दिव्य अनुभूति
कैसा है अनुराग
मेरे अंतस मे
तेरे सौरभ की
रजत किरणों का आभास
मुझे लिये जाता है
अनन्त आकाश की ओर
जहां मै तू है
और तू मै हू
सब एक हो जाता है
हां यही है दिव्य अनुभूती
दिव्य अनुराग
तेरे सौरभ की
रजत किरणों का आभास
ये कैसी है अनुभूति
कैसा है अनुराग
मेरे अंतस मे
तेरे सौरभ की
रजत किरणों का आभास
मुझे लिये जाता है
अनन्त आकाश की ओर
जहां मै तू है
और तू मै हू
सब एक हो जाता है
हां यही है दिव्य अनुभूती
दिव्य अनुराग
तेरे सौरभ की
रजत किरणों का आभास
बहुत सुन्दर अध्यात्म भरी रचना ...
ReplyDeleteकल 24/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
यही है एकाकार स्थिति
ReplyDeleteवाह आदरणीय क्या शब्दों का संयोजन है
ReplyDeleteक्या धारा है और क्या प्रवाह। बस पढ़के मन से निकली वाह
बहुत सुन्दर बातों का उल्लेख किया है आपने इस कृति में।
वाक़ई जब आत्मबोध होता है, और हम आत्मज्ञान की तरफ झुकते हैं, तो फिर अंतस में दिव्य ज्योत और मन न जाने कहाँ शांत वन में विचरता है।
बहुत सुंदर अध्यात्मिक रचना
ReplyDeleteजहाँ मैं और तू एक हो जाता है , वहां दिव्य अनुभूति संभव है !
ReplyDeleteअच्छी रचना !
सुंदर है और सत्य है ।
ReplyDeleteअद्भुत भाव
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteBahut khoob
ReplyDeleteउत्कृष्ट
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteअति सुंदर उत्कृष्ट प्रस्तुति...
ReplyDeleteसुंदर है और सत्य है अध्यात्मिक रचना
ReplyDeleteइस सत्य की अनुभूति ही आत्मबोध है !
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
मैं और तुम का समायोजन ही मार्ग है दिव्यानुभूति का...बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति...
ReplyDeleteप्यारी सी अनुभूति .......
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