कथित बाबा सचिदानन्द का कच्चा चिट्ठा और कुछ सवाल --गताँक से आगे
नवांशहर पंजाब के बाबा सचिदानन्द को पुलिस् ने कविता के कत्ल के जुर्म मे गिरफ्तार कर लिया तो कविता की माँ के हाथ एस एस पी राकेश अग्रवाल के लिये दुआ देने को उठे कि बाकी लोगों को तो कम से कम उसके चँगुल से छुडा लिया।वो खुद को रिटायर्ड जज और अपनी मुँह बोली बेटी को को आई, पी, एस. अधिकारी बताता था। जब कि हकीकत मे वो 10वीं पास था।अपने श्रद्धालुयों की संख्या बढाने के लिये बाबा साधना चैनल पर प्रवचन भी देता था। अब सवाल ये है कि क्या ये धार्मिक चैनल हिन्दु धर्म का कुछ भला कर रहे हैं या उन्हें ऐसे ढोंगी बाबाओं के चँगुल मे फसाने का साधन बन रहे हैं। वो साधना चैनल को एक प्रवचन का ढेड लाख रुपया देता था। अनपढ लोगों को क्या पता कि चैनल पर आने वाले उन श्रद्धालूयों के पैसे खर्च करके ही प्रवचन देते हैं। मैने एक-दो गली की औरतों से पूछा कि क्या उन्हेंसे पता है कि चैनल पर बाबा कैसे प्रवचन करने पहुँचते हैं तो उसे नहीं पता था। उसने कहा कि वो पहुँचे हुये बाबा होंगे तभी तो चैनल पर आते हैं।
हम लोग ब्लाग्स पर रोज़ धर्म के लिये लडते झगडते हैं लेकिन ऐसे ढोंगी बाबाओं के खिलाफ क्यों नहीं कुछ बोलते? ऐसे धार्मिक चैनलों के खिलाफ क्यों नहीं कुछ कहते जिन को देख कर लोग इन के झाँसे मे आ जाते हैं। दो साल पहले मैं नये घर मे आयी थी। यहाँ प्राईवेट कालोनी है पहले हम जहाँ रहते थे वहाँ सभी नौकरी पेशा लोग थे औरतें भी अधिकतर नौकरी पेशा थी । हम मे धर्म पर बहुत कम बात होती थी। लेकिन इस कालोनी मे 70% लोग रिटायरी हैं और साथ ही आस पास ग्रामिण इलाका भी लगता है। मेरी अपनी गली मे 20 के आस पास घर हैं जहाँ हर घर किसी न किसी बाबा को मानता ह। और हर आये दिन किसी न किसी बाबा का कीर्तन प्रवचन होता है। बहुत अच्छी बात हैलेकिन मन तब और दुखी होता है जब आर्ती के समय केवल उस बाबा की ही आरती होती है। हरेक बाबा ने अपनी अलग अलग आरती लिख रखी है, उसे या उसकी तस्वीर को ही भोग लगाया जाता है। उसकी बहुत बडी तस्वीर होती है और उसके नीचे छोटी छोटी तस्वीरें हिन्दू देवी देवतायों की रखी होती हैं जैसे वो बेचारे इनके दास हों। अब आस पडोस की बात है ऐसे समारोह मे जाना भी पड्ता था। लेकिन अब मैने ऐसे घरों मे जाना बन्द कर दिया है जो बाबा संस्कृ्ति को बढावा देते हैं। मगर मन मे क्षोभ होता है कि आखिर ये हो क्या रहा है।उनमे तो कई बाबा अनपढ ही हैं बस कथा कहानिया सुना कर चले जाते हैं। उनके प्रवचनों मे एक बात पर ही बल दिया जाता है कि गुरू के बिना गति नहीं। बस गुरू ही आपका भगवान है। सही बात है मगर क्या गुरू के मायने भी उन्हें बताते हैं कि गुरू मे क्या विशेशतायें होनी चाहिये।
अब मेरा सवाल ये है कि आज के इस युग मे जहाँ हम ये तय नहीं कर सकते कि कौन सच्चा है कौन झूठा तो धर्म के नाम पर ऐसे आश्रम और बाबाओं की जरूरत है?
