संजीवनी [कहानी] अन्तिम कडी
पिछली कडियों मे आपने पढा कि सुधाँशू की मौत हो गयी। और किस तरह विकल्प ने उसे उन सभी बातों का एहसास करवाया जो उसने कभी सोचने की जरूरत ही महसूस नहीं की। आज जल्दी जल्दी मे पोस्ट लिखी है टाईप की गलतिओं के लिये क्षमा चाहती हूँ अब आगे----
अंतिम रस्मे पूरी हो गयी। रिश्ते दार जा चुके थे
रहते भी क्यों जैसी औपचारिकता आप निभाती आयीं थीं वही वो निभा कर वले गये।
मैं पिता जी के वचन को पूरा करने के लिये आपसे बात करने रुक गया था। मैं तुम्हें अपने साथ ले जाना चाहता था। तुम से बात की तो तुम ने कह दिया कि मैं नौकरी नहीं छोद सकती। साथ ही मुझे परामर्श दे डाला कि अगर तुम चाहते हो तो मैं यहाँ तुम्हारे लिये एक कम्पनी खोल सकती हूँ। और कहा कि मैं अकेले रह सकती हूँ तुम अपने करियर को देखो।
* मुझ अतृप्त की कितनी बडी परीक्षा लेना चाहती थी आप। मैं निराश हो गया। आपका तर्क था कि अगर मैं काम मे व्यस्त रहूँगी तो सुधाँशू के गम को भूल पाऊँगी, दूसरा मैं तिम पर बोझ बनना नहीं चाहती।क्या यही दुख हम दोनो मिल कर नहीं बाँट सकते थी? मैने तो सुना था कि माँ बाप बच्चों पर बोझ नहीं होते । बच्चे कभी उनका कर्ज़ नहीं चुका सकते। मगर माँ वो आपकी सोच थी मैं ऐसा नहीं सोचता था। मुझे लगता था कि मैं आपका और आप मेरा बोझ बाँट लेंगी--- जीवन भर की अतृप्त इच्छाओं का बोझ। खैर सारी आशायें छोड मैं फिर से लखनऊ आ गया। आते वक्त पिता जी की कुछ फाईलें और एक डायरी आप से बिना पूछे उठा लाया था। इतना तो उन पर मेरा हक बनता था। मुझे लगा था कि शायद मैं फिर कभी लखनऊ न आ पाऊँगा।यहाँ भी मन नहीं लगता कई बार आपको फोन किया महज औपचारिक बातें हुयी। मैं उसके बाद घर नहीं आया।*
* अभी एक दो दिन पहले मैने पिता जी के डायरी खोली। तब बिना देखे ही रख ली थी। उसमे पिता जी ने मेरे लिये एक लिफाफा रखा था। खोला तो पिता जी का पत्र था। शायद उन्हें आभास हो गया था कि वो अधिक दिन जिन्दा नहीं रहेंगे-- इस लिये आखिरी प्रयत्न करना चाहते थे हम दोनो के बीच की दूरी मिटाने के लिये। पत्र ये भी बहुत बडा है मगर उसमे से कुछ अंश आपको भेज रहा हूँ-- ताकि आप मेरे इस पत्र का आशय समझ सको।*
बेटा विकल्प !
