20 January, 2009

(व्यंग)

इक दिन आधी रात को
जब लोग सो रहे थे
तो हमारे पडोसी रो रहे थे
हमारी पडोसन ने हमे आ जगाया था
हमने समाज सेवा का बीडा जो उठाया था
जाके देखा उनका बच्चा दर्द से रो रहा था
पती चद्दर तान के सो रहा था
हमे तरस आयासे
बच्चे को उठा अस्पताल पहुँचाया
बच्चा ठीक हुआ तो सब को चैन आया
सहेली ने पती को उठाते हुऎ
हमारी सेवा का ऎहसास कराया
ये सुन पति उबासी लेते हुये बोले
"माफ करना बहिनजी
आपको तकलीफ हुई कष्ट उठाना पडा
हमने पिछले जनम आपकी जो सेव की थी
उसका बदला इस तरह आधी रात को चुकाना पडा
तब पता चलाकि हम समाज सेवा से
लोगोंका कुछ नहीं संवर रहे हैं
हम तो बस पिछले जनम के
कर्ज ही उतार रहे हैं

17 comments:

  1. बहुत गंभीर बहुत तीखा व्यंग सरस रचना सार्थक भी

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  2. गंभीर तीखा व्यंग हैं

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  3. सटीक और करारा ।

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  4. गंभीर और तीखा व्यंग. एक सुंदर और सफल प्रयास.
    धन्यवाद

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  5. अरे वाह.... एक बहुत सुंदर व्यंग ओर इस रुप मे.
    धन्यवाद

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  6. "हम तो बस पिछले जनम के कर्ज ही उतार रहे हैं"
    हमें बहुत हँसी आ गयी थी.,लड़के ने पूच ही लिया, क्या हो गया पापा. कहना पड़ा, कुछ नहीं बस पढ़ के देख लो. मज़ा आ गया. आभार.

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  7. इस रचना के माध्यम से बहुत ही गहरा एवं तीक्ष्ण व्यंग्य किया आपने.......

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  8. हम तो बस पिछले जनम के
    कर्ज ही उतार रहे हैं
    gajab ka badhiya vyangytmatmak rachana likh rahi hai . badhaai

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  9. क्या पता शायद इसे उतारते अगले जन्म के लिए कुछ कर्ज चढ़ा भी जायें तब आपकी सेवा हो लेगी. :)

    वैसे सटीक कहा आपने.

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  10. bahut satik magar mazrdaar bhi:):) bahut khub

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  11. Respected Nirmala ji,
    bahut achchha vyangya likha hai apne .badhai.Blog par se Word Varification hata den to tippanee karta ko asanee rahegee.
    Hemant Kumar

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  12. सटीक कहा जी !

    ( वर्ड वेरीफिकेशन हटाकर गरीबों पर रहम करें )

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  13. chaliye kisito suruat karni hi thi,
    hum bhi pichle janm ka karj chuka sake ishvar hame itani shakti pradan kare :-)

    bahut umda likha hai aapne..

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  14. This comment has been removed by the author.

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  15. करारा व्यंग्य किया है. आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आई, आपको पढ़ना अच्छा लगा. ब्लॉग का नाम बहुत खूबसूरत है...बीर बहूटी

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