क्या इन बाबाओं के बिना लोग धर्म का ग्यान नहीं ले सकते?
धार्मिक चैनल क्या ऐसे लोगों को बढावा नहीं देते? ये दोनो की दुकानदारी मिली भगत नहीं है?
दूसरा इन धार्मिक चैनलों का अगर फायदा है तो क्या हानि नहीं है? ऐसे लोगों को दिखा कर ये धर्म को हानि नहीं पहुँचा रहे? ऐसे ढोंगी बाबाओं के रोज़ प्रवचम सुन कर ही लोग इनके चंगुल मे नहीं फसते? क्या धार्मिक चैनलों पर कुछ प्रतिबन्ध नहीं लगने चाहिये? ये इन दुकानों के व्यापार मे साझीदार हैं।
क्या सरकार को इस मामले मे हस्तक्षेप करना चाहिये?
आज पंजाब इन्हीं बाबाओं की वजह से जल रहा है लुधिआना मे दो दिन कर्फ्यू और बन्द रहाुआये दिन कोई न कोई शहर इस आग की लपेट मे आ जाता है।
क्या साधु सन्तों को ए.सी गाडियाँ,एसी आश्रम और सुख सुविधा के साधन रखने चाहिये? अगर नहीं तो आपमे से कितने हैं जो ऎसे गुरुओं का वहिष्कार करते हैंजो भौतिक वस्तुयों का उपयोग कर रहे हैं?
आखिर धर्म के ठेकेदार क्यों नहीं कुछ करते। मेरे हिसाब से तो सभी आश्रम बन्द होने चाहिये जिसे धर्म का प्रचार करना है वो साधु बन कर रहे और केवल धार्मिक स्थान मन्दिर आदि मे ही प्रवचन दे और लोगों से कोई धन न ले। खुद सादा जीवन व्यतीत कर वैभव और भौतिक साधनों का मोह छोड कर एक छोटी सी कुटी मे रहे जहाँ किसी को भी आने की अनुमति न हो बस प्रवचन के लिये शहर का मंदिर या कोई सार्वजनिक स्थान चुन सकते हैं। । जगह जगह मन्दिर अपने- अपने नाम से बनवाये जा रहे हैं, जिन की न तो सफाई का उचित प्रबन्ध है न ही और रखरखाव का। बस चढावे के रूप मे धन इकट्ठा करना ही इनका मकसद है। क्या लाभ है ऐसे मन्दिर निर्माण करने का जहाँ भगवान उपेक्षित होते हों? क्या एक छोटे शहर मे एक मन्दिर काफी नहीं? आज इस बाबा संस्कृ्ति पर लगाम कसने की जरूरत है। नहीं तो एक दिन लोग ये भूल जायेंगे कि हिन्दु देवी देवता कौन हैं उनकी जगह इन बाबाओं के नाम ही होंगे। ये सिर्फ हिन्दु धर्म की बात नहीं है किसी भी धर्म मे ये बाबा लोग दीमक की तरह उसे चाट जायेंगे। आईये हम सब मिल कर इस बाबा संस्कृ्ति से लडें। जब लोग समझ जायेंगे तो फिर अपने आप ये दुकाने बन्द हो जायेंगी । इन आश्रमों मे होने वाले कुकर्मों और शोषण के विरुध आवाज़ उठायें। इस मे सब का भला है। ये लोग एक नाम दे देते हैं और लोग इसी को बस धर्म समझ कर जपते रहते हैं मगर धर्म के मर्म तक कम ही लोग जाते हैं, अगर जाते तो आज दुनिया मे इतने अपराध न होते। आज हम केवल धार्मिक बन रहें अध्यात्म क्या है इसे जानते ही नहीं। आओ लोगों को बाबा संस्कृ्ति का सच बतायें और इन के चंगुल से लोगों को बचायें। मैं तो जहाँ भी जाती हूँ जम कर इन लोगों के खिलाफ बोलती हूँ। बोलती रहूँगी। हम लोग धर्म के नाम पर ब्लाग्स पर भी आपस मे लडते रहते हैं लेकिन इन असली गुनहगारों के खिलाफ एक शब्द भी क्यों नहीं कहते?