पता नहीं मैं ठीक हो पाऊँगा या नहीं। अगर मुझे कुछ हो गया तो मेरी आत्मा भटकती रहेगी। तुम्हारे साथ हुये अन्याय से और मानवीतथा तुम्हारे बीच तनाव को ले कर। बेटा! तुम दोनो मुझे बहुत प्रय हो तो क्या मेरी आत्मा की शान्ति के लिये तुम दोनो एक प्रयास नहीं कर सकते? मानवी मेरी कम्ज़ोरी रही हैउसे बहुत प्यार करता हूँ मगर उसे कुछ कहने का साहस नहीं कर पाता। इस लिये तुम्हें एक बात समझाना चाहता हूँ। मुझे लगता है कि तुम मेरी बात को जरूर समझोगे। मानवी दिल की बुरी नहीं है ये यकीन मानो। उसका दोष भी नहीं है, वो जिस आधुनिक महौल मे पली है, जैसे उसे संस्कार मिले हैं वो वैसी ही है---- भावनाओं से दू, प्रेकटीकल्, अति महत्वाकाँक्षी। मक़िं इसी तथ्य को मान कर ,उसकी हर सोच के साथ समझौता करता चला गया। यहीं पर मैं गलत हो गया। ये बात मैं अब जान सका हूँ। दाँपत्य जीवन तो बचा रहा मगर कुछ चाहतों की वजह से मैं भी अतृप्त रहा। तुम्हारे जन्म के बाद मुझे अपनी गलती का एहसास हुया।मगर तब तक देर हो चुकी थी मानवी से कुछ भी कहना बेकार था। मैने उससे बहुत प्यार किया उसके इस भ्रम को इस जीवन सन्ध्या मे तोडना नहीं चाहता। वो भी मुझे बहुत चाहती है मगर उसका अन्दाज़ अलग है। वो मेरे बिना जी नहीं पायेगी। अगर अपने पिता की अत्मा की शाँति के लिये कुछ कर सकते हो तो बस उसे समझने की कोशिश करो और अपने सब गिले भूल जाओ। वो उपर से जितनी कठोर लगती है दिल से उतनी ही कोमल है। वो घुट घुट कर मर जायेगी मगर अपने दिल की बात किसी से नहीं कहेगी। मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ--- अपनी वंश बेल बढाने के लिये मैने तुम्हारा बचपन तुम से छीन लिया माँ का प्यार छीन लिया। क्षमा चाहता हूँ मेरी अन्तिम इच्छा पूरी कर सको तो अपनी माँको अपना लो।* तुम्हारा गुनहगार पिता
पत्र पढते हुये मानवी के सब्र का बाँध टूट गया ओह उसने अपनी सोच के आगे क्यों कभी सोचने देखने की जरूरत नहीं समझी । म्क़ैने सुधाँशू के साथ इतना बडा अन्याय कर दिया और उसने उफ तक नहीं की----- सोचते हुये मानवी विकल्प का पत्र फिर पढने लगी------
*माँ आज फिर से मै एक प्रयास कर रहा हूँ और करता रहूँगा पिता जी के लिये तुम्हें समझने की कोशिश कर रहा हूँ। तुम सोच रही होगी कि अगर मैं रिश्ता सुधारना चाहता हू तो पत्र मे अतनी कडवाहट क्यों भरी? शायद आप नहीं जानती जो कभी अनकहा मन मे रह जाता है वो कभी जीने नहीं देता कभी न कभी सिर उठा लेता है, सालता रहता है। अपने दिल मे तुम्हारे लिये स्थान बनाने के लिये अपने दिल से इस मवाद को निकालना जरूरी था। और मेरा है भी कौन जो मेरे दुख बाँट सके। बहुत कुछ इस लिये भी कहा है कि तुम भी मेरे इस क्षोभ को समझ सको। तुम मेरे बारे मे कुछ नहीं जानती--- कुछ भी नहीं--- तुम्हारा बेटा किस यन्त्रना से गुज़र रहा है। जब ये दर्द तीर की तरह तुम्हारे दिल मे चुभेगा तभी तुम मुझे जान पाओगी। मैं आज आपकी आत्मा को झकझोर देना चाहता हूँ।*
