चिंगारी---------- गताँक से आगे
मैं समझ नहीं पा रही थी कि रजेश मेरी मुश्किलें क्यों नही समझते-------मै भी इन की तरह नैकरी कर रही हूँ------ और उससे भी अधिक घर का सारा काम---सब की देख भाल ----खुद तो आ कर टी वी के सामने बैठ कर हुक्म चलाने लगते हैं-------- आज ये खाने का दिल है आज वो खाने का दिल है---------
फिर एक दिन मेरी पदोन्नती हो गयी----मै स्कूल की हैड बन गयी थी-------सारा स्टाफ घर बधाई देने आया------ अनुज नया टीचर भी आया था मुझे दीदी कहता और बडा सम्मान करता था-----वो सब से अधिक खुश था-------दीदी मै तो बहुत खुश हूँ-------अप हेड बनी हैं तो स्कूल का जरूर सुधार होगा------हम सब आपके साथ हैं मैं भी बहुत खुश थी-----पर मै देख रही थी कि राजेश को उतनी खुशी नही है------मैने रात को पूछा कि---क्या मेरी प्रोमोशन से आप खुश नहीं-----
मुझे क्या हुआ है-----हाँ एक बात बता दूँ कि इन चापलूस लडकों से दूर ही रहा करो-----कैसे चहक रहा था-----
और मेरी सारी खुशी काफूर हो गयी------राजेश मुझे आगाह नही कर रहे थे---ये उनके अन्दर एक हीन भावना पनपने लगी थी वो बाहर निकल रही थी----- खुद भी मेरे जितनी मेहनत करते पढते-- मैने कौन सा मना किया था------ मैने इन से कई गुना अधिक मेहनत की थी---सारी जिम्मेदारियाँ निभाई फिर भी ये खुश नहीं हैं-----इनको तो मुझ पर नाज़ होना चाहिये-----
मगर मैं भी पागल थी------औरत का वर्चस्व आदमी से बढे ये आदमी को कैसे सहन हो सकता है------ किसी पार्टी मे किसी के घर जब कोई मेरी प्रशंसा करता--मुझ से कोई डिस्कशन करता तो इन्हें वो भी अच्छा ना लगता ----लोगों के सामने अपनी होशियारी झाडती रहती हो ये दिखाने के लिये कि तुम मुझ से अधिक समझ दार हो----- अगर किसी सहेली या सहयोगी के घर जाना पडता तो मना कर देते मुझे अकेले ही जाना पडता वो भी इन्हें अच्छा ना लगता-----धीरे धीरे दोनो के बीच का फासला बढने लगा था------ फिर अचानक माजी और बाऊजी का एक ही साल मे निधन हो गया और देवर की नौकरी दूसरे शहर मे लग गयी--दो साल मानसिक परेशानी मे निकल गये----- इस दुख के समय मे मै राजेश के साथ खडी रही------ कुछ कहते भी तो खून का घूँट पी जाती----- बस उन्हें खुश रखने की हर कोशिश करती-------माँ और बाऊ जी के ना रहने से राजेश को किसी का डर और चिन्ता ना रही-----फिर शराब पीनी शुरू कर दी पी तो पहले भी लेते मगर बाऊ जे से छुप कर----- साल भर मे ही इन्हें जैसे शराब की लत लग गयी रोज़ ही पीने लगे------ बहुत कहती मगर जितना कहती उतना ही और पीते---- मै कमाता हूँ तुम्हारी कमाई से नहीं पीता------धीरे धीरे दोस्तों के साथ महफिल सजाना शुरू कर दिया क्भी कहीं तो कभी कहीं-----मुझे समझ नहीं आ रहा था कि राजेश को हो क्या गया है----- उनकी समस्या क्या है-----बेटी बडी हो रही थी उस पर क्या प्रभाव पडेगा-----मै मन ही मन घुट रही थी------ अभी जिम्मेदारियों से मुक्त हुये थे कि अब सुख के दिन आयेंगे पैसे की कमी नहीं थी फिर जिस आदमी को आसानी से जीवन मे सब कुछ मिल जाये वो ऐश के सिवा क्या सोच सकता था------- घर चलाने के लिये कमाऊ पत्नि थी ही-----
परिवार के लिये मेरा समर्पण मेरा कर्तव्य था पैसे का सुख सब ने भोगा मगर घर की लक्ष्मी की किसी ने सुध नही ली------मैं सब कुछ सह सकती थी मगर राजेश की ये ऐयाशी नहीं---- माँ अनपढ थी तो पति के मन ना भाई और मै पति से अधिक पढ गयी तो पति के मन ना भाई औरत के लिये क्या जगह है इस समाज मे----- आदमी के लिये तो चित भी मेरी और पट भी मेरी------ अब बचपन से मन मे सुलगती चिँगारी फिर से सिर उठाने लगी थी----- राजेश कुछ भी सुनने को तैयार ना थे रोज़ शराब पी कर आना और दोस्तों के साथ आधी रात तक ताश खेलना येही इनका काम रह गया था------अगर मै कहती कि जिन के साथ बैठ कर शराब पीते हो वो अच्छे लोग नहीं हैं----तो शब्दों के नश्तर कहीं गहरे तक उतार देते--------हाँ तुम अफसर बन गयी हो----अब तुम्हें मेरे दोस्त क्या मै भी छोटा नज़र आने लगा हूँ------कभी अपने पीछे नज़र मार कर देखा है कि किस रईस के घर से आयी हो --तुम्हारे भाई नहीं पीते कया-------
अब मैने राजेश से कुछ भी कहना छोड दिया था-----
उस दिन राजेश बारह् बजे तक घर नहीं आये---- बडी चