कविता--- पंखनुचा
उसके अहं में छिपा विष
उसकी मैं में,
तू की अवहेलना,
शोषण की बुभुक्शा,
कामुक्ता कि लिप्सा,
अभिमान की पिपासा,
कर देती है आहत
तर्पिणी का अनुराग,
सहनशीलता,सहिश्णुता,त्याग
पंखनुचा की आहों से
सिसकता है
घर की दिवारों का
हर कण
क्योंकी
उन दिवारों ने
घुटते देखा है
उस आम औरत को
उस नाम की अर्धांगिनी को
जिसकी पहचान होती है
"बेवकूफ, गंवार औरत,
तुझे अकल कब आयेगी "
हाँ सच है,
उसे अभी अकल नही आयी
और सदियों से सहेजे खडी है
इस घर की चारदिवारी को
पर
जब कभी
अतुष्टी का भावोद्रेक
अत्याचार की अतिमा
हर लेगी
उसकी सहनशीलता
जगा देगी उस के
स्वाभिमान को
तो वो मीरा की तरह
इस विष को
अमृ्त नहीं बना पायेगी
सतयुग की सीता की तरह
धरती मे नहीं समायेगी
ये कलयुग है
क्या नहीं सुन रहा
दंडपाशक का अनुनाद
तडिताका निनाद
बनादेगी तुझे निरंश,पंगल
कर देगी सृ्ष्टी का विनाश
उस प्रलय से पहले
सहेज ले
घर की दिवारों को
अपना उसे
अर्धनारीश्वर की तरह
समझ उसे अर्धांगिनी
Bahut hi sundar shabdo me sundar tarike se khub abivyakt kiya aapne strijaati ke dard ko ...Aabhar!
ReplyDeletehttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
बहेतरीन प्रस्तुति ....नारी कि व्यथा व्यक्त करती हुई ये ....खूबसूरत रचना .
ReplyDeleteबहुत खूब माँ जी , क्या कहूं , आज तो शब्द ही नहीं मिल रहें कुछ कहने को, बस लाजवाब ।
ReplyDeletenice
ReplyDeleteबहुत लाजवाब. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
आज के समाज के दोहरे मापदंड के बीच से निकलती एक नारी की गाथा..बहुत बढ़िया भाव पिरोया है आपने और शब्द तो इतने बेहतरीन है की क्या कहने ...कुल मिलकर कविता लाज़वाब....प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद माता जी..
ReplyDeleteबेहद सुन्दर प्रस्तुती.....
ReplyDeleteregards
सत्य वचन।
ReplyDeleteBadhiyaa kavitaa Nirmalaji
ReplyDeletebahut sundar rachna.
ReplyDeleteहिन्दीकुंज
bahut sunder sandesh detee rachana .
ReplyDeleteBadhai
behad sundar bhaw .........badhaai
ReplyDeleteनारी है इस देश की राष्ट्रपति.
ReplyDeleteक्या चंपा का घर में बंद अपमान हो गया है,
क्या आदमी वाकाई इनसान हो गया है...
जय हिंद...
मम्मा....बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति..... बहुत अच्छी लगी यह कविता...
ReplyDeletegazab ki prastuti.............kya kahun ..........nishabd hun.
ReplyDeleteनारी के भूत और भविष्य पर बढ़िया टिपण्णी करती रचना , निर्मला जी।
ReplyDeleteनिसंदेह नारी अब जाग्रत हो रही है।
Nari tum kewal shraddha ho.. vishwas rajat pag tal me
ReplyDeleteआज की कविता तो बहुत "नाईस" है जी, बहुत सुंदर.