*माँ खिडकी के सामने सडक के उस पार गाय खडी है। बछडा उचक उचक कर कितनी उमंग से उसका दूध पी रहा है--- और गाय बछडे को प्यार से चाट रही है--- शायद ये दुनिया का सब से अनमोल सुख है, तृप्ति है जिस से मैं वंचित रहा हूँ। उसके पास ही एक पेड पर चिडिया अपने घोंसले के पास बैठी है। वो बाहर से दाना चुग कर लाती है और खुद अपने बच्चों के मुंह मे डालती है--- बच्चों की चोंच से चोंच मिला कर प्यार का इज़्हार करती है। माँ क्या इन्सान जानवर से भी बदतर हो गया है पशु पक्षियों की मांयें नहीं बदली फिर इन्सान के माँ बाप क्यों खुदगर्ज़ हो गये हैं। किसी बच्चे को माँ की गोद मे देखता हूँ तो मन मे टीस उठती है। पता नहीं मुझे जन्म देने वाली माँ की क्या मजबूरी थी ,जो अपनी ममता का गला घोंट दिया। मेरा बचपन तो इस आधुनिकता की भेंट चढ चुका है नगर बाकी जीवन तो बचा सकती हो। आज अपने अन्दर का हर दर्द आपकी आत्मा मे चुभा देना चाहता हूँ मैने सुना है कि पूत कपूत हो सकता है पर माता कुमाता नहीं---- आज मैं देखना चाहता हूँ कि क्या तुम मुझे वो संजीवनी दे सकती हो---- माँ के वात्सलय और स्नेह की संजीवनी---- माँ मैं जीना चाहता हूँ----- बस एक बार बेटा कह कर प्यार से मुझे पुकारो गले लगा लो माँ----* तुम्हारा विकल्प ।
पत्र समाप्त हो चुका था----- एक जलजला आया था मानवी के दिल मे जो उसके व्यक्तित्व को हिला गया ---- किस दुनिया मे जी रही थी वो--- उसके सामने ज़िन्दगी के सुन्दर पल बिखर रहे थे मगर वो देख न पाई---- पहले सुधाँशू ---- फिर विकल्प?-----। अब क्या बचा है उसके पास । दौलत और पद प्रतिषठा के अहं मे किसी की भावनाओं को कभी समझा हे नही। ---- सुधाँशू हर पल पास होते हुये भी कितने अकेले थे---- और विकल्प--- अनथ संतप्त इतना आक्रोश और मन मे इतनी आग जलाये कैसे जी रहा है वो---- फिर भी मेरा सहारा बनना चाहता है और एक मैं कि उसके पिता की मौत पर उसे सहला भी न पाई। उसे लगा कि विकल्प की इस आग ने उसकी अत्मा मे जमी संवेदनहीनता की बर्फ कोपिघला दिया है----- और वो आँसू बन कर आँखों से बह रही है--- आँसू बहे जा रहे थे --- अविरल --- कहीं दूर 3 बजे के घँटे की आवाज़ सुनाई दी---- बरबस ही उसके हाथ टेलिफोन की तरफ बढ गये--- वो विकल्प का नम्बर डायल कर रही थी---- शायद उसकी बची ज़िन्दगी के लिये संजीवनी देना चाहती थी--
*हेलो* दूसरी तरफ से आवाज़ आयी
*बेटा*----- आगे एक शब्द न बोल सकी।
*माँ* ----- और दोनो निशब्द जाने कितनी देर आँसू बहाते रहे।------ समाप्त
