गज़ल
ये गज़ल --http://subeerin.blogspot.com/{ गज़ल गुरुकुल} के मुशायरे मे शामिल की गयी थी\ गुरूकुल की छात्रा न होते हुये भी मुझे सुबीर जी जो सम्मान देते हैं और मुझे इन मुशायरों मे शामिल करते हैं उसके लिये उनकी हृदय से आभारी हूँ।उनके ब्लाग गज़ल का सफर से ही गज़लों की तकनीकी जानकारी मिली है। पहले तो बस तुकबन्दी कर लेती थी। जो साहित्य की निश्काम सेवा वो कर रहे हैं उसके लिये गज़ल के इतिहास मे ही नही बल्कि कहानी उपन्यास और कविता के इतिहास मे भी उनका नाम अग्रनी होगा।एक बार फिर से तहे दिल से उनका शुक्रिया करती हूँ। हाँ इस गज़ल के आखिरी 4 शेर अपनी मर्जी से पोस्ट करने की हिमाकत कर रही हूँ। क्षमा चाहती हूँ।
डर सा इक दिल मे उठाती गर्मिओं की ये दुपहरी ====
घोर सन्नाटे मे डूबी गर्मियों की ये दुपहरी
चिलचिलाती धूप सी रिश्तों मैं भी कुछ तल्खियाँ हैं =====
आ के तन्हाई बढाती गर्मिओं की ये दुपहरी
हाँ वही मजदूर जो डामर बिछाता है सडक पर ======
मुश्किलें उसकी बढाती गर्मिओं की ये दुपहरी
है बहुत मुश्किल बनाना दाल रोटी गर्मिओं मे=======
औरतों पर ज़ुल्म ढाती गर्मिओं की ये दुपहरी
आग का तांडव कहीँ और हैं कहीं उठते बवंडर, ======
यूँ लगे सब से हो रूठी गर्मिओं की ये दुपहरी
तैरना तालाब मे कैसे घडे पर पार जाना =====
याद बचपन की दिलाती गर्मियों की ये दुपहरी
रात तन्हा थी मगर कुछ ख्वाब तेरे आ गये थे
पर भला कैसे कटेगी गर्मियों की ये दुपहरी +=====
बर्फ मे शहतूत रख,तरबूज खरबूजे खुमानी
मौसमी सौगात लाती गर्मियों की ये दुपहरी
चमचमाते रंग लिये चमका तपाशूँ आस्माँ पर
धूप की माला पिरोती गर्मिओं की ये दुपहरी
दिल पे लिखती नाम तेरा ज़िन्दगी की धूप जब
ज़ख्म दिल के है तपाती गर्मिओं की ये दुपहरी
जब से छत पर काग बोले आयेगा परदेश से वो
तब शज़र सी छाँव देती गर्मिओं की ये दुपहरी
याचना करती सी आँखें प्यार के लम्हें बुलाती
बिघ्न आ कर डाल जाती गर्मिओं की ये दुपहरी
घोर सन्नाटे मे डूबी गर्मियों की ये दुपहरी
चिलचिलाती धूप सी रिश्तों मैं भी कुछ तल्खियाँ हैं =====
आ के तन्हाई बढाती गर्मिओं की ये दुपहरी
हाँ वही मजदूर जो डामर बिछाता है सडक पर ======
मुश्किलें उसकी बढाती गर्मिओं की ये दुपहरी
है बहुत मुश्किल बनाना दाल रोटी गर्मिओं मे=======
औरतों पर ज़ुल्म ढाती गर्मिओं की ये दुपहरी
आग का तांडव कहीँ और हैं कहीं उठते बवंडर, ======
यूँ लगे सब से हो रूठी गर्मिओं की ये दुपहरी
तैरना तालाब मे कैसे घडे पर पार जाना =====
याद बचपन की दिलाती गर्मियों की ये दुपहरी
रात तन्हा थी मगर कुछ ख्वाब तेरे आ गये थे
पर भला कैसे कटेगी गर्मियों की ये दुपहरी +=====
बर्फ मे शहतूत रख,तरबूज खरबूजे खुमानी
मौसमी सौगात लाती गर्मियों की ये दुपहरी
चमचमाते रंग लिये चमका तपाशूँ आस्माँ पर
धूप की माला पिरोती गर्मिओं की ये दुपहरी
दिल पे लिखती नाम तेरा ज़िन्दगी की धूप जब
ज़ख्म दिल के है तपाती गर्मिओं की ये दुपहरी
जब से छत पर काग बोले आयेगा परदेश से वो
तब शज़र सी छाँव देती गर्मिओं की ये दुपहरी
याचना करती सी आँखें प्यार के लम्हें बुलाती
बिघ्न आ कर डाल जाती गर्मिओं की ये दुपहरी
khubsurat gazal
ReplyDeletebahut badiya
वाह जी एक उम्दा ग़ज़ल
ReplyDeleteबहुत सुंदर वर्णन ...गर्मियों की ये दुपहरी ....!!