नवांशहर पंजाब के बाबा सचिदानन्द को पुलिस् ने कविता के कत्ल के जुर्म मे गिरफ्तार कर लिया तो कविता की माँ के हाथ एस एस पी राकेश अग्रवाल के लिये दुआ देने को उठे कि बाकी लोगों को तो कम से कम उसके चँगुल से छुडा लिया।वो खुद को रिटायर्ड जज और अपनी मुँह बोली बेटी को को आई, पी, एस. अधिकारी बताता था। जब कि हकीकत मे वो 10वीं पास था।अपने श्रद्धालुयों की संख्या बढाने के लिये बाबा साधना चैनल पर प्रवचन भी देता था। अब सवाल ये है कि क्या ये धार्मिक चैनल हिन्दु धर्म का कुछ भला कर रहे हैं या उन्हें ऐसे ढोंगी बाबाओं के चँगुल मे फसाने का साधन बन रहे हैं। वो साधना चैनल को एक प्रवचन का ढेड लाख रुपया देता था। अनपढ लोगों को क्या पता कि चैनल पर आने वाले उन श्रद्धालूयों के पैसे खर्च करके ही प्रवचन देते हैं। मैने एक-दो गली की औरतों से पूछा कि क्या उन्हेंसे पता है कि चैनल पर बाबा कैसे प्रवचन करने पहुँचते हैं तो उसे नहीं पता था। उसने कहा कि वो पहुँचे हुये बाबा होंगे तभी तो चैनल पर आते हैं।
हम लोग ब्लाग्स पर रोज़ धर्म के लिये लडते झगडते हैं लेकिन ऐसे ढोंगी बाबाओं के खिलाफ क्यों नहीं कुछ बोलते? ऐसे धार्मिक चैनलों के खिलाफ क्यों नहीं कुछ कहते जिन को देख कर लोग इन के झाँसे मे आ जाते हैं। दो साल पहले मैं नये घर मे आयी थी। यहाँ प्राईवेट कालोनी है पहले हम जहाँ रहते थे वहाँ सभी नौकरी पेशा लोग थे औरतें भी अधिकतर नौकरी पेशा थी । हम मे धर्म पर बहुत कम बात होती थी। लेकिन इस कालोनी मे 70% लोग रिटायरी हैं और साथ ही आस पास ग्रामिण इलाका भी लगता है। मेरी अपनी गली मे 20 के आस पास घर हैं जहाँ हर घर किसी न किसी बाबा को मानता ह। और हर आये दिन किसी न किसी बाबा का कीर्तन प्रवचन होता है। बहुत अच्छी बात हैलेकिन मन तब और दुखी होता है जब आर्ती के समय केवल उस बाबा की ही आरती होती है। हरेक बाबा ने अपनी अलग अलग आरती लिख रखी है, उसे या उसकी तस्वीर को ही भोग लगाया जाता है। उसकी बहुत बडी तस्वीर होती है और उसके नीचे छोटी छोटी तस्वीरें हिन्दू देवी देवतायों की रखी होती हैं जैसे वो बेचारे इनके दास हों। अब आस पडोस की बात है ऐसे समारोह मे जाना भी पड्ता था। लेकिन अब मैने ऐसे घरों मे जाना बन्द कर दिया है जो बाबा संस्कृ्ति को बढावा देते हैं। मगर मन मे क्षोभ होता है कि आखिर ये हो क्या रहा है।उनमे तो कई बाबा अनपढ ही हैं बस कथा कहानिया सुना कर चले जाते हैं। उनके प्रवचनों मे एक बात पर ही बल दिया जाता है कि गुरू के बिना गति नहीं। बस गुरू ही आपका भगवान है। सही बात है मगर क्या गुरू के मायने भी उन्हें बताते हैं कि गुरू मे क्या विशेशतायें होनी चाहिये।
अब मेरा सवाल ये है कि आज के इस युग मे जहाँ हम ये तय नहीं कर सकते कि कौन सच्चा है कौन झूठा तो धर्म के नाम पर ऐसे आश्रम और बाबाओं की जरूरत है?