हमारे वैग्यानिक अपनी ज़िन्दगी के सब सुख छोड कर हमारी सुख सुविधा के लिये नये नये अविष्कार करते हैं मगर हम अपनी महत्वाकाँषाओं व तृष्णाओं को पूरा करने के लिये उनका दुरुपयोग करने लगते हैं। *इन्विट्रो फर्टेलाईजेशन* भी उन बेऔलाद लोगों के लिये किया ग्या अविश्कार है जो किसी रोग या प्रकृतिक कारणो के चलते अपनी औलाद पैदा करने मे अस्मर्थ हैं लेकिन कुछ माँयें इसका उपयोग केवल अपने फर्ज़ से बचने के लिये, केवल अपने करियर और मातृत्व कष्टों को न सहन करना पडे इस लिये कर रहे हैं। इस के क्या परिणाम हो सकते हैं? इस कहानी की तरह जरूरी नहीं कि सभी बच्चे विकल्प की तरह समझदार हों असली ज़िन्दगी मे ऐसा होता भी कम है।तो वो क्या गलत कदम नहीं उठा सकते । ये कहानी बहुत बडी है इसे संक्षिप्त किया गया है विकल्प अपनी जन्म देने वाली माँ से भी मिलता है मगर पाठक बोर न हों लम्बी कहानी से इस लिये इसे यहीं समाप्त किया जा रहा है।
पिछली कडियों मे आपने पढा कि सुधाँशू की मौत हो गयी। और किस तरह विकल्प ने उसे उन सभी बातों का एहसास करवाया जो उसने कभी सोचने की जरूरत ही महसूस नहीं की। आज जल्दी जल्दी मे पोस्ट लिखी है टाईप की गलतिओं के लिये क्षमा चाहती हूँ अब आगे----
अंतिम रस्मे पूरी हो गयी। रिश्ते दार जा चुके थे
रहते भी क्यों जैसी औपचारिकता आप निभाती आयीं थीं वही वो निभा कर वले गये।
मैं पिता जी के वचन को पूरा करने के लिये आपसे बात करने रुक गया था। मैं तुम्हें अपने साथ ले जाना चाहता था। तुम से बात की तो तुम ने कह दिया कि मैं नौकरी नहीं छोद सकती। साथ ही मुझे परामर्श दे डाला कि अगर तुम चाहते हो तो मैं यहाँ तुम्हारे लिये एक कम्पनी खोल सकती हूँ। और कहा कि मैं अकेले रह सकती हूँ तुम अपने करियर को देखो।
* मुझ अतृप्त की कितनी बडी परीक्षा लेना चाहती थी आप। मैं निराश हो गया। आपका तर्क था कि अगर मैं काम मे व्यस्त रहूँगी तो सुधाँशू के गम को भूल पाऊँगी, दूसरा मैं तिम पर बोझ बनना नहीं चाहती।क्या यही दुख हम दोनो मिल कर नहीं बाँट सकते थी? मैने तो सुना था कि माँ बाप बच्चों पर बोझ नहीं होते । बच्चे कभी उनका कर्ज़ नहीं चुका सकते। मगर माँ वो आपकी सोच थी मैं ऐसा नहीं सोचता था। मुझे लगता था कि मैं आपका और आप मेरा बोझ बाँट लेंगी--- जीवन भर की अतृप्त इच्छाओं का बोझ। खैर सारी आशायें छोड मैं फिर से लखनऊ आ गया। आते वक्त पिता जी की कुछ फाईलें और एक डायरी आप से बिना पूछे उठा लाया था। इतना तो उन पर मेरा हक बनता था। मुझे लगा था कि शायद मैं फिर कभी लखनऊ न आ पाऊँगा।यहाँ भी मन नहीं लगता कई बार आपको फोन किया महज औपचारिक बातें हुयी। मैं उसके बाद घर नहीं आया।*
* अभी एक दो दिन पहले मैने पिता जी के डायरी खोली। तब बिना देखे ही रख ली थी। उसमे पिता जी ने मेरे लिये एक लिफाफा रखा था। खोला तो पिता जी का पत्र था। शायद उन्हें आभास हो गया था कि वो अधिक दिन जिन्दा नहीं रहेंगे-- इस लिये आखिरी प्रयत्न करना चाहते थे हम दोनो के बीच की दूरी मिटाने के लिये। पत्र ये भी बहुत बडा है मगर उसमे से कुछ अंश आपको भेज रहा हूँ-- ताकि आप मेरे इस पत्र का आशय समझ सको।*
बेटा विकल्प !
