27 June, 2010

कर्ज़दार  अन्तिम  कडी।
अपने पति की मौत के बाद कितने कष्ट उठा कर बच्चों को पढाया प्रभात की शादी मीरा से होने के बाद प्रभात ने सोचा कि अब माँ के कन्धे से जिम्मेदारियों का बोझ उतारना चाहिये। इस लिये उसने अपनी पत्नि को घर चलाने के लिये कहा और अपनी तन्ख्वाह उसे दे दी। मगर माँ के विरोध करने पर तन्ख्वाह पत्नि से ले कर माँ को दे दी । बस यहीँ से सास बहु के रिश्ते मे दरार का सूत्रपात हो चुका था। अब छोटी बातें भी मन मुटाव के कारण बडी लगने लगी थी जिस से प्रभात और मीरा के रिश्ते मे भी दरार आने लगी------- अब आगे पढें------
माँ और पत्नि एक नदी के दो किनारे थे और वो इन दोनो के बीच एक सेतु था जो ममता की डोरियों पर झूल रहा था।सेतु के धरातल का कण- कण माँ के दूध का कर्ज़दार था। मगर पत्नी जो उसके लिये अपना सब कुछ छोद कर आयी थी उसके प्रति अपने फर्ज़ को भी जानता था। मगर उसे समझ नही आ रहा था कि करे तो क्या करेिसी लिये कभी जब पत्नि सेतु के एक छोर पर आ खडी होती और दूसरे पर माँ तो वो डर से थरथराने लगता। वो पत्नी के कदम वहीं रोक देता। वो ये भी जानता था कि वो पत्नी से अन्याय कर रहा है। पत्नी भी उस के प्यार और अधिकार की उतनी ही हकदार है जितनी माँ मगर अपनी बेबसी किस से कहे। दोनो पाटों की बीच वो छटपटा रहा था। उसे समझ नही आ रहा था कि क्या करे़? किसे नाराज करे और किसे खुश करे।
और उधर मीरा? उसने ससुराल मे आते ही सब को कितना प्यार दिया घर की जिम्मेदारी को सम्भाला। सास को कभी काम नही करने दिया। मगर अब जब उसे जरूरत है तो कोई उसकी तरफ ध्यान नही देता। उसके भी कुछ सपने थे। मगर घर की जिम्मेदारियों के बीच उसने अपने मन को मार लिया था। लेकिन अब हद हो चुकी है ।प्रभात को भी हर बात मे मेरा ही कसूर नज़र आता है। । तो फिर जीना किस के लिये । माँ बाप को भी क्या बताये? वो उसे यही कहेंगे कि जिस तरह भी हो एडजस्ट करो। फिर माँ और बाप खुद  अपने बेटे पर आश्रित हैं भाभियों के ताने सुनने से अच्छा है वो उनको कुछ भी न बताये। दो दिन दोनो की बोलचाल बन्द रही। वो जान चुकी थी कि इस एक छत्र साम्राज्य मे उसका पति  उसके साथ न्याय नही कर सकता।वो घुट घुट कर जीना नहीं चाहती थी।
दूसरे दिन रात को मीरा ने कीडे मारने की दवा खा कर अपना जीवन समाप्त कर लिया।

