हज़ल
होली की आप सब को हार्दिक शुभकामनायें
आज कहानी की आखिरी किश्त बीच मे रोक कर अपने छोटे भाई पंकज सुबीर के आदेश पर ये हज़ल पेश कर रही हूँ आप जानते हैं कि रिटायरी कालोनी मे तो होली मनाई नही जाती, तो हमने सोचा कि पंकज सुबीर के मुशायरे मे चलते हैं लेकिन वहाँ जा कर क्या हाल हुया ये आप सब देख लें । इस भाई ने तो मुझे वो जूते पडवाये कि बस पूछो न। लेने के देने पड गये । कहते कि हज़ल लिखो बाप रे इतनी मुश्किल बहर दे दी मगर हम भी कहाँ कम थे---दे तडा तड वो जूते बरसाये कि होली का आनन्द आ गया हमे कहा कि खूब गोबर जूतों का इस्तेमाल करो। तो आप देखिये कैसे खेली हम ने होली। पहली बार हज़ल लिखी है बुरा न मानो होली है। मिसरा था-----
उतारो जूतों से आरती अब सनम जी आये गली हमारी
छोटे भाई ने पता नही किस जन्म का बदला लिया। पतिदेव ने पढ कर हमारे जूते से ही हमारी होली मना दी--- हा हा हा।और सब से बडी खुशखबरी कि उन्हें उनके उपन्यास पर नवलेखन ग्यान पीठ पुरुस्कार मिला है जिस के लिये उन्हें बहुत बहुत बधाई।
हज़ल
बहार ले कर है आयी होली खुशी मनाये गली हमारी
उतारो जूते से आर्ती अब सजन हैं आये गली हमारी
सखी ले आना तगारी गोबर गुलाल ले कर उसे सजाना
करो सुवागत जु शान से वो ठहर न पाये गली हमारी
अबीर कीचड मिला बनायें जरा सा उबटन लगे सजीला
खिलाऊं घी गुड चुरी उसे जो पकड के लाये गली हमारी
बना सखी हार चप्पलों से सडे टमाटर पिरोना उपले
है चाहता तो गधे पे चढ कर चला वो आये गली हमारी
निगाह उसकी मुझे है ढँढे मै बचती छुप छुप सखी के पीछे
बने वो छैला कहे है लैला मुझे सताये गली हमारी
करूँ विनय लो न भाँग धतूरा अभी है मेरी नज़र शराबी
सजी धजी सजनी ले के डंडा तुझे बुलाये गली हमारी
बहुत सताया मुझे है पर अब मै गिन के बदले करूँगी पूरे
बुरा न मानो शुगल करें जो होली मनाये गली हमारी
मुझे सताये बना बहाने बता भला ये उमर है कोई
चखाऊँ उसको बना के भुर्ता मजे से खाये गली हमारी
हैं दाँद नकली चढा है चश्मा झुकी कमर है बने जवाँ वो
ले धूल मिर्ची बुरक उसे जो ये छब बनाये गली हमारी
करो पिटाई करो ठुकाई बुढू को देखो बना मजाजी
मजा चखाऊँ उसे बताऊँ कभी जु आये गली हमारी
निरा ही लम्पट न शक्ल सूरत मलो तो चून औ चाक मुँह पर
बना के जोकर नमूना उसको उठा दिखाये गली हमारी
ये ब्लाग दुनिया हुयी चकाचक बिखर रही है खुशी जहाँ मे
सुबीर लाये रंगीन होली हसे हसाये गली हमारी
सजे ये होली सजें नशिश्तें सभी तरफ हो खुशी मुहब्बत
मुबारकें है सलाम भी है यूँ खिलखिलाये गली हमारी।
होली की आप सब को हार्दिक शुभकामनायें
