दो दिन दिल्ली गयी थी इस लिये किसी ब्लाग पर नही आ सकी और न ही कुछ नया लिख सकी। फिर भी महिला दिवस हो तो सोचा कुछ तो लिखना ही चाहिये। इस लिये एक पुरानी कविता ठेळ रही हूँ। कल दिल्ली मे रंजू भाटिया जी और बेटे प्रकाश सिंह अर्श से मिली बहुत अच्छा लगा। मिलना तो बहुत से लोगों से चाहती थी मगर समय की कमी से मिल नही पाई। रंजू जी और अर्श का धन्यवाद अर्श तो गाज़ियाबाद से मुझे मिलने के लिये आया। अभोभूत हूँ।
अन्तर्राष्टिय महिला दिवस
(व्यंग कविता)
अन्तर्राष्टिय महिला दिवस
(व्यंग कविता)
आज महिला दिवस उस पर ये छुट्टी
हमने भी इसे मनाने की हठ कर ली
सोच लिया कि अपना अधिकार जताना है
हमे महिला मीटिंग मे जाना है
सुबह उठते ही हमने किया ऎलान्
हमारे तेवर देख कर पती थे हैरान
आज गर्व से अपना चेहरा था तमतमाया
उस पर महिला दिवस का था रंग छाया
पती से कहा उँची आवाज़ मे
आज से हम महिला मीटिंग मे जायँगे
एक सप्ताह तक आप घर चलायेंगे।
आज का विषेश दिन हम अपनी
आज़ादी से शुरु करते हैं
आप सम्भालो घर की चारदिवारी
हम महिला मीटिंग मे चलते हैं
तुम बच्चों को खिला पिला कर
स्कूल पहुँचा देना
घर के काम काज से निपट
माँ की टाँग दबा देना
बर्तन चौका सब निपटाना समय पर
हम रात को देर से लौटेंगे घर
बस फिर हफ्ता भर हमने
पती को खूब नचाया
महिलायों के जीवन का
वास्तविक दृ्ष्य दिखलाया
हमने अपन अधिकार दिखा
कर धूम मचा दी
सदियों से चली आ रही
पती प्रथा की नींव हिला दी
तब सोचा ना था कि
ये महिला दिवस
इतना रंग लायेगा
कि अपने घर का
इतिहास बदल जायेगा
हास्य तो बढ़िया था, लेकिन बहुत कठिन है महिला की जिन्दगी.
ReplyDelete"बढ़िया रचना है........"
ReplyDeleteप्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com
bahut Khoob...... Badhaai
ReplyDeleteJo jindgii deti hai usi kay liye aarakshan??? Kaisee vidambnaa hai..
मम्मा....यह व्यंग बहुत अच्छा लगा.....आपको नारी दिवस की हार्दिक शुभकामनायें ...........
ReplyDeletebadhiya vyangya hai nirmala ji....badhaai
ReplyDeleteहा हा हा बहुत सुन्दर ,निर्मला जी ऐसा ही कुछ स्वप्न देख रही थी करवट ली और बिस्तर से गिर पड़ी छुट्टी तो लेनी पड़ी ,एक पंथ दो काज हो गया ....
ReplyDeletemaza aa gaya.........are bhai hamara ghar hamare panap rahe rishte hee hamaree pahichan hai.........:)
ReplyDeleteहा हा ...क्या कविता है...काश एक हफ्ते के लिए नहीं...एक दिन के लिए ही सही हो जाए...बहुत बढ़िया व्यंग...
ReplyDeleteMaasi meri taraf se to 365 din hi mahilaon ke liye hone chahiye aap 1 din ya 1 hafte se kaise khush ho sakti hain.. :)
ReplyDeletevyang thoda aur bada hota ya kuchh aur twist hoa to behtar banta.. jane kyon sapat sa laga meri samajh ko to.. maaf karna
kavaita to bahut achhi hai lekin aap se ek shikaayat hai..
ReplyDeleteaap delhi aayeen aur mujh se bina mile he chali gayeen...
mujhe agar pata hota to main bhi zarur aap se aashirwaad lene aata...
aahat hoon main :-(
निर्मला जी, पहले तो आपके ब्लाग के नये कलेवर के लिए बधाई, बड़ा ही अच्छा लग रहा है। महिला-दिवस की कविता भी अच्छी है। बधाई।
ReplyDeleteकि घर का इतिहास बदल जायेगा .....!!
ReplyDeleteकि घर का इतिहास बदल जायेगा .....!!
ReplyDeleteमीठा व्यंग्य ...!!
अच्छा व्यंग है ... आशा है आपकी यात्रा सुखद रही होगी ...
ReplyDeleteहा हा हा बहुत सुन्दर ,अच्छा व्यंग है.आपको नारी दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.
ReplyDeleteहा हा हा हा ..मेरा सुन्दर सपना टूट गया...................काश ऐसा हो जाये..बढ़िया व्यंग.
ReplyDeleteIt is a gud satire ...
ReplyDeleteCongrats for the New Look of Your Blog...
Pls do read mine poem on Women's day if you get time ...
Thanx
--- Rakesh Verma
निर्मला जी आपसे मिलना बहुत अच्छा लगा .लगा ही नहीं की पहलीबार मिल रही हूँ ..बहुत सही व्यंग लिखा है आपने .ब्लॉग नए रूप में बहुत अच्छा लग रहा है ...
ReplyDeleteaadarniya nirmala ji,-bahut koob likha aapane to.