ReplyDeleteगर्मियों की दुपुहरी के सारे ही रंग बिखेर दिए, बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, अब तो फुहार भी आ गयी।
ReplyDeleteमां के आंचल की छाया हो,
ReplyDeleteतो फिर क्या बिसात रखती है,
गर्मियों की ये दुपहरी...
जय हिंद...
बधाई आपको !
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब विश्लेषण है गर्मियों की दुपहरी का
ReplyDeleteआप की परेशानी देख पिघल गयी है गर्मियों की दुपहरी सो हलकी हलकी फुहार भी शुरू हो गयी है. लगता है बड़ी शिद्दत से लिखी है ये गज़ल
बहुत सुन्दर ग़ज़ल,आभार.
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeletechhotawriters.blogspot.com
bahut sundar
ReplyDeletechhotawriters.blogspot.com
दुपहरी पर इतनी सुंदर ग़ज़ल पहली बार पढ़ी. कई रंग आपने समेट लिए इसमें.
ReplyDeleteजब से छत पर काग बोले आएगा परदेश से वो
तब शज़र सी छाँव देती गर्मियों की ये दुपहरी
इतना सुंदर कहा है कि जो दिल में रह जाता है.
दुपहरी का बहुत सही वर्णन किया है ...बहुत खूबसूरत गज़ल
ReplyDeleteबहुत सुंदर वर्णन ...गर्मियों की ये दुपहरी
ReplyDeletewaah waah
ReplyDeletebahut umda............bahut khoob !
वाह ... बहुत खूब कहा है आपने ।
ReplyDeleteदीदी ग़ज़ल में तो आपने गर्मी के एक-एक रंग की तस्वीर ही खींच दी है। और संदेश भी स्पष्ट है ..
ReplyDeleteदिल पे लिखती नाम तेरा ज़िन्दगी की धूप जब
ज़ख़्म दिल के है तपाती गर्मियों की ये दुपहरी।
kuchh baate dil ko chhoo gaeen ...
ReplyDeleteखूबसूरत ग़ज़ल.... गर्मी की दोपहरी का भावात्मक औ रागात्मक चित्रण ! बहुत सुन्दर !
ReplyDeletegarmi ki dopahri aur gazal... bahut badhiyaa
ReplyDeletekaaga waala sher bahut sunder laga hamko....pura ghazal accha hai nirmala ji..
ReplyDeletegood wishes
निम्मो दी!
ReplyDeleteग़ज़ल इतनी ख़ूबसूरत है कि गर्मियों की इस दुपहरी ने भी आपकी शिकायत सुन ली और बादल भेज दिये.. एक एक से एक शेर कहे हैं आपने और पूरा समाँ बाँध दिया..
बहुत अच्छी लगी आपकी यह गज़ल
ReplyDelete--------------------------------
कल 28/06/2011को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है-
आपके विचारों का स्वागत है .
धन्यवाद
नयी-पुरानी हलचल
बहुत सुन्दर ग़ज़ल,आभार|
ReplyDeleteगर्मी की ये दुपहरी ,कितना जुल्म धाती है ...
ReplyDeleteखूबसूरत ग़ज़ल !
बेहद खुबसूरत गजल कही है आपने निर्मला जी ...दोपहरी के कई रंग मिले इस में ....
ReplyDeleteगगन चुम्बी अटारियों पर है सब की नज़र,
ReplyDeleteनींव के पत्थर की सदा किसको सुहाई है |
sach kaha hai aapne .bahut sundar gazal ..
दिल पे लिखती नाम तेरा जिंदगी की धुप जब जब
ReplyDeleteज़ख्म दिल के है तपाती, गर्मियों की ये दुपहरी
खूबसूरत भाव,, प्रभावशाली शब्दावली
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल ....
हर शेर पढ़ कर आनंद का अनुभव हो रहा है
और
पीडीवत्स जी का contact नहीं है मेरे पास
कभी जा पाया, तो सन्देश दूंगा उन्हें ...
'दानिश' 98722 11411 .
आपकी गज़ल बरसात ले आई,
ReplyDeleteऔर क्या तारीफ़ अब बाकी रही.....
इतनी गरमा गर्म ग़ज़ल पढ़कर आसमान भी टपक पड़ा ।
ReplyDeleteचलिए सबको राहत मिली ।
गर्मी की दुपहरी साकार हो गयी..
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया ग़ज़ल...
वैसे गर्मियों का मौसम इधर तो वैसे भी नहीं रहता और अब तो हर जगह गर्मियों से राहत मिल गयी :)
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत गज़ल है गर्मियों की दुपहरी पे.. :)
बहुत ही उम्दा गजलों के इस गुलदस्ते की प्रस्तुति.
ReplyDeletebahut khubsurat gazal...
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा गजल.........
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ग़ज़ल,आभार.
ReplyDeleteगज़ल पढ़कर रात में भी छा गई... गर्मियों की दोपहरी।
ReplyDeleteवाकई, गर्मियों की दुपहरी के अनेक रंग होते हैं. आपकी ग़ज़ल के प्रत्येक शेर में गर्म दुपहरी का प्रत्येक रंग निखर कर सामने आया है. अच्छी भावपूर्ण ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई.