आज कहानी की आखिरी किश्त बीच मे रोक कर अपने छोटे भाई पंकज सुबीर के आदेश पर ये हज़ल पेश कर रही हूँ आप जानते हैं कि रिटायरी कालोनी मे तो होली मनाई नही जाती, तो हमने सोचा कि पंकज सुबीर के मुशायरे मे चलते हैं लेकिन वहाँ जा कर क्या हाल हुया ये आप सब देख लें । इस भाई ने तो मुझे वो जूते पडवाये कि बस पूछो न। लेने के देने पड गये । कहते कि हज़ल लिखो बाप रे इतनी मुश्किल बहर दे दी मगर हम भी कहाँ कम थे---दे तडा तड वो जूते बरसाये कि होली का आनन्द आ गया हमे कहा कि खूब गोबर जूतों का इस्तेमाल करो। तो आप देखिये कैसे खेली हम ने होली। पहली बार हज़ल लिखी है बुरा न मानो होली है। मिसरा था-----
उतारो जूतों से आरती अब सनम जी आये गली हमारी
छोटे भाई ने पता नही किस जन्म का बदला लिया। पतिदेव ने पढ कर हमारे जूते से ही हमारी होली मना दी--- हा हा हा।और सब से बडी खुशखबरी कि उन्हें उनके उपन्यास पर नवलेखन ग्यान पीठ पुरुस्कार मिला है जिस के लिये उन्हें बहुत बहुत बधाई।
हज़ल
बहार ले कर है आयी होली खुशी मनाये गली हमारी
उतारो जूते से आर्ती अब सजन हैं आये गली हमारी
सखी ले आना तगारी गोबर गुलाल ले कर उसे सजाना
करो सुवागत जु शान से वो ठहर न पाये गली हमारी
अबीर कीचड मिला बनायें जरा सा उबटन लगे सजीला
खिलाऊं घी गुड चुरी उसे जो पकड के लाये गली हमारी
बना सखी हार चप्पलों से सडे टमाटर पिरोना उपले
है चाहता तो गधे पे चढ कर चला वो आये गली हमारी
निगाह उसकी मुझे है ढँढे मै बचती छुप छुप सखी के पीछे
बने वो छैला कहे है लैला मुझे सताये गली हमारी
करूँ विनय लो न भाँग धतूरा अभी है मेरी नज़र शराबी
सजी धजी सजनी ले के डंडा तुझे बुलाये गली हमारी
बहुत सताया मुझे है पर अब मै गिन के बदले करूँगी पूरे
बुरा न मानो शुगल करें जो होली मनाये गली हमारी
मुझे सताये बना बहाने बता भला ये उमर है कोई
चखाऊँ उसको बना के भुर्ता मजे से खाये गली हमारी
हैं दाँद नकली चढा है चश्मा झुकी कमर है बने जवाँ वो
ले धूल मिर्ची बुरक उसे जो ये छब बनाये गली हमारी
करो पिटाई करो ठुकाई बुढू को देखो बना मजाजी
मजा चखाऊँ उसे बताऊँ कभी जु आये गली हमारी
निरा ही लम्पट न शक्ल सूरत मलो तो चून औ चाक मुँह पर
बना के जोकर नमूना उसको उठा दिखाये गली हमारी
ये ब्लाग दुनिया हुयी चकाचक बिखर रही है खुशी जहाँ मे
सुबीर लाये रंगीन होली हसे हसाये गली हमारी
सजे ये होली सजें नशिश्तें सभी तरफ हो खुशी मुहब्बत
मुबारकें है सलाम भी है यूँ खिलखिलाये गली हमारी।
माँ जी पढ़ तो पूरा लिया अच्छा भी लगा परन्तु समझ कम ही आया , आपको होली की बहुत -बहुत बधाई ।
ReplyDeleteहोली पर ढेरों शुभकामनाएँ!!!
ReplyDeleteMaasi ji maaf karna abhi padh nahin raha warna agar maine bhi gazal likhi to is wali gazal ka effect aa jayega uspar.. main bhi koshish karta hoon tarhee par likhne ki..
ReplyDeleteइस बार रंग लगाना तो.. ऐसा रंग लगाना.. के ताउम्र ना छूटे..
ना हिन्दू पहिचाना जाये ना मुसलमाँ.. ऐसा रंग लगाना..
लहू का रंग तो अन्दर ही रह जाता है.. जब तक पहचाना जाये सड़कों पे बह जाता है..
कोई बाहर का पक्का रंग लगाना..
के बस इंसां पहचाना जाये.. ना हिन्दू पहचाना जाये..
ना मुसलमाँ पहचाना जाये.. बस इंसां पहचाना जाये..