ReplyDeletetab socha na tha ki ye mahila diwasitana rang jamayega ki ek din apane ghar ka iti haas badal jaayega.bahut aanand aaya padh kar.
poonam
निर्मला जी अगर हमारे घर मै इस तरह से महिला दिवस मानाया गया तो हम बाप बेटा तो पागल हो जायेगे,क्योकि हमारी बीबी ने सब को अपना गुलाम ,
ReplyDeleteना बाबा ना, ओर हमारी बीबी भी नही मनाना चाहती यह दिवस, जो मानते है उन्हे बधाई
आदरणीया,
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आ सका क्षमा प्रार्थी हूँ......
महिला दिवस पर आपका व्यंग सटीक है.......फिर भी महिला दिवस की बधाई आपको देने से खुद को नहीं रोक प् रहा हूँ....!
महिला दिवस पर एक बहुत अच्छी प्रस्तुती धन्यवाद. आपने तो अपने घर का इतिहास बदल लिया पर एक हफ्ते के बाद क्या घर का हाल देख कर आपको ऐसा नहीं लगा की घर का भूगोल भी बदल गया, उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम का कोई छोर मिला क्या? चलो मैं भी कोशिश करके देखूं !!!!
ReplyDeleteहा हा हा ! सचमुच घर का इतिहास बदल गया ।
ReplyDeleteबढ़िया हास्य -व्यंग रचना ।
आपके ब्लॉग का बदला हुआ रूप बहुत पसंद आया ।
धन्यवाद!!
ReplyDelete.
.
ऐसे मनाये महिला दिवस
सर्वसाधारण के हित में >> http://sukritisoft.in/sulabh/mahila-diwas-message-for-all-from-lata-haya.html
बहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteरामराम.
निर्मला जी
ReplyDeleteदिल्ली आ कर चले भी गए :((
और महिला दिवस की बधाई के साथ साथ मजेदार व्यंग के लिए भी बहुत बधाई !!..:))))
sadar !
तब सोचा ना था कि
ReplyDeleteये महिला दिवस
इतना रंग लायेगा
कि अपने घर का
इतिहास बदल जायेगा...
vaah,gzb.
महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeletewah nirmalaji, bahut sunder vyangya rachna, mahila divas par.
ReplyDeleteब्यंग की बात करूँ की आपसे मिलने की दोनों ही सुखद अनुभूति प्रदान कर रहा है ... मगर काजू की कतली उफ्फ्फ्फफ्फ़ आपको कैसे पता ...:)
ReplyDeleteअर्श
सशक्त रोचक अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteनारी-दिवस पर मातृ-शक्ति को नमन!
maja aa gaya rachna ko padh kar
ReplyDeleteaur sara vrataant..chalchitr ban kar
ghoom gaya..
dekha chalchitr me baal bikhre hue pati dev ke...
aur baccho ko unki lungi idhar se udhar kheechte hue...
raat ko tum laut k aayi to pati farsh par pade behosh the..
taang kya dabate maa ki, vo khud hi murchhit se maa ki god the..
pakad rahe the pair jab laut k aayi aap
kaan pakad ke bole na sataunga tumhe..na dunga aadesh
le lo shapath chahe meri ikloti maa ki.
(HA.HA.HA.HA.HA.HA.)
आपने तो दिन में तारे दिखवा दिए....बहुत बढ़िया हास्य :):)
ReplyDeleteha ha ha idea to mazedaar bataya hai aapme :)
ReplyDeleteMahila Diwas ki shubhkaamnaae!!
रचना बहुत ही बढ़िया व्यंग के रूप में
ReplyDeleteकिन्तु आश्चर्य की बात यह है इस संस्कार प्रधान देश में रिश्ते नातों को
याद किया जा रहा है "दिवस" के रूप में
Mother's day, Father's day, Women's day
आदि आदि. क्या इन दिवसों के बिना अनवरत प्रगाढ़
प्रेम कायम नहीं रह सकता ??
...और फिर नींद खुल गई होगी :)
ReplyDelete:))))))
ReplyDeletewaah bharpur aanand liya ,adhikaar par haq jatana bhi jaroori hai .bahut sundar
ReplyDeleteरोचक प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह-वाह... निर्मलाजी, हास्य-व्यंग पढ़कर
ReplyDeleteआनंद आ गया! काश ऐसा कोई हफ्ता
वाकई आये...पतिदेव घर को कबाडखाना
चौके को कबाड़ी की दुकान बना कर रख
देंगे, बच्चे स्कूल नहीं जा पाएंगे और खाना
रोज़ होटल से आएगा हा-हा-हा....!!
बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत उम्दा लेखन निर्मला जी
http://www.kavyasansad.online/2020/03/blog-post_95.html
ReplyDelete" महिला दिवस पर विशेष "
ReplyDelete••••••••••••°°°•••••••••••••
कौन कहता है महिला दिवस साल में एक दिन है होता
सच पूछो तो यारों महिला के बिना एक भी दिन नहीं होता ।
ना सुबह होती ना शाम होती ,ना दोपहर होता ना रात होती है
नारी के बिना ना चाय नाश्ता, ना लंच - डिनर ही मिलती है ।
मां की ममता बहन का दुलार, बेटी और पत्नी का प्यार ...और क्या
जिनके जीवन में ये मिल जाए , उससे ज्यादा कोई खुशनसीब नहीं
तू ही दुर्गा, तू ही लक्ष्मी, तू ही सीता सावित्री , तू ही ,सरस्वती
तू ही इंदिरा,तू ही टेरेसा, तू ही झांसी की रानी , लता मंगेशकर तू।
तारीफ करूं क्या उसकी , जिसने तुम्हें बनाया
ईश्वर की उस सुंदर कृति को हमने आज सलाम फरमाया
महिला दिवस पर समस्त मातृ शक्ति को नमन, वंदन और अभिनन्दन।
एस के नीरज