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल..... उम्दा शब्द पिरोये हैं आपने....
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण गज़ल |बधाई |
ReplyDeleteअति सुन्दर! गर्मियों की बेचैनी और उमस का अहसास हो गया आपके शब्दों से।
ReplyDeleteमस्त गज़ल है।
ReplyDeleteआभार
bahut achchi lagi.
ReplyDeleteufff ye grami.......par phir bhi acchi hai...in dino sab sath hote hai
ReplyDeleteनिर्मला दी, आप निरंतर लिख रही हैं हमारे लिए बहुत ही सौभाग्य की बात है, अर्थात आपका स्वास्थ्य ठीक है. आपने गर्मियों की दोपहरी की बात की है तो दीदी देहरादून में इस बार गर्मियों का दुःख (या शायद आनंद) नहीं पाया, क्योंकि अबकी मई में ही बरसना शुरू हो गया था, अब आप नंगल में है तो क्या करें...... एक बेहतरीन ग़ज़ल ! वैसे 'गर्मिओं' को "गर्मियों" लिखा जाना चाहिए था.
ReplyDeleteहर शेर लाजवाब....किसकी तारीफ करूं....
ReplyDeleteबेहतरीन...
"तब शज़र सी छाँव देती गर्मियों की ये दोपहरी "दोपहर के रंग समेटे ये दोपहरी ,अच्छी ग़ज़ल है .बिम्ब समेटे जीवन के विभिन्न अक्सों के .
ReplyDeletebahut hee khoobsurat!
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना है। बारिश के इस मौसम में भी आग को ज़िंदा रखती हुई।
ReplyDeleteउन आख़िरी चार की तो कुछ मत पूछिए पूरी जुलुम हैं जुलुम !
ReplyDeleteअब बरसात आ गयी है अब शायरा की यह तपन शायद ठीक हो जाए .... :)
सुबीर जी के ब्लॉग पर पढ़ी इस ग़ज़ल के अतिरिक्त मिसरे भी अच्छे हैं| ईश्वर से आप के अच्छे स्वास्थ्य की कामना करता हूँ|
ReplyDeleteख़ूबसूरत बिम्बों और भावों से सजी गज़ल लाजवाब है|
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteaapka hamare blog me aane ke liye sukriya aate rehiye aur hamara utsaah verdhan karte rahiye
ReplyDeleteवाह.......
ReplyDeleteउम्दा ग़ज़ल ......हर शेर अर्थपूर्ण
बहुत खूबसूरत,
ReplyDeleteबधाई,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत सुंदर
ReplyDeleteदोपहरी पर इतनी खूबसूरत गज़ल । दोपहरी के सारे रंग बिखर गये । बधाई ।
ReplyDeleteMaa ji! garmiyon kee tapti duphari ke madhyam se jeewan ke vividh dukh-sukh ke rang bikher diye aapne... prastuti hetu aabhar!
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत गज़ल..हरेक शेर दिल को छू जाता है..आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गज़ल! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
क्या बात है, बहुत सुंदर।
ReplyDeleteक्या बात है, बहुत सुंदर।
ReplyDeleteaap kaesi hain ?asha hi ki achchhi hongi .aapki gazal kamal hai
ReplyDeletekitni chhoti chhoti baton ko likha hai garmiyon me khana banana bahut bhari lagta tha.
saader
rachana
nice one
ReplyDeleteनिर्मला जी ! बहुत बेहतरीन भावाव्यक्ति हुयी है । इन शब्दों में ।
ReplyDeleteआपका ब्लाग लाक्ड है । कृपया इस गजल को समीक्षा लेख हेतु
golu224@yahoo.com पर मेल कर दें । धन्यवाद सहित । आभार
आदरणीय निर्मला जी
ReplyDeleteनिर्मल भावों की सुखद अनुभूति कराती है यह गजल.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
दर्शन देकर मेरे ब्लॉग को भी निर्मल कीजियेगा
आदरणीय निर्मला कपिला जी सुन्दर गजल आप की -मनोहारी भाव -
ReplyDeleteक्यों न हम गर्मियों ही लिखें ...और ये निम्न सा ...
जब से छत पर काग बोले आएगा परदेश से वो
है शजर सी छाँव देती गर्मियों की ये दुपहरी !!
शुक्ल भ्रमर 5
प्रत्येक शेर में गर्मी का नया रूप.सचमुच ही बेमिसाल गज़ल है.गर्मी के इतने रूप एक ही गज़ल में,पहली बार नज़रों से गुजरे हैं.बधाई...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ग़ज़ल,आभार....
ReplyDeletehamesha ki tarah laajawaab...
ReplyDeleteis hunar ka thoda sa gur mujhe bhi sikha dijiye...
bahut pyari gazal likhi hai aapne....
ReplyDeletehttp://easybookshop.blogspot.com
bahut sunder gazal....
ReplyDeletekitne sunder bhavo ke rang bikhere hai aapne.........
aabhar .
आपके पोस्ट पर आना सार्थक सिद्ध हुआ। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है ।.दीपावली की शुभकामनाएं ।
ReplyDelete