प्रभात उसकी माँ बहन पर केस बन गया मगर सभी से ये ब्यान दिलवा दिये कि माँ और बहन उस दिन घर मे नहीं थी प्रभात ने भी यही ब्यान दिये। दूसरे दिन रात को मीरा ने कीडे मारने की दवा खा कर अपना जीवन समाप्त कर लिया। प्रभात ने किसी तरह माँ और बहन को बचा कर शायद दूध का कर्ज़ उतार दिया था।
 वो पोलिस वैने मे बैठे हुये सिर्फ मीरा के बारे मे सोच रहा था।जो उसके प्यार मे बन्धी अपने माँ बाप अपनाघर छोड ल्कर उसके पास आयी थी --- उसके भरोसे एक निस्सहाय गाय की तरह। उसने उसकी कितनी इच्छाओं का गला घोंटा था ताकि माँ नाराज़ न हो।, जहाँ तक कि कितनी बार उसे डाँटा फटकारा भी था। क्यों वो माँ को कभी कुछ नही कह सका। आज इसी कारण वो मीरा की मौत का कारण बन बैठा।
वो सोच रहा था----  अब वो अपनी पत्नि का कर्ज़दार है। माँ का कर्ज़ तो उसने चुका दिया है।उसका एक छत्र राज्य बचा कर । अब वो जैसे चाहे रह सकती है। कोई उससे उसका कुछ नही छीनेगा।
 और अचानक उसने अपने साथ बैठे सिपाही की पिस्तौल छीनी और खुद को गोली मार ली------ "मीरा मैं आ रहा हूँ तुम से अपने गुनाहों की माफी माँगने।"
क्या आदमी की ऐसी  ज़िन्दगी औरत के दुख से भी दर्दनाक नही? क्यों वो खुद को माँ और पत्नी के बीच  असहाय पाता है? आप सब क्या सोचते हैं इस समस्या के बारे मे।

और सब सोच रहे थे कि एक माँ बेटे  के लिये जो संघर्ष करती है उसका खामिआज़ा अपनी बहु से क्यों बसूलना चाहती है। अगर बेटों की माँयें इतनी बात समझ जायें तो कितने ही घर तबाह होने से बच जायें। समाप्त।
नोट-- ये कहानी मैने वीर बहुटी पुस्तक मे इसी रूप मे छपवाई थी मगर एक बार दैनिक जागरण को भेजी तो उसके सम्पादके श्री अजय शर्मा जी ने इसका अन्त बदल दिया कि इसका अन्त प्रभात की मौत नही बल्कि सजा तक ही सीमित रहना चाहिये। ये 2006 की बात है मै उन दिनो अमेरिका मे थी और मैने उनसे कह दिया कि जैसे वो चाहें अन्त कर दें। आज मुझे वो अखबार नही मिला ,इस लिये जस की तस यहाँ लिख दी। मगर इसमे अन्त जो भी हो दुखद ही रहेगा। ये असल मे भी इसी तरह थी कहानी केवल पात्र और कुछ घटनायें बदली हैं।
अगली कहानी दहेज हत्या मे वकीलों की भूमिका पर होगी। धन्यवाद।

37 comments:

  1. ओह दुखांत कथा ..दुखांत कहानियां मुझे विचलित कर जाती हैं !

    ReplyDelete
  2. अंत की ओर कहानी ने अनापेक्षित मोड़ ले लिया । भला कोई इस तरह भी अपनी जिंदगी ख़त्म करता है । दोनों ही आत्महत्याएं निरर्थक रही । विशेषकर प्रभात का इस तरह क़र्ज़ चुकाना गलत सोच का नतीजा है ।

    मां का क़र्ज़ , फ़र्ज़ के साथ पूरा हो जाता है । एक निश्चित अवधि के बाद अपने परिवार पर ध्यान न देना बेवकूफी है ।

    ReplyDelete
  3. कहानी का अंत दर्दनाक ही हो सकता था। यह समाज में हो भी रहा है। यह कहानी उस यथार्थ को चित्रित भी करती है। लेकिन लेखक का कर्तव्य यह भी है कि जिस दुविधा में पति पड़ा हुआ है और निकल नहीं पा रहा है उस से निकलने का मार्ग उसे दिखाए। आप इन्हीं पात्रों और कहानी को इस विचार के साथ आगे बढ़ा सकती हैं। निश्चित रूप से इस कहानी में एक उपन्यास का कलेवर था। इस में माँ, पुत्र और उसकी पत्नी के मन के अंतर्द्वंद दिखाए जा सकते थे। यहाँ पत्नी अपने पैरों पर खड़ी थी वह अपने पति से अलग होकर भी इस संघर्ष को लड़ सकती थी। फिर उस के साथ कुछ दूसरे पात्र भी हो सकते थे। मैं समझता हूँ कि यह समस्या आप से एक उपन्यास की मांग करती है।
    अगली कहानी की विशेष प्रतीक्षा रहेगी। शायद मुझे आईना दिखाए।

