गज़ल
श्री प्राण जी कब से मेरे बडे भाई बने हुये थे । जब से गज़ल सीखने लगी मैने गुरू जी कहना शुरू कर दिया। शायद इसी वज़ह से वो नाराज़् हं कि मुझे ब्लाग पर आ कर आशीर्वाद नहीं दिया । इस लिये आज से मैं उन्हें भाई साहिब ही कहूँगी क्यों की इस रिश्ते को वो बहुत पवित्र और महत्वपूर्ण मानते हैं। तो मैं भी उन्हें छोटी बहन के स्नेह से वंचित नहीं करूँगी ये गज़ल भी उनके आशीर्वाद से ही लिखी है । उन्हों ने इसकी गलतियां सही कर इसे संवारा है। ये गज़ल अपने बडे भाई साहिब श्री प्राण शर्मा जी को समर्पित है आशा है कि वो अपनी छोटी बहन को जरूर आशीर्वाद देंगे।
महक उठा हर कोना तन का
फूल खिला क्या मेरे मन का
भारत माँ की बेटी रहूँ मैं
ख्वाब यही मेरे जीवन का
पल पल रूप तू अपना बदले
फिर क्यों दोश कहे दरपन का
मन मे है पापों की दुरगंध्
तिलक लगाये है चंदन का
माली ही तोडे फूलों को
हाल कहें क्या उस गुलशन का
जीवन है सब खेल तमाशा
कोई हल ना इस उलझन का
पहरे दारो आँखें खोलो
मत इतबार करो दुश्मन का
लोग सभी घायल दिखते हैं
शोर सुने कोई क्रंदन का
श्री प्राण जी कब से मेरे बडे भाई बने हुये थे । जब से गज़ल सीखने लगी मैने गुरू जी कहना शुरू कर दिया। शायद इसी वज़ह से वो नाराज़् हं कि मुझे ब्लाग पर आ कर आशीर्वाद नहीं दिया । इस लिये आज से मैं उन्हें भाई साहिब ही कहूँगी क्यों की इस रिश्ते को वो बहुत पवित्र और महत्वपूर्ण मानते हैं। तो मैं भी उन्हें छोटी बहन के स्नेह से वंचित नहीं करूँगी ये गज़ल भी उनके आशीर्वाद से ही लिखी है । उन्हों ने इसकी गलतियां सही कर इसे संवारा है। ये गज़ल अपने बडे भाई साहिब श्री प्राण शर्मा जी को समर्पित है आशा है कि वो अपनी छोटी बहन को जरूर आशीर्वाद देंगे।
महक उठा हर कोना तन का
फूल खिला क्या मेरे मन का
भारत माँ की बेटी रहूँ मैं
ख्वाब यही मेरे जीवन का
पल पल रूप तू अपना बदले
फिर क्यों दोश कहे दरपन का
मन मे है पापों की दुरगंध्
तिलक लगाये है चंदन का
माली ही तोडे फूलों को
हाल कहें क्या उस गुलशन का
जीवन है सब खेल तमाशा
कोई हल ना इस उलझन का
पहरे दारो आँखें खोलो
मत इतबार करो दुश्मन का
लोग सभी घायल दिखते हैं
शोर सुने कोई क्रंदन का