इस बार.. ऐसा रंग लगाना...
(और आज पहली बार ब्लॉग पर बुला रहा हूँ.. शायद आपकी भी टांग खींची हो मैंने होली में..)
होली की उतनी शुभ कामनाएं जितनी मैंने और आपने मिलके भी ना बांटी हों...
what a scene
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनाएँ
भंग खाकर टुन्न होकर पढ़ रहा था ये हजल।
ReplyDeleteदिल में चाहत प्यार से भर जाये गली हमारी।।
होली की शुभकामना।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
wah wah bahut khoob kapila ji, bahut khoob likha hai.....holi ki shubhkaamnayen.
ReplyDeleteवाह! वाह! होलिया हज़ल!!
ReplyDelete****आपको सपरिवार रंगोत्सव की हार्दिक शुभकामनाये****
waah waah bahut khoob..
ReplyDeleteaapko aur aapke samasth pariwaar ko holi ki shubhkaamna..!!
बढ़िया हज़ल .....
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनाएं !!
Badhai aur shubhkamnae.
ReplyDeletehasee majak ka mahoul ye jeevan bhar bana rahe ye hee shubh kamna hai.........
अबीर कीचड मिला बनायें जरा सा उबटन लगे सजीला
ReplyDeleteखिलाऊं घी गुड चुरी उसे जो पकड के लाये गली हमारी
बना सखी हार चप्पलों से सडे टमाटर पिरोना उपले
है चाहता तो गधे पे चढ कर चला वो आये गली हमारी
VAAH,होली की हार्दिक शुभकामनाएं.
आप तथा सभी ब्लॉगर मित्रों को होली की शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteये हज़ल भी खूब है.....
ReplyDeleteहोली की शुभकामनायें..
सुन्दर लिखा है , होली की बहुत बहुत बधाई | बुडू को बुढऊ कर लें |होली के रंग में सब माफ़ है |
ReplyDeleteशारदा अरोरा
hpy holi ji..
ReplyDeleteयकीन मानिए, ये एक बेहतरीन हज़ल है. होली पर आपने भी खूब रंग बरसाए हैं.
ReplyDeleteआपको सपरिवार होली की बधाई.
आपको तथा आपके समस्त परिजनों को होली की सतरंगी बधाई
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई !!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteholi ke rang hi rang bikhre huye hain..........happy holi.
ReplyDeleteआप और आप के परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteपहले तो सोचा चलो आप को मेल कर के बता दुं कि आप ने गजल की जगह हजल लिख दिया.... लेकिन जब आगे पढा तो लगा आप ने हजल ही लिखी है, ऒर हजल भी होली के रंग मै ओर भांग के नशे मै रची हुयी, वेसे भांग तो पंजाब मै बहुत होती है, लेकिन मेने कभी चखी नही, बहुत सुंदर लगी आप की यह हजल ओर नशा भी हो गया हमे जुतो का खाये बिना
होली की रंगभरी शुभकामनाएँ स्वीकार करें!
ReplyDeleteनिर्मला जी ये हज़ल आपकी जिंदादिली का जीता जागता सबूत है...आनंद आ गया...वाह...होली की एक बार फिर से ढेरों शुभकामनाएं...
ReplyDeleteनीरज
yeh bhi khoob rahi .....wish u happy holi.
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को होली पर्व की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
ReplyDeleteहोली की बहुत-बहुत शुभकामनायें.
ReplyDeleteवाह जी बहुत सुंदर.
ReplyDelete"हैप्पी होली......."
ReplyDeleteप्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com
aaj pehli baar aap ke blog par ayi aur aate hi Hazal ne sarabor kar diya...
ReplyDeleteHappy Holi..
aap jo lekhan ke rang mei doobi hai aap ka har din holi hi to hai..
With Love
nilima Dogra
मज़ा आ गया .............
ReplyDeleteहज़ल पर भी
होली की इस प्रस्तुति पर भी.
होली पर आपको हार्दिक शुभकामनाएं........
चन्द्र मोहन गुप्त
आदरणीय निर्मला दी,
ReplyDeleteसबसे पहले आपको और आदरणीय जीजाजी ko होली के सदर चरण स्पर्श!
