सरहद पर दुश्मन फुंकार रहा है
भारत को ललकार रहा है
सत्य अहिंसा माने ना वो
मानवता को जाने ना वो
अमरीका की खैरात पे जीना
फिर बेशर्मि से ताने सीना
बच्चे बूढे जवान उठो
झाँसी की संतान उठो
कह गये अपने बडे सयाने
लातों के भूत बातोंसे ना माने
जब गीदड भागे शेर की ओर
कौआ चले हंस की तोर
अंत समय आया समझो
करनी का फल पाया सम्झो
उसे दूध छठी का याद दिलाओ
उसको उसकी औकात बताओ
कर दो उसका बंटाधार
विपद पडे ना बारम्बार
माँ के दूध का कर्ज चुकाओ
अपना दम खम उसे दिखाओ
युवाशक्तिपुंज तुम से है आशा
पूर्ण करो भारत माँ की अभिलाषा
पाक पर तिरंगा फहरा दो तुम
फिर् इक इतिहास बना दो तुम् !!
इस युद्धोन्माद की क्या कीमत चुकानी पड़ेगी कभी सोचा है आपने? असहमति के लिये क्षमा चाहूंगा।
ReplyDeleteपूर्ण करो भारत माँ की अभिलाषा
ReplyDeleteओजस्वी कविता है, बधाई!
बाहुत अच्छा व सुन्दर लिखा है आपने
ReplyDelete---मेरा पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें
---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
देश प्रेम से भरपूर कविता है ।
ReplyDeletesunder kavita
ReplyDeleteबहुत हिम्मत है आपमें.....इस कविता में झलकता है।
ReplyDeleteओजस्वी अभिव्यक्ति!!!! कीमत तो अभी भी कम नहीं चुका रहे मगर किश्तों में..तो दर्द का अहसास कम है पर ब्याज??
ReplyDeleteNirmalaa ji
ReplyDeleteaapakaa aabhar jo aap fursat men thee tipiyane ka shukriyaa