क्या इन बाबाओं के बिना लोग धर्म का ग्यान नहीं ले सकते?
धार्मिक चैनल क्या ऐसे लोगों को बढावा नहीं देते? ये दोनो की दुकानदारी मिली भगत नहीं है?
दूसरा इन धार्मिक चैनलों का अगर फायदा है तो क्या हानि नहीं है? ऐसे लोगों को दिखा कर ये धर्म को हानि नहीं पहुँचा रहे? ऐसे ढोंगी बाबाओं के रोज़ प्रवचम सुन कर ही लोग इनके चंगुल मे नहीं फसते? क्या धार्मिक चैनलों पर कुछ प्रतिबन्ध नहीं लगने चाहिये? ये इन दुकानों के व्यापार मे साझीदार हैं।
क्या सरकार को इस मामले मे हस्तक्षेप करना चाहिये?
आज पंजाब इन्हीं बाबाओं की वजह से जल रहा है लुधिआना मे दो दिन कर्फ्यू और बन्द रहाुआये दिन कोई न कोई शहर इस आग की लपेट मे आ जाता है।
क्या साधु सन्तों को ए.सी गाडियाँ,एसी आश्रम और सुख सुविधा के साधन रखने चाहिये? अगर नहीं तो आपमे से कितने हैं जो ऎसे गुरुओं का वहिष्कार करते हैंजो भौतिक वस्तुयों का उपयोग कर रहे हैं?
आखिर धर्म के ठेकेदार क्यों नहीं कुछ करते। मेरे हिसाब से तो सभी आश्रम बन्द होने चाहिये जिसे धर्म का प्रचार करना है वो साधु बन कर रहे और केवल धार्मिक स्थान मन्दिर आदि मे ही प्रवचन दे और लोगों से कोई धन न ले। खुद सादा जीवन व्यतीत कर वैभव और भौतिक साधनों का मोह छोड कर एक छोटी सी कुटी मे रहे जहाँ किसी को भी आने की अनुमति न हो बस प्रवचन के लिये शहर का मंदिर या कोई सार्वजनिक स्थान चुन सकते हैं। । जगह जगह मन्दिर अपने- अपने नाम से बनवाये जा रहे हैं, जिन की न तो सफाई का उचित प्रबन्ध है न ही और रखरखाव का। बस चढावे के रूप मे धन इकट्ठा करना ही इनका मकसद है। क्या लाभ है ऐसे मन्दिर निर्माण करने का जहाँ भगवान उपेक्षित होते हों? क्या एक छोटे शहर मे एक मन्दिर काफी नहीं? आज इस बाबा संस्कृ्ति पर लगाम कसने की जरूरत है। नहीं तो एक दिन लोग ये भूल जायेंगे कि हिन्दु देवी देवता कौन हैं उनकी जगह इन बाबाओं के नाम ही होंगे। ये सिर्फ हिन्दु धर्म की बात नहीं है किसी भी धर्म मे ये बाबा लोग दीमक की तरह उसे चाट जायेंगे। आईये हम सब मिल कर इस बाबा संस्कृ्ति से लडें। जब लोग समझ जायेंगे तो फिर अपने आप ये दुकाने बन्द हो जायेंगी । इन आश्रमों मे होने वाले कुकर्मों और शोषण के विरुध आवाज़ उठायें। इस मे सब का भला है। ये लोग एक नाम दे देते हैं और लोग इसी को बस धर्म समझ कर जपते रहते हैं मगर धर्म के मर्म तक कम ही लोग जाते हैं, अगर जाते तो आज दुनिया मे इतने अपराध न होते। आज हम केवल धार्मिक बन रहें अध्यात्म क्या है इसे जानते ही नहीं। आओ लोगों को बाबा संस्कृ्ति का सच बतायें और इन के चंगुल से लोगों को बचायें। मैं तो जहाँ भी जाती हूँ जम कर इन लोगों के खिलाफ बोलती हूँ। बोलती रहूँगी। हम लोग धर्म के नाम पर ब्लाग्स पर भी आपस मे लडते रहते हैं लेकिन इन असली गुनहगारों के खिलाफ एक शब्द भी क्यों नहीं कहते?