आपकी हजल पढ़कर तो गुरुदेव के ब्लॉग पर भी खूब मजा आया था.अब इस पर हम क्या कहें?
आपने तो भंग के नशे में जीजाजी को क्या क्या कह डाला...बड़े नाराज हुए है..अब उनको मनाने के लिए मैं आता हूँ..पंजाब!..जब बड़े गलतियाँ करते है तो छोटों को बीच बचाव करना ही पड़ता है...एक तो उनको गल्त फेहमी आपके उस शेर से हुई जिसमे आपने अपनी नजर के शराबी होने को बताया...गजल गुजल से ज्यादा समझते नहीं है न..मैंने फोन पर बात की तो गुस्से में फट कर बोले ..त्वाडी भैन तो मेनू शाराबी केंदी ..जी..!
मैंने उन्हें समझाया -अजी कोई गल नि..जीजाजी..भंग दे नशे में पता थोड़ी न चलता है ...और एडी बात फोन विच नहीं न करते ..मेनू त्वाडे घर आण दो जी ...शाम को पेग शेग लगाएंगे...फिर बात करेंगे.
फिर मैंने जीजाजी के आगे आपकी तारीफ़ भी की--
मैंने कहा हजल का मक्ता सुनो जीजाजी ,
सजे ये होली सजे नशिश्ते,सभी तरफ हो ख़ुशी मोहब्बत
मुबारकें हैं सलाम भी है,यूँ खिलखिलाए गली हमारी
कितना सुनदर लिखा है इससे तो विशवास ही नहीं होता कि दीदी ने आपको नकली दांत,चढ़ा के चश्मा,झुकी कमर,और मजा चखाने और पिटाई ठुकाई की बातें भंग के नशे में लिखी है.
मैंने सही कहा ना!
होली की ढेरों शुभकानाए!
प्रकाश पाखी
बहुत मजा आया इस हजल में.
ReplyDeleteआपको दिपावली की घणी रामराम.
रामराम.
हज़ल अब लुप्तप्राय विधा होती जा रही है उसे यहाँ जीवित देखकर अछ्छा लगा । रंगपर्व की शुभकामनायें ।
ReplyDeleteपुनः पढ़कर प्रमुदित हुए. :)
ReplyDeleteये रंग भरा त्यौहार, चलो हम होली खेलें
प्रीत की बहे बयार, चलो हम होली खेलें.
पाले जितने द्वेष, चलो उनको बिसरा दें,
खुशी की हो बौछार,चलो हम होली खेलें.
आप एवं आपके परिवार को होली मुबारक.
-समीर लाल ’समीर’
देखने आया हूँ मेम ! वाकई मज़ा आगया और विश्वास हुआ !
ReplyDeleteआप दोनों के लिए शुभकामनायें !
आपको सपरिवार होली की ढेरो बधाईयाँ और शुभकामनाएँ
ReplyDeleteबहुत बढ़िया निर्मला जी । आनंद आ गया ।
ReplyDeleteआपको और आपके समस्त परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनयें।
आपको भी सपरिवार रंगोत्सव की हार्दिक शुभकामनाऎँ!!!!
ReplyDeleteVAAH .. VAAH .. BAHUT KHOOB .. IS HAZAL KA ANDAAZ LAJAWAAB HAI ...
ReplyDeleteAAPKO HOLI KI BAHUT BAHUT SHUBH-KAAMNAAYEN ...
एक नए अंदाज़ की पोस्ट
ReplyDeleteएक दम मस्त मजेदार ह....हा ..हा बहुत लाजवाब, बहुत कुछ कह डाला इतने में ही आपको व आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें
aapka ek alag hee andaaz dekhne....... sorry...... padhne ko mila ....
ReplyDeletebadhaai evm shubhkaamnaaeyn
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteहज़ल में मजा आ गया जी..
ReplyDeleteमुश्किल बह्र को आपने काफी हद तक निभा डाला है..
बह्र के अनुरूप हिचकोले लेते पढ़ रहे हैं ये हज़ल..
शब्दों की होली...खूब रंगा है हज़ल से...पंकज सुबीर का शुक्रिया..जिन्होंने आपको निवेदन किया।
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