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, आभार ।
ReplyDeletetruely awesome.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteआदरणीय निर्मला दी,
ReplyDeleteअभी अभी आपकी सौंवी पोस्ट के लिंक को पढ़ आया हूँ...आपने आपनी ब्लॉग यात्रा कैसे आरम्भ की और अब कहाँ पहुँच गयी...आश्चर्य होता है..आपकी यह कविता मन में उथल पुथल मचा देती है...आप गजल में भी कमाल कर रही है..वाकई शक्ति की तरह से अपार उर्जा से ओत प्रोत है आप...बधाई!
स्पष्ट चेतावनी .. बहुत सार्थक लिखा है ... नारी का सम्मान सच में बहुत ज़रूरी है ... समय पर जागना बहुत ज़रूरी है अगर घर और अपने आने वाले कल की चिंता करनी है तो ...
ReplyDeleteसटीक बात..सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteदुख तो यही है कि नवदुर्गा में जिसे पूजते हैं, बाकी दिनों उसी पर जुल्म ढ़ाते हैं.
ReplyDeleteमन को झिंझोड़ने वाली रचना.... एक चेतावनी देती हुई...बहुत अच्छी लगी
ReplyDeleteakath mohakata hai in panktiyo me
ReplyDeleteये कलयुग है
ReplyDeleteक्या नहीं सुन रहा
दंडपाशक का अनुनाद
तडिताका निनाद
बनादेगी तुझे निरंश,पंगल
कर देगी सृ्ष्टी का विनाश
उस प्रलय से पहले
सहेज ले
घर की दिवारों को
अपना उसे
अर्धनारीश्वर की तरह
समझ उसे अर्धांगिनी
bahut sunder abhivyakti, behatareen.
आपने बहुत ही सुंदर लिखा है
ReplyDeleteअपना उसे
अर्धनारीश्वर की तरह
समझ उसे अर्धांगिनी
कुछ भी कहना बहुत मुश्किल है , मगर ना कहना पाप...
ReplyDeleteएक शे'र
माँ मेरी जब से आगई घर में
पास मेरे गलतियां नहीं आती
आपका
अर्श
बहुत बढिया कविता!
ReplyDeleteआपने इस कविता में शब्दों का चयन बहुत खूब किया है!!!
कविता इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है।
ReplyDeleteनारी की वेदनाओं की पराकाष्ठा का परिणाम क्या होगा बखूबी भावपूर्ण और ओजपूर्ण ढंग से आपकी रचना में दिखलाई दे रहा है.
ReplyDeleteसुन्दर और सार्थक रचना
चारदीवारी में कैद नारी की व्यथा को खूब व्यक्त कर दिया है आपने ....
ReplyDeleteमुझे अपनी एक कविता याद आ रही है ...
स्त्रियाँ आज भी होती है सीता सी ..
महल के भोगविलास त्याग कर
वन गमन को तत्पर
मगर अब नहीं देती हैं
वे कोई अगिन परीक्षा
अब नहीं सजाती हैं
वे स्वयं अपनी चिता ...
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना! बधाई!
ReplyDeleteवाकई एक बेहतरीन प्रस्तुती, क्या शब्द, क्या शब्द संयोजन, भाव और उसकी अभिव्यक्ति सब बेमिसाल
ReplyDeleteबेहतरीन शब्दों से सजी खूबसूरत कविता । आभार ।
ReplyDeleteNaari man ke antardwand ki vyatha ko bahut gahre shabd sanyojan se prastut kiya hai aapne...
ReplyDeleteBahut shubhkamnayne...
सुन्दर, अतिसुन्दर.
ReplyDeleteAap nari vyatha ko bahad bareekee se uker detin hain !!naman
ReplyDeletebahut adbhut kavita hai Nirmla di
ReplyDeletenaari ka sammaan bahut zaruri hai
ek ek shabad .........
meera ki tarah amrut nahi kar paayegi
kya kahun nishabd hun
सत्य वचन!
ReplyDeleteवाह....इसे केवल सुन्दर गीत नहीं कह सकती...यह तो सोचने को विवश करती प्रेरनादायी सत्य का सुन्दर उद्घाटन है....
ReplyDelete