#अंतरराष्ट्रीय_हिन्दी_ब्लॉग_दिवस की आप सब को बधाई 1दूसरी पारी पहले की पारी से भी ऊंचाई पर जाये इसी कामना के साथ सब को शुभकामनाएं1
एक गज़ल
राहमतों की आस किस से कर रहा बन्दे यहां
आदमी कीड़ा मकोड़ा है धनी के सामने
ताब अश्कों की नदी की सह न पायेगा कभी
इक समंदर कम पडेगा इस नदी के सामने
प्यार में क्या हारना और क्या है निर्मल जीतना"
बस मुहब्बत हो न शर्मिंदा किसी' के सामने।
बहुत ही बेहतरीन रचना, बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
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बेहतरीन रचना...
ReplyDeleteअंतरराष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉग दिवस पर आपका योगदान सराहनीय है. हम आपका अभिनन्दन करते हैं. हिन्दी ब्लॉग जगत आबाद रहे. अन्नत शुभकामनायें. नियमित लिखें. साधुवाद
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
वाह ... Matle न ही ग़ज़ल की टोंन बना दी ... हर शेर लाजवाब ...
ReplyDeleteबहुत अच्छे. वाह..
ReplyDeleteAaj sach me mujhe bhi maza aa gaya aapki ye ghazal parh kar.. Behad umda.. Waah maate.. Bahut khoobsoorat.. Waaaaaaah..
ReplyDeleteAap jio hazaron saal..
नमन आपकी कलम को ,मंगलकामनाएं !
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से पिरोये एहसास ...
ReplyDeleteग़ज़ल की समझ नहीं मुझे पर क्या कहूँ कुछ कहना ही हो जब
ReplyDeleteएक से एक शेर पर मुझे चींटियों की अड़चनों वाला बेहतर लगा और सबके सामने
हर शेर उम्दा ...
ReplyDeleteबस ब्लॉग की रौनक ऐसे बनी रहे |
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है दीदी
ReplyDeleteहिन्दी ब्लॉगिंग की गति बनाये रखने हेतु आपका प्रयास सराहनीय है -शुभकामनाएं
ReplyDeleteख्वाहिशें मैं कैसे रखूं ज़िन्दगी के सामने
ReplyDeleteहसरतें दम तोड़ती हैं मुफलिसी के सामने..
शानदार!! पूरी ग़ज़ल ही गज़ब की है!
जय हिंद...जय #हिन्दी_ब्लॉगिंग...
ReplyDeleteबहुत ख़ूब निम्मो दी!! शानदार!
ReplyDeleteLajawab Ghazal didi...Zindabaad
ReplyDeleteNeeraj