आज गज़ल उसताद श्री प्राण शर्मा जी की एक गज़ल पढिये
ग़ज़ल - प्राण शर्मा
क्यों न हो मायूस मेरे राम जी अब आदमी
इक सुई की ही तरह है लापता उसकी खुशी
माना कि पहले कभी इतनी नहीं ग़मगीन थी
गीत दुःख के गा रही है हर घड़ी अब ज़िन्दगी
कितना है बेचैन हर इक चीज़ पाने के लिए
आदमी को चाहिए अब चार घड़ियाँ चैन की
झंझटों में कौन पड़ता है जहां में आजकल
क़त्ल होते देख कर छुप जाते हैं घर में सभी
बात मन की क्या सुनायी जान कर अपना उसे
बात जैसे पर लगाकर हर तरफ उड़ने लगी
दोस्ती हो दुश्मनी ये बात मुमकिन है मगर
बात ये मुमकिन नहीं कि दुश्मनी हो स्ती
दिन में चाहे बंद कर लो खिड़कियाँ ,दरवाज़े तुम
कुछ न कुछ तो रहती ही है सारे घर में रोशनी
कोई कितना भी हो अभ्यासी मगर ए दोस्तो
रह ही जाती है सदा अभ्यास में थोड़ी कमी
हमने सोचा था करेंगे काम अच्छा रोज़ हम
सोच इन्सां की ए यारो एक सी कब है रही
गर कहीं मिल जाए तुमको मुझसे मिलवाना ज़रूर
एक मुद्दत से नहीं देखी है मैंने सादगी
हो भले ही शहर कोई " प्राण " लोगों से भरा
सैंकड़ों में मिलता है पर संत जैसा आदमी
क्यों न हो मायूस मेरे राम जी अब आदमी
इक सुई की ही तरह है लापता उसकी खुशी
माना कि पहले कभी इतनी नहीं ग़मगीन थी
गीत दुःख के गा रही है हर घड़ी अब ज़िन्दगी
कितना है बेचैन हर इक चीज़ पाने के लिए
आदमी को चाहिए अब चार घड़ियाँ चैन की
झंझटों में कौन पड़ता है जहां में आजकल
क़त्ल होते देख कर छुप जाते हैं घर में सभी
बात मन की क्या सुनायी जान कर अपना उसे
बात जैसे पर लगाकर हर तरफ उड़ने लगी
दोस्ती हो दुश्मनी ये बात मुमकिन है मगर
बात ये मुमकिन नहीं कि दुश्मनी हो स्ती
दिन में चाहे बंद कर लो खिड़कियाँ ,दरवाज़े तुम
कुछ न कुछ तो रहती ही है सारे घर में रोशनी
कोई कितना भी हो अभ्यासी मगर ए दोस्तो
रह ही जाती है सदा अभ्यास में थोड़ी कमी
हमने सोचा था करेंगे काम अच्छा रोज़ हम
सोच इन्सां की ए यारो एक सी कब है रही
गर कहीं मिल जाए तुमको मुझसे मिलवाना ज़रूर
एक मुद्दत से नहीं देखी है मैंने सादगी
हो भले ही शहर कोई " प्राण " लोगों से भरा
सैंकड़ों में मिलता है पर संत जैसा आदमी