पता नहीं मैं ठीक हो पाऊँगा या नहीं। अगर मुझे कुछ हो गया तो मेरी आत्मा भटकती रहेगी। तुम्हारे साथ हुये अन्याय से और मानवीतथा तुम्हारे बीच तनाव को ले कर। बेटा! तुम दोनो मुझे बहुत प्रय हो तो क्या मेरी आत्मा की शान्ति के लिये तुम दोनो एक प्रयास नहीं कर सकते? मानवी मेरी कम्ज़ोरी रही हैउसे बहुत प्यार करता हूँ मगर उसे कुछ कहने का साहस नहीं कर पाता। इस लिये तुम्हें एक बात समझाना चाहता हूँ। मुझे लगता है कि तुम मेरी बात को जरूर समझोगे। मानवी दिल की बुरी नहीं है ये यकीन मानो। उसका दोष भी नहीं है, वो जिस आधुनिक महौल मे पली है, जैसे उसे संस्कार मिले हैं वो वैसी ही है---- भावनाओं से दू, प्रेकटीकल्, अति महत्वाकाँक्षी। मक़िं इसी तथ्य को मान कर ,उसकी हर सोच के साथ समझौता करता चला गया। यहीं पर मैं गलत हो गया। ये बात मैं अब जान सका हूँ। दाँपत्य जीवन तो बचा रहा मगर कुछ चाहतों की वजह से मैं भी अतृप्त रहा। तुम्हारे जन्म के बाद मुझे अपनी गलती का एहसास हुया।मगर तब तक देर हो चुकी थी मानवी से कुछ भी कहना बेकार था। मैने उससे बहुत प्यार किया उसके इस भ्रम को इस जीवन सन्ध्या मे तोडना नहीं चाहता। वो भी मुझे बहुत चाहती है मगर उसका अन्दाज़ अलग है। वो मेरे बिना जी नहीं पायेगी। अगर अपने पिता की अत्मा की शाँति के लिये कुछ कर सकते हो तो बस उसे समझने की कोशिश करो और अपने सब गिले भूल जाओ। वो उपर से जितनी कठोर लगती है दिल से उतनी ही कोमल है। वो घुट घुट कर मर जायेगी मगर अपने दिल की बात किसी से नहीं कहेगी। मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ--- अपनी वंश बेल बढाने के लिये मैने तुम्हारा बचपन तुम से छीन लिया माँ का प्यार छीन लिया। क्षमा चाहता हूँ मेरी अन्तिम इच्छा पूरी कर सको तो अपनी माँको अपना लो।* तुम्हारा गुनहगार पिता
पत्र पढते हुये मानवी के सब्र का बाँध टूट गया ओह उसने अपनी सोच के आगे क्यों कभी सोचने देखने की जरूरत नहीं समझी । म्क़ैने सुधाँशू के साथ इतना बडा अन्याय कर दिया और उसने उफ तक नहीं की----- सोचते हुये मानवी विकल्प का पत्र फिर पढने लगी------
*माँ आज फिर से मै एक प्रयास कर रहा हूँ और करता रहूँगा पिता जी के लिये तुम्हें समझने की कोशिश कर रहा हूँ। तुम सोच रही होगी कि अगर मैं रिश्ता सुधारना चाहता हू तो पत्र मे अतनी कडवाहट क्यों भरी? शायद आप नहीं जानती जो कभी अनकहा मन मे रह जाता है वो कभी जीने नहीं देता कभी न कभी सिर उठा लेता है, सालता रहता है। अपने दिल मे तुम्हारे लिये स्थान बनाने के लिये अपने दिल से इस मवाद को निकालना जरूरी था। और मेरा है भी कौन जो मेरे दुख बाँट सके। बहुत कुछ इस लिये भी कहा है कि तुम भी मेरे इस क्षोभ को समझ सको। तुम मेरे बारे मे कुछ नहीं जानती--- कुछ भी नहीं--- तुम्हारा बेटा किस यन्त्रना से गुज़र रहा है। जब ये दर्द तीर की तरह तुम्हारे दिल मे चुभेगा तभी तुम मुझे जान पाओगी। मैं आज आपकी आत्मा को झकझोर देना चाहता हूँ।*
