसवाई ह
वचपन की कोई याद
आज गाँव की देहरी पर आई है !!

10 comments:

  1. बच्पन की कोई याद आज
    गाँव की देहरी पर आई है

    bahut sundar....

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  2. bahut sundar...


    ___________________
    http://merastitva.blogspot.com

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  3. बेहतरीन.ऐसी कितनी यादें संजोये रहते हैं हम.सब. आभार.

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  4. बचपन में स्मृति पर अक्षर,
    जब अंकित हो जाते हैं ।
    उन यादों को ताजा कर,
    तन-मन झंकृत हो जाते हैं।

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  5. so very nostalgic...
    thanks for making us read this....

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  6. बच्पन की कोई याद आज
    गाँव की देहरी पर आई है !!!



    वाह !!!!!!
    अतिसुन्दर ! लाजवाब ! ......पढ़कर मन मुग्ध हो गया....

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  7. बहुत ही सुंदर यादे ले कर आई आप की यह कविता.
    धन्यवाद

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  8. मुझे देख शर्माना
    छलावा बन छुप जाना
    कभी तिड बगीचे से
    आम अम्रुद जामुन खाना
    मुझे लग पेड के पीछे से
    निकल मेरे सामने आई है
    " वाह बचपन की सुंदर याद .........यूँ लगा बचपन जैसे सामने ही आ कर खडा हो गया"

    Regards

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  9. बचपन की यादें होती ही ऐसी है.....कभी भी दिल और दिमाग का दरवाजा खटखटा देती है.....पर इतनी सुंदर रचना सब थोडे ही कर पाते हैं ......बहुत सुंदर।

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  10. bahut achchhi kavita hai. aapki yah kavita dil ko chhu gayi.

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