    ReplyDelete
  4. कहानी अप्रत्याशित रूप से दुखद अंत की ओर मुड कर स्तब्ध कर गयी ! इतनी समझदार बहू और इतने समझदार बेटे से इतनी नादानी की अपेक्षा नहीं थी ! पाठक साहित्य में अपनी निजी समस्याओं के समाधान भी ढूँढते हैं और कहानीकार का दायित्व हो जाता है कि वह कहानी में वर्णित समस्या का तर्कपूर्ण और युक्तिसंगत समाधान पाठक को सुझा कर उसकी चिंताओं का निदान भी करे और उसे एक सकारात्मक सोच के लिए प्रेरित भी करे ! ऐसी परिस्थितियों में फंसे पाठकों को कहानी का अंत विचलित और दिग्भ्रमित कर सकता है ! यह मेरा विचार है ! अन्यथा न लीजियेगा ! आपका लेखन कितना प्रभावशाली है इसी बात से जान लीजिए कि आज कहानी का अंत पढ़ कर मन इतना खिन्न हो गया है कि किसी भी काम को हाथ में लेने की इच्छा नहीं हो रही है !

    ReplyDelete
  5. इस दुखद अंत के साथ कहानी खत्म होगी नहीं सोचा था...मीरा की इस तरह आत्महत्या करने की बात कुछ विचलित कर गयी...शायद ही जाती होगी ऐसी मानसिक हालत की सोचने समझाने की ताकत खत्म हो जाये..छोटी छोटी बातें जीवन में कितना बड़ा रूप ले लेती हैं यही यह कहानी बताती है...

    ReplyDelete
  6. दिवेदी जी निश्चित ही ऐसा ही अन्त होता है ऐसी कहानियों का जहाँ पति पत्नि और सास का आपस मे तालमेल न हो। असल मे इस समस्या से निकलने का समाज ने आदमी के पास कोई विकल्प नही छोडा है अगर पत्नी की पक्ष ले तो लोग जोरू का गुलाम कहते हैं अगर माँ का पक्ष ले तो मीरा जैसा हाल होता है। इस कहानी मे यही कहने की कोशिश की गयी है कि माँ को भी इस बात का एहसास होना चाहिये कि बेटे बहु पर अनावश्यक दवाब न डाले ताकि अन्त इस तरह ना हो। मेरी बहुत सी कहानियां उपन्यास मे परिवर्तित होने वाली हैं लेकिन समय नही दे पा रही। आप सब का धन्यवाद। मुझे अफसूस है कि दुखद अन्त से आप सब का मन दुखी हुया मगर समाज मे ऐसा ही हो रहा है। वो खुद को गोली न भी मारता तो जेल का जीवन जीता वो भी किसी मौत से कम नहीं। जहाँ उसे रोज रोज मरना पडेगा। सब का शुक्रिया।

    ReplyDelete
  7. Bahut achhee kahanee hai. Aatm hatya hal nahi yah kahne waale yah bhool jate hain,ki,yah jeevan kee sachhayi hai. Samaj me aisa hota raha hai...hota rahega..ant badal dene se saty nahee badl jata.

    ReplyDelete
  8. बहुत ही बढ़िया कहानी .....समाज के एक आम जीवन को सबक सिखाती ये कहानी .....अंत दुखद था .

