गज़ल
तमन्ना सर फरोशी की लिये आगे खड़ा होता
मैं क़िसमत का धनी होता बतन पर गर फना होता
अगर माकूल से माहौल में मैं भी पला होता
मेरा जीने का मक़सद आसमां से भी बड़ा होता
न कलियां खिलने से पहले ही मुरझातीं गुलिस्तां में
खिज़ाओं का अगर साया न गुलशन पर पड़ा होता
करें क्या गुफ्तगू उससे चुरा लेता है जो से नज़रें
बताता तो सही मुझसे अगर शिकवा गिला होता
कुरेदा है मिरे ज़ख्मों को अकसर तूने फितनागर
यकीं करते न अपना जान कर तो क्यों दगा होता
परिंदे ने भी देखे थे बुलंदी के कई सपने
न दुनिया काटती जो पंख तो ऊँचा उड़ा होता
न हरगिज़ भूख लेजाती उन्हें कूड़े के ढेरों पर
गरीबों के लिए सरकार ने गर कुछ किया होता\
तमन्ना सर फरोशी की लिये आगे खड़ा होता
मैं क़िसमत का धनी होता बतन पर गर फना होता
अगर माकूल से माहौल में मैं भी पला होता
मेरा जीने का मक़सद आसमां से भी बड़ा होता
न कलियां खिलने से पहले ही मुरझातीं गुलिस्तां में
खिज़ाओं का अगर साया न गुलशन पर पड़ा होता
करें क्या गुफ्तगू उससे चुरा लेता है जो से नज़रें
बताता तो सही मुझसे अगर शिकवा गिला होता
कुरेदा है मिरे ज़ख्मों को अकसर तूने फितनागर
यकीं करते न अपना जान कर तो क्यों दगा होता
परिंदे ने भी देखे थे बुलंदी के कई सपने
न दुनिया काटती जो पंख तो ऊँचा उड़ा होता
न हरगिज़ भूख लेजाती उन्हें कूड़े के ढेरों पर
गरीबों के लिए सरकार ने गर कुछ किया होता\
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुकर्वार (23-12-2016) को "पर्दा धीरे-धीरे हट रहा है" (चर्चा अंक-2565) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Har Sher Daad Ke Kaabil . Badhaaee .
ReplyDeleteबहुत ख़ूब ... लाजवाब शेर ज़िन्दादिल शेर ...
ReplyDeleteअद गुरूदेव प्राण शर्मा जी नमन 1 आपका आना एक अच्छी शुरुअत है आभार आपका1
ReplyDeleteआद नास्वा जी
आद शास्त्री जी व साधना जी आपका भी बहुत बहुत शुक्रिया1