*माँ खिडकी के सामने सडक के उस पार गाय खडी है। बछडा उचक उचक कर कितनी उमंग से उसका दूध पी रहा है--- और गाय बछडे को प्यार से चाट रही है--- शायद ये दुनिया का सब से अनमोल सुख है, तृप्ति है जिस से मैं वंचित रहा हूँ। उसके पास ही एक पेड पर चिडिया अपने घोंसले के पास बैठी है। वो बाहर से दाना चुग कर लाती है और खुद अपने बच्चों के मुंह मे डालती है--- बच्चों की चोंच से चोंच मिला कर प्यार का इज़्हार करती है। माँ क्या इन्सान जानवर से भी बदतर हो गया है पशु पक्षियों की मांयें नहीं बदली फिर इन्सान के माँ बाप क्यों खुदगर्ज़ हो गये हैं। किसी बच्चे को माँ की गोद मे देखता हूँ तो मन मे टीस उठती है। पता नहीं मुझे जन्म देने वाली माँ की क्या मजबूरी थी ,जो अपनी ममता का गला घोंट दिया। मेरा बचपन तो इस आधुनिकता की भेंट चढ चुका है नगर बाकी जीवन तो बचा सकती हो। आज अपने अन्दर का हर दर्द आपकी आत्मा मे चुभा देना चाहता हूँ मैने सुना है कि पूत कपूत हो सकता है पर माता कुमाता नहीं---- आज मैं देखना चाहता हूँ कि क्या तुम मुझे वो संजीवनी दे सकती हो---- माँ के वात्सलय और स्नेह की संजीवनी---- माँ मैं जीना चाहता हूँ----- बस एक बार बेटा कह कर प्यार से मुझे पुकारो गले लगा लो माँ----* तुम्हारा विकल्प ।
पत्र समाप्त हो चुका था----- एक जलजला आया था मानवी के दिल मे जो उसके व्यक्तित्व को हिला गया ---- किस दुनिया मे जी रही थी वो--- उसके सामने ज़िन्दगी के सुन्दर पल बिखर रहे थे मगर वो देख न पाई---- पहले सुधाँशू ---- फिर विकल्प?-----। अब क्या बचा है उसके पास । दौलत और पद प्रतिषठा के अहं मे किसी की भावनाओं को कभी समझा हे नही। ---- सुधाँशू हर पल पास होते हुये भी कितने अकेले थे---- और विकल्प--- अनथ संतप्त इतना आक्रोश और मन मे इतनी आग जलाये कैसे जी रहा है वो---- फिर भी मेरा सहारा बनना चाहता है और एक मैं कि उसके पिता की मौत पर उसे सहला भी न पाई। उसे लगा कि विकल्प की इस आग ने उसकी अत्मा मे जमी संवेदनहीनता की बर्फ कोपिघला दिया है----- और वो आँसू बन कर आँखों से बह रही है--- आँसू बहे जा रहे थे --- अविरल --- कहीं दूर 3 बजे के घँटे की आवाज़ सुनाई दी---- बरबस ही उसके हाथ टेलिफोन की तरफ बढ गये--- वो विकल्प का नम्बर डायल कर रही थी---- शायद उसकी बची ज़िन्दगी के लिये संजीवनी देना चाहती थी--
*हेलो* दूसरी तरफ से आवाज़ आयी
*बेटा*----- आगे एक शब्द न बोल सकी।
*माँ* ----- और दोनो निशब्द जाने कितनी देर आँसू बहाते रहे।------ समाप्त
हमारे वैग्यानिक अपनी ज़िन्दगी के सब सुख छोड कर हमारी सुख सुविधा के लिये नये नये अविष्कार करते हैं मगर हम अपनी महत्वाकाँषाओं व तृष्णाओं को पूरा करने के लिये उनका दुरुपयोग करने लगते हैं। *इन्विट्रो फर्टेलाईजेशन* भी उन बेऔलाद लोगों के लिये किया ग्या अविश्कार है जो किसी रोग या प्रकृतिक कारणो के चलते अपनी औलाद पैदा करने मे अस्मर्थ हैं लेकिन कुछ माँयें इसका उपयोग केवल अपने फर्ज़ से बचने के लिये, केवल अपने करियर और मातृत्व कष्टों को न सहन करना पडे इस लिये कर रहे हैं। इस के क्या परिणाम हो सकते हैं? इस कहानी की तरह जरूरी नहीं कि सभी बच्चे विकल्प की तरह समझदार हों असली ज़िन्दगी मे ऐसा होता भी कम है।तो वो क्या गलत कदम नहीं उठा सकते । ये कहानी बहुत बडी है इसे संक्षिप्त किया गया है विकल्प अपनी जन्म देने वाली माँ से भी मिलता है मगर पाठक बोर न हों लम्बी कहानी से इस लिये इसे यहीं समाप्त किया जा रहा है।