ग़ज़ल -- प्राण शर्मा
उड़ते हैं हज़ारों आकाश में पंछी
ऊँची नहीं होती परवाज़ हरिक की
होना था असर कुछ इस शहर भी उसका
माना कि अँधेरी उस शहर चली थी
इक डूबता बच्चा कैसे वो बचाता
इन्सान था लेकिन हिम्मत की कमी थी
क्या दोस्ती उससे क्या दुश्मनी उससे
उस शख्स की नीयत बिलकुल नहीं अच्छी
सूखी जो वो होती जल जाती ही पल में
कैसे भला जलती गीली कोई तीली
इक शोर सुना तो डर कर सभी भागे
कुछ मेघ थे गरजे बस बात थी इतनी
दुनिया को समझना अपने नहीं बस में
दुनिया तो है प्यारे अनबूझ पहेली
बरसी तो यूँ बरसी आँगन भी न भीगा
सावन की घटा थी खुल कर तो बरसती
यारी की ही खातिर तू पूछता आ कर
क्या हाल है मेरा , क्या चाल है मेरी
फुर्सत जो मिले तो तू देखने आना
इस दिल की हवेली अब तक है नवेली
पुरज़ोर हवा में गिरना ही था उनको
ए " प्राण " घरों की दीवारें थी कच्ची
दूसरा शेअर सबसे अच्छा लगा.
ReplyDeletewah kya baat hai....
ReplyDeletebadiya bhav piroe hai....
वैसे तो कई शेर खासे अच्छे बंधे है,
ReplyDeleteमगर क्यों ये हमको ग़ज़ल सी न लगती ?
मेरा पसंदीदा :
इक शोर सुना तो डर कर सभी भागे
कुछ मेघ थे गरजे बस बात थी इतनी
प्राण साहब को बधाई ...
khoobsurati ki misaal hei ye gazal aunty ji!
ReplyDeleteदिल की हवेली सदा नई रहे,ऐसा आध्यात्मिक व्यक्तित्व के ही वश का होता है। और,आध्यात्मिकता का अर्थ यह नहीं कि व्यक्ति बाह्य जगत में साधुवेश में दिखता हो। आम लोगों में से भी कइयों का हृदय उतना ही निर्मल होता है,मगर स्वयं उस व्यक्ति को भी इसका पता नहीं होता। ऐसा हृदय थोड़े से प्रयास से उच्चतम ऊर्जा को शीघ्र प्राप्त कर सकता है।
ReplyDeleteप्राण साहब की बहुत खूबसूरत गज़ल पडने का अवसर दिया ..आभार
ReplyDeletepraan Sharmaaji ki sundar gajal...baar baar padhane par bhi man nahi bharata...yahi khaasiyat hai!....badhaai!
ReplyDeleteteesra sher lajwaab !
ReplyDeleteइतना खुबसूरत .... मन मिजाज खुस हो गया पढकर.
ReplyDeleteहोना था असर कुछ इस शहर भी उसका
ReplyDeleteमाना कि अँधेरी उस शहर चली थी
इक डूबता बच्चा कैसे वो बचाता
इन्सान था लेकिन हिम्मत की कमी थी
प्राण जी की गज़लें तो होती ही दिल मे उतरने वाली हैं आपकी आभारी हूँ ज़ो इतनी उम्दा गज़ल पढवाई…………………ये दो शेर तो गज़ब कर गये।
यारी की ही खातिर तू पूछता आ कर
ReplyDeleteक्या हाल मेरा , क्या चाल है मेरी
फुर्सत जो मिले तो तू देखने आना
इस दिल की हवेली अब तक है नवेली
पुरज़ोर हवा में गिरना ही था उनको
ए " प्राण " घरों की दीवारें थी कच्ची
Behtareen gazal chunee hai aapne...chand ashaar to gazab ke hain!
इक शोर सुना तो डर कर सभी भागे
ReplyDeleteकुछ मेघ थे गरजे बस बात थी इतनी
बहुत ही सुन्दर पंक्तियां ।
बहुत अच्छी ग़ज़ल दीदी। सच कहा है कि जिसकी नियत नहीं अच्छी उससे क्या दोस्ती क्या दुश्मनी। आभार प्राण शर्मा जी का।
ReplyDeleteहर शब्द लाज़बाब।
ReplyDeleteखूबसूरत ग़ज़ल ,
ReplyDeleteगा कर सुनाई जाए तो और भी अच्छी लगे
प्राण शर्मा जी की ग़ज़ल बहुत बढ़िया है!