    ReplyDelete
  9. संवेदनशील, मार्मिक और संदेशप्रद, और क्या चाहिए एक कहानी में।
    आभा दीदी।

    ReplyDelete
  10. यह एक कहानी मात्र नही एक सचाई ही है, क्योकि ऎसा होता है, मां जिस बेटे को पाल पोस कर बडा करती है , शादी के बाद उसे ही सब से ज्यादा दुख पहुचाती है, ओर अगर बेटा मां बाप की इज्जत करता हो, उन की सेवा करता हो तो उसे ज्यादा दुख पहुचाती है सिर्फ़ अपने अंह के कारण, इस कहानी का अन्त ऎसे ही होना था... अब मां पुरे घर पर अपना राज करे....
    प्रभात अगर शुरु से ही समभल कर रहता तो शायद ऎसी सिथित ना आती

    ReplyDelete
  11. निर्मला जी ,
    बेहद प्रभावशाली लेखन ....
    आपने हर घटना को सच्चाई के साथ पेश किया ....
    ऐसी स्थितियों में मासूम दिल ऐसे ही डिप्रेशन में आ आत्महत्या का रास्ता चुन लेते हैं ....
    कहानी में कोई बनावटीपन नहीं ..
    ये तो पाठक को सोचना है कि कहाँ क्या गलत था जो नहीं होना चाहिए था .....
    बहुत बहुत बधाई ....

    ReplyDelete
  12. जब तक घर के बडे अपनी सत्ता नही छोडेंगे यही हश्र होगा क्युंकि हर कोई इतना दबाव नही सह सकता …………ये आज के वक्त की जरूरत बन गयी है कि बच्चों को भी अपने ढग से जीने दिया जाये जब शादी की है तो वो एक समझदार इंसान बन गये हैं और उनकी अब एक जिम्मेदारी और बढ गयी है ये हर माँ बाप को समझना चाहिये ना कि जरा सा यदि पत्नी की तरफ़ ध्यान दे दे तो उसे जोरु के गुलाम का तमगा दे दिया जाये…………ऐसी सोच रखने वालों को तो अपने बच्चों को अपने आँचल मे ही छुपाये रखना चाहिये ……………जब तक इंसानी सोच नही बदलेगी हादसे होते ही रहेंगे।बेशक कहानी का अंत दुखद है मगर ये भी एक सच है जो कडवा होता है।

    आपकी पोस्ट कल के चर्चा मच पर होगी।

    ReplyDelete
  13. ये संतुलन ही तो एक ऐसी चीज है जो नहीं हो पाता। कभी भावनाओं का असंतुलन, कभी काम के बीच कम संतुलन, कोई बैठा पाता है तो कोई नहीं। कोई जबरदस्ती संतुलन बैठाता है तो कोई रो रो कर। सवाल वहीं आ जाता है कि आदमी क्या करे। उसे दोनो तरफ देखना होता है। पर जरा दोनो ही महिलाओं को देखना चाहिए की जिसे वो दवाब में रख रहे हैं वही उनकी धूरी है। अगर वो टूट गई तो। पर अफसोस होता यही है कि धूरी अनावश्यक दवाब में या तो टूट जाती है या फिर लचक जाती है।

    ReplyDelete
  14. मेरा नाम शम्बूक है।"
    शम्बूक की बात सुनकर रामचन्द्र ने म्यान से तलवार निकालकर उसका सिर काट डाला। जब इन्द्र आदि देवताओं ने महाँ आकर उनकी प्रशंसा की तो श्रीराम बोले, "यदि आप मेरे कार्य को उचित समझते हैं तो उस ब्राह्मण के मृतक पुत्र को जीवित कर दीजिये।" राम के अनुरोध को स्वीकार कर इन्द्र ने विप्र पुत्र को तत्काल जीवित कर दिया। http://hindugranth.blogspot.com/

    ReplyDelete
  15. sach bahut dardnaak kahani rahi ,aadmi aksar do patan ke beech pis jaata hai vevajah ,isliye aurato ko aapas me hi hal nikaal lena chahiye ,vahi rishte majboot bante hai .

