03 January, 2009


नारी की फरियाद
मैं पाना चाहती हूँ अपना इक घर
पाना चाहती हूं प्रेम का निर्झर
जहाँ समझी जाऊँ मैं इन्सान
जहाँ मेरी भी हो कोई पहचान
मगर मुझे मिलता है सिर्फ मकान
मिलती है् रिश्तों की दुकान
बाबुल के घर से पती कि चौखट तक
शंका मे पलती मेरी जान
कभी बाबुल् पर भार कहाऊँ
कभी पती की फटकार मैं खाऊँ
कोई जन्म से पहले मारे
को दहेज के लिये मारे
कभी तन्दूर में फेंकी जाऊँ
बलात्कार क दंश मैं खाऊँ
मेरी सहनशीलता का
अब और ना लो इम्तिहान
नही चाहिये दया किसी की
चाहिये अपना स्वाभिमान
बह ना जाऊँ अश्रूधारा मे
दे दो मुझ को भी मुस्कान
अब दे दो मेरा घर मुझ्को
नही चाहिये सिर्फ मकान्

02 January, 2009


कविता

मम्मी से सुनी उसके बचपन की कहानी
सुन कर हुई बडी हैरानी
क्या होता है बचपन ऐसा
उड्ती फिरती तितली जैसा
मेरे कागज की तितली में
तुम ही रंग भर जाओ न
नानी ज्ल्दी आओ ना
अपने हाथों से झूले झुलाना
बाग बगीचे पेड दिखाना
सूरज केसे उगता है
केसे चांद पिघलता है
परियां कहाँ से आती हैं
चिडिया केसे गाती है
मुझ को भी समझाओ ना
नानी जल्दी आओ ना
गोदीमेंले कर दूध पिलाना
लोरी दे कर मुझे सुलाना
नित नये पकवान खिलाना
अच्छी अच्छी कथा सुनाना
अपने हाथ की बनी खीर का
मुझे स्वाद चखाओ ना
नानी जल्दी आओ ना
अपना हाल सुना नहीं सकता
बसते का भार उठा नही सकता
तुम हीघोडी बन कर
इसका भार उठाओ ना
नानी ज्ल्दी आओ ना
मेरा बचपन क्यों रूठ गया है
मुझ से क्या गुनाह हुअ है
मेरी नानी प्यारी नानी
माँ जेसा बचपन लाओ न
नानी ज्ल्दी आओ न !!

01 January, 2009


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नववर्ष की मंगलकामनायें
नववर्ष् पर आप सब के ढैर सारीशुभ कामनायें
भगवान आप सब को वो हर खुशी व सम्पदा दे
जो भी उसके खजाने मैं है
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आज लिखना तो बहुत कुछ चाहती हूं मगर कुछ व्यस्तता के कारण लिख नहीं पाई.
फिर भी 2008 को धन्यबाद देना जरूरी समझती हूं. क्योंकि ये वर्ष मेरे जीवन का
सर्वोत्तम वर्ष है ! मेरी बेटियां ,योगिता हितेशिता मुदिता तथा दो अनमोल दामादोँ
धीरज शर्मा व सन्दीप रिखी के रूप मे पाँच हीरे पहले ही मौजूद थे पर भगवान
की कृ्पा से 2008 मे एक और नायाब हीरा ललित ,सूरी दामाद के रूप मे मिला,
जिसने मुझे आसमान पर बिठा दिया,जिसके फलसवरूप आप सब के सामने
बैठी हूँ, नहीं तो ,उपले झाड-झंखाड से चुल्हा जलाने वाली और घूँघट निकाल कर
नौकरी पर जाने वाली ओरत कहाँ इतनी हिम्मत कर पाती.

ये आज के दो शब्द् मेरे इन इन बच्चों तथा अक्षत, अगम [नाती] व अर्शिया
[नातिन] जिसने मुझे अमेरिका की सैर ,करवाई इन सब को समर्पित है.
आप सब का भी धन्यवाद मेरी खुशियों में शामिल हैं.