ReplyDeleteZindagi ki galiyon se guzarti huyi Gazal.
ReplyDelete---------
मन की गति से चलें...
बूझो मेरे भाई, वृक्ष पहेली आई।
प्राण जी मेरे पसंदीदा ग़ज़लकारों में से एक है .... बहुत ही कमाल का लिखते हैं ... आम आदमी के लिए लिखते हैं ... नमन है उनकी लेखनी को ...
ReplyDeleteप्राण साहब की ग़ज़लें बहुत ही उम्दा होती हैं आभार आपका.
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब रचना, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
अच्छी रचना. ग़ज़ल के मिज़ाज़ की.
ReplyDeleteइक डूबता बच्चा कैसे वो बचाता
ReplyDeleteइन्सान था लेकिन हिम्मत की कमी थी
ओह...क्या बात कही है.....
सारे शेर मन में उतरने वाले...
इस सुन्दर रचना को रचने वाले कोमल ह्रदय और प्रखर लेखनी को शत नमन !!!
लाजवाब रचना ..
ReplyDeleteइक शोर सुना तो डर कर सभी भागे
ReplyDeleteकुछ मेघ थे गरजे बस बात थी इतनी
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं...ख़ूबसूरत ग़ज़ल पढवाने का शुक्रिया
निर्मला माँ,
ReplyDeleteनमस्ते!
आनंद! आनंद! आनंद!
आशीष
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पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!
बढ़िया ग़ज़ल है निर्मला जी ।
ReplyDelete1/10
ReplyDeleteनिहायत हल्की है ग़ज़ल.
भाव जरा भी नहीं ठहरते दिल में.
वाह-वाह पर न जाईये.
बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति .........
ReplyDeleteसुंदर गजल के आभार
ReplyDeleteअच्छी गजलें लेकिन आपकी बाकी की गजलों से पीछे रह गयीं...फिर भी दूसरा और तीसरा शेर अच्छा लगा..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर कभी कभी....
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ReplyDeleteफुर्सत जो मिले तो तू देखने आना
इस दिल की हवेली अब तक है नवेली....
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ये पंक्तियाँ इतनी खूबसूरत लगीं , कि शब्दों में बयान नहीं कर सकती। स्नेह और ममता रखने वाले पवित्र दिलों की हवेली सदैव नई नवेली ही रहती है। बहुत सुन्दर रचना निर्मला जी।
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कपिला जी
ReplyDeleteआदरणीय प्राण साहब की ग़ज़ल पेश करने का आभार....
अद्भुत ग़ज़ल.....!!!!!!!!!!!
ग़ज़ल के सारे कतए एक से बढ़कर एक थे......
मगर ये दिल को छू गया......
उड़ते हैं हजारों आकाश में पंछी
ऊँची नहीं होती परवाज़ हरिक की.....
बहुत उम्दा........!!!!!!
धन्यवाद! ...दिपावली की शुभ-कामनाएं!
ReplyDeletenirmala ji bahoot hi sunder nazm likhi hai aap ne..........
ReplyDeleteहोना था असर कुछ इस शहर भी उसका
ReplyDeleteमाना कि अँधेरी उस शहर चली थी !!
हालाँकि कविता/गजल वगैरह की अपनी समझ बिल्कुल जीरो है. बस जो मन को अच्छी लगी, हमारे लिए तो वही उम्दा रचना है और जो न समझ में आई तो बेकार :)
यहाँ दूसरे वाले शेर में "अन्धेरी" शब्द कुछ खटक सा रहा है. इसके बदले "आँधी" होता तो ज्यादा अच्छा लगता.
आप सब को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
ReplyDeleteहम आप सब के मानसिक -शारीरिक स्वास्थ्य की खुशहाली की कामना करते हैं.
aap log gyaani hai mujhe itna pata to nahi..jo mamooli samajh aur ehsaas hai usse ye vichaar hai ki kaafiye me zara kamee hai...vichaar zaror umdaa hai
ReplyDeletehttp://pyasasajal.blogspot.com/2010/10/blog-post.html