धर्म करता है आन्तरिक प्राकृ्ति मानवता गुण सचेत शिव और मानव् हो जाता है एक साम्प्रदाय करता ह बाह्म अमानवता गुण सचेत शिव और आत्मा हो जाते हैँ अचेत और् ब्राह्मन्ड एक से अनेक् !!
".....और् ब्राह्मन्ड एक से अनेक्" सुंदर परिकल्पना. आभार. आश्चर्य है कि अभी तक किसी ने आपको सुझाव नहीं दिया कि टिप्पणियों के लिए वर्ड वेरिफिकेशन को समाप्त कर दें. इससे कोई लाभ नहीं है उल्टे टिपण्णी करने वालों को परेशानी का अनुभव होता है और बहुत सारे लोग तो टिपण्णी किए बगैर चले जाते हैं. कृपया इस ओर ध्यान दें.
Bahut sundar...!! ___________________________________ युवा शक्ति को समर्पित ब्लॉग http://yuva-jagat.blogspot.com/ पर आयें और देखें कि BHU में गुरुओं के चरण छूने पर क्यों प्रतिबन्ध लगा दिया गया है...आपकी इस बारे में क्या राय है ??
".....और्
ReplyDeleteब्राह्मन्ड
एक से अनेक्"
सुंदर परिकल्पना. आभार.
आश्चर्य है कि अभी तक किसी ने आपको सुझाव नहीं दिया कि टिप्पणियों के लिए वर्ड वेरिफिकेशन को समाप्त कर दें. इससे कोई लाभ नहीं है उल्टे टिपण्णी करने वालों को परेशानी का अनुभव होता है और बहुत सारे लोग तो टिपण्णी किए बगैर चले जाते हैं. कृपया इस ओर ध्यान दें.
बहुत ही सुंदर लिखा आप ने , शिव ओर मानव के बारे.
ReplyDeleteP.N. Subramanian जी की बात कबिले गोर है.
धन्यवाद
बहुत बढिया !
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा रचना है।बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteबिलकुल सही किया, अब ठीक है.
ReplyDeleteधन्यवाद
Bahut sundar...!!
ReplyDelete___________________________________
युवा शक्ति को समर्पित ब्लॉग http://yuva-jagat.blogspot.com/ पर आयें और देखें कि BHU में गुरुओं के चरण छूने पर क्यों प्रतिबन्ध लगा दिया गया है...आपकी इस बारे में क्या राय है ??
सुंदर रचना. मानव, शिव और ब्रह्माण्ड को एक में ही पिरो दिया आपने. सच कहा है. बधाई.
ReplyDeletekavita asimit roop se sundar hai...
ReplyDeletemeri hindi kavitao ki chhoti si koshish yaha se shuru hoti hai,
kripya aakar mera hausla barhayie
http://merastitva.blogspot.com