भगवान आप सब को भी ढेर सारी खुशियां दे !

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नववर्ष मंगलमय हो
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31 December, 2008


नासमझों को समझाना क्यों है
आजमाये को आजमाना क्यों है
जाने दो रूठ्ने वालों को
बंद दरवाजे पे जाना क्यों है
तकरार सदा दुख देती है
बीती बातों को दोहराना क्यों है
जिस्के जीवन मे सुरताल नहीं
उसे संगीत सुनाना क्यों है
जीत तुम्हारे दुआर खडी है
नींद का फिर बहाना क्यों ह
माना जीवन् कठिन डगर है
चुनौतियों से घबराना क्यों है
नववर्ष सौगातें लाया है
इस उत्सव को गंवाना क्यों है
ये जीवन अद्भुत सुन्दर है
इसको व्यर्थ गंवाना क्यों है



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नववर्ष के लिये सब को मंगलकामनायें
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30 December, 2008



रोज सोचा करते थे
वो सब के दोस्त?
मगर केसे?
अपनी ही किस्मत
क्यों धोखा खा गयी
जब गिरगिट को
देखा रंग बदलते
उनकी तरकीब
समझ आ गयी

मुझे अपने दिल के करीब रहने दो
न पोंछो आँख मेरी अश्क बहने दो
ये इम्तिहां मेरा है जवाब् भी मेरा होगा
दिल का मामला है खुद से कहने दो
जीते चले गये ,जिन्दगी को जाना नहीं
मुझे मेरे कसूर की सजा सहने दो
उनकी जफा पर मेरी वफा कहती है
खुदगर्ज चेहरों पे अब नकाब रहने दो
तकरार से कभी फासले नहीं मिटते
घर की बात है घर में रहने दो !!
ग़ज़ल

मुझे अपने दिल के करीब रहने दो
न पोंछो आँख मेरी अश्क बहने दो
ये इम्तिहां मेरा है जवाब् भी मेरा होगा
दिल का मामला है खुद से कहने दो
जीते चले गये ,जिन्दगी को जाना नहीं
मुझे मेरे कसूर की सजा सहने दो
उनकी जफा पर मेरी वफा कहती है
खुदगर्ज चेहरों पे अब नकाब रहने दो
तकरार से कभी फासले नहीं मिटते
घर की बात है घर में रहने दो !!

28 December, 2008

poem--- man manthan


कविता

मेरी तृ्ष्णाओ,मेरी स्पर्धाओ,
मुझ से दूर जाओ, अब ना बुलाओ
कर रहा, मन मन्थन चेतना मे क्र्न्दन्
अन्तरात्मा में स्पन्दन
मेरी पीःडा मेरे क्लेश
मेरी चिन्ता,मेरे द्वेश

मेरी आत्मा
, नहीं स्वीकार रही है
बार बार मुझे धिक्कार रही
प्रभु के ग्यान का आलोक
मुझे जगा रहा है
माया का भयानक रूप
नजर आ रहा है
कैसे बनाया तुने
मानव को दानव
अब समझ आ रहा है
जाओ मुझे इस आलोक में
बह जाने दो
इस दानव को मानव कहलाने दो

गजल

कुच कर दिखाने की कोशिश तो कर
जीवन बनाने की कोशिश तो कर
खुदा को कोसने से पहले
तकदीर बनाने की कोशिश तो कर
कब तक अन्धेरों से डरता रहेगा
दीया जलाने की कोशिश तो कर
दुश्मन कोई खुदा तो नहीं
उससे टकराने की कोशिश तो कर
मन मे जो चोर लिये बैठा है
उसे डराने की कोशिश तो कर
नाकामी को जीत का आगाज समझ
बिगडी बनाने की कोशिश तो कर
सच से बडा कोई धन नही
उसे भुनाने की कोशिश तो कर
असम्भव कुछ भी नहीं जहां मे
हिम्मत दिखाने की कोशिश तो कर
जीवन कितना अदभुत सुन्देर है
देख्नेने दिखाने की कोशिश तो कर