    ReplyDelete
  16. बहुत ही यथार्थपरक कहानी है...लड़के बिचारे बीच में ऐसे ही पिस जाते हैं...एक को खुश रखने के चक्कर में दूसरे के साथ अन्याय कर जाते हैं. लड़के की माँ को समझना चाहिए ,अपनी ज़िन्दगी तो जी लीं..अब अपने बेटे-बहू को जीने दें.

    ReplyDelete
  17. कथा अपने सन्देश-सम्प्रेषण में सफल रही है!

    ReplyDelete
  18. कहानी का अंत दुःखद है...लेकिन कहानी सशक्त होने की वजह से इसे बर्दाश्त करने का काम आसान हो जाता है!... आप की कहानी का प्रस्तुतिकरण प्रशंसनीय है निर्मलाजी, धन्यवाद!

    ReplyDelete
  19. kahani ne ant tak bandhe rakha aur hamesha agli kadi ka intzar bhi raha. aapki kahani lekhan ki safalta aur sakshamta meri isi bhawna se aap jaan sakti hain. kahani aam grehsthi logo ki kahani he aur ham sab k gharo me hoti ghatnao ki kahani hote hue bhi khaas rahi..aur agar isme kuchh asliyet he to ant aisa nahi hona chahiye tha...vo bhi itne samajhdar couple hone k bavjood. aur bhi kayi raste hote hai, solution hote hai.
    bt in all way aap ka lekhan prashansneey hai.

    aabhar.

    ReplyDelete
  20. बहुत अच्छी लगी कहानी मार्मिक है पर सच ही है और प्रस्तुती तो बहुत बेहतरीन है

    ReplyDelete
  21. समाज को एक सीख देती ये कहानी बहुत ही अच्छी लगी...बेहद यथार्थपरक!

    ReplyDelete
  22. एक भावनाप्रधान कहानी. माँ का क़र्ज़ तो चुकता होने के बजाये बढ़ ही गया.

    ReplyDelete
  23. मैं दाराल जी से सहमत हूँ ...दोनों ही आत्महत्याएं निरर्थक थी ....यह कोई ऐसा मुद्दा नहीं था जिसके लिए अपनी जान गँवा दी जाये ....मीरा ने बहुत ही कायराना कदम उठाया ...अपराध बोध के कारण अपनी आत्महत्या कर बैठा उसका पति फिर भी सहानुभूति के योग्य है ...पति- पत्नी की थोड़ी सी समझदारी और आपसी समझ इस दुखांत कहानी का अंत बदल सकती थी ...

    ReplyDelete
  24. माता जी, समाज और परिवार से जुड़ी कहानी का अंत बहुत ही कम सुखमय होता है क्योंकि जीवन में हम दुखों को ज़्यादा याद करते है..एक बढ़िया संदेश देती हुई भावपूर्ण कहानी है बेटे के लिए और माँ के लिए भी हर लोग ज़्यादातर मामलों में बेटे और बहू को दोषी देते है पर सच्चाई यही है की कहीं न कहीं ग़लतियाँ दोनों ओर से रहती है.

    बहुत बढ़िया कहानी माता जी प्रणाम और इस कर्ज़दार कहानी के लिए धन्यवाद जो आपने हम सभी को पढ़ने का मौका दिया..

    सादर प्रणाम

    ReplyDelete
  25. चाचा जी क्या बात है बारिश की इतनी बढ़िया और रोचक वर्णन मज़ा आ गया ...आपके पास छतरी थी पर मैं तो भींग गया..

    झम-झाम-झम झम.....

