(व्यंग)
इक दिन आधी रात को
जब लोग सो रहे थे
तो हमारे पडोसी रो रहे थे
हमारी पडोसन ने हमे आ जगाया था
हमने समाज सेवा का बीडा जो उठाया था
जाके देखा उनका बच्चा दर्द से रो रहा था
पती चद्दर तान के सो रहा था
हमे तरस आयासे
बच्चे को उठा अस्पताल पहुँचाया
बच्चा ठीक हुआ तो सब को चैन आया
सहेली ने पती को उठाते हुऎ
हमारी सेवा का ऎहसास कराया
ये सुन पति उबासी लेते हुये बोले
"माफ करना बहिनजी
आपको तकलीफ हुई कष्ट उठाना पडा
हमने पिछले जनम आपकी जो सेव की थी
उसका बदला इस तरह आधी रात को चुकाना पडा
तब पता चलाकि हम समाज सेवा से
लोगोंका कुछ नहीं संवर रहे हैं
हम तो बस पिछले जनम के
कर्ज ही उतार रहे हैं
bahut hi sundar vyang hai.
ReplyDeleteबहुत गंभीर बहुत तीखा व्यंग सरस रचना सार्थक भी
ReplyDeleteगंभीर तीखा व्यंग हैं
ReplyDeleteसटीक और करारा ।
ReplyDeleteगंभीर और तीखा व्यंग. एक सुंदर और सफल प्रयास.
ReplyDeleteधन्यवाद
अरे वाह.... एक बहुत सुंदर व्यंग ओर इस रुप मे.
ReplyDeleteधन्यवाद
"हम तो बस पिछले जनम के कर्ज ही उतार रहे हैं"
ReplyDeleteहमें बहुत हँसी आ गयी थी.,लड़के ने पूच ही लिया, क्या हो गया पापा. कहना पड़ा, कुछ नहीं बस पढ़ के देख लो. मज़ा आ गया. आभार.
इस रचना के माध्यम से बहुत ही गहरा एवं तीक्ष्ण व्यंग्य किया आपने.......
ReplyDeleteहम तो बस पिछले जनम के
ReplyDeleteकर्ज ही उतार रहे हैं
gajab ka badhiya vyangytmatmak rachana likh rahi hai . badhaai
क्या पता शायद इसे उतारते अगले जन्म के लिए कुछ कर्ज चढ़ा भी जायें तब आपकी सेवा हो लेगी. :)
ReplyDeleteवैसे सटीक कहा आपने.
bahut satik magar mazrdaar bhi:):) bahut khub
ReplyDeleteRespected Nirmala ji,
ReplyDeletebahut achchha vyangya likha hai apne .badhai.Blog par se Word Varification hata den to tippanee karta ko asanee rahegee.
Hemant Kumar
सटीक कहा जी !
ReplyDelete( वर्ड वेरीफिकेशन हटाकर गरीबों पर रहम करें )
chaliye kisito suruat karni hi thi,
ReplyDeletehum bhi pichle janm ka karj chuka sake ishvar hame itani shakti pradan kare :-)
bahut umda likha hai aapne..
अच्छा तो ऐसा है.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकरारा व्यंग्य किया है. आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आई, आपको पढ़ना अच्छा लगा. ब्लॉग का नाम बहुत खूबसूरत है...बीर बहूटी
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