    ReplyDelete
  26. इस कहानी का दुखद अंत इंगित करता है, जीवन की छोटी-छोटी बातों को जिन्‍हें कभी हम मामूली समझते हैं, उन्‍हीं बातों को कोई इस कदर दिल से लगा बैठता है कि अपने जीवन का अंत कर लेता है, और हम गौर करते हैं तब कि यह बात इतनी मामूली नहीं थी, वास्‍तविकता के पलों को साकार करती यह कहानी एक शिक्षा भी देती है बशर्ते ग्रहण करने वाले का नजरिया भी वही हो ।

    ReplyDelete
  27. मर्मस्पर्शी रचना...सुन्दर संयोजन.

    ***************************
    'पाखी की दुनिया' में इस बार 'कीचड़ फेंकने वाले ज्वालामुखी' !

    ReplyDelete
  28. bahut hi dukhad end hua kahani ka,kaash maa thoda samjhdari se kaam leti.

    ReplyDelete
  29. अंत अच्छा नहीं लगा. ऐसा भी लगा कि अंतिम कड़ी में कुछ जल्दबाजी है.

    ReplyDelete
  30. मर्मस्पर्शी रचना...!!

    ReplyDelete
  31. kahani achchhee hai lekin ant nahin pach paa rahaa. ek sahityakaar ki nazar se prabhat ko ziyada paripakv dikhaya ja sakta tha. aapne to sachchaayee bayaan kar di lekin sahityakaar ka kam kewal sach -sach bayaan karna nahi hai varan usase aage raasta dikhana hai. ek aam aadmi jahaan tak soch sakta hai sahityakaar vahaan se aage sochata hai.

    ReplyDelete
  32. सर्वप्रथम आपको प्रणाम करना चाहूंगा स्वीकार करियेगा। बहुत ही दिल को छू जाने वाली कहानी है। और किंचित रुला देने वाली भी। अब लगता है शनैः शनैः समय बदलता जा रहा है। हो सकता है सास को भी बहू की भूमिका निभाये हुए दिन याद आते हों, या कहें सास-बहू के झगड़ों के कारण बेटे का दिल न दुखे यह सोचकर और यह भी हो सकता है कि बहू भी सहज तरीके से सास को समझाने मे कामयाब होती हो और सबसे बड़ी बात आज सास डरती हो कि कहीं बहू की जरा सी हरकत उसकी इज्जत की मिट्टी पलीद न कर दे, आज सास बहू के बीच सामन्जस्य स्थापित होता दिखाई पड़ता है। बस थोड़ी देर के लिये बहू सास को अपनी मां के रूप मे और सास बहू को अपनी ही बेटी के रूप मे देखे,फिर देखिये एक खुशहाल परिवार का जलवा। यह मेरी अभिव्यक्ति है। आपकी कहानी बहुत ही मर्मान्तक लगी खासकर बेटे की भूमिका का चित्रण "दो पाटन के बीच मे साबुत बचा न कोय" को चरितार्थ करते हुए। आभार!

    ReplyDelete
  33. इस कहानी को में फॉलो कर रहा था ... किसी काम से बाहर जाना पड़ा तो पढ़ नही पाया ...आज पढ़ा है ...
    आपने इस समस्या को बहुत ही प्रभावी तरीके से रखा है ... अंत दुखांत है बहुत ही ...

    ReplyDelete
  34. He nudged her legs even further apart He savored the warmth and inner firmness of her legs, as his hands caressed the feminine contours of those long tapering limbs sheathed in smooth black nylon, while she quivered under his touch. All this sat below apronounced clitoral hood with a pink bud peeking from it, above which was aclosely trimmed V of kinky fur that pointed at it like an arrow.
    chub gay true sex stories
    sexy truth or dare stories
    mom son taboo stories
    teen porn stories
    xxx mexican sex stories
    He nudged her legs even further apart He savored the warmth and inner firmness of her legs, as his hands caressed the feminine contours of those long tapering limbs sheathed in smooth black nylon, while she quivered under his touch. All this sat below apronounced clitoral hood with a pink bud peeking from it, above which was aclosely trimmed V of kinky fur that pointed at it like an arrow.

    ReplyDelete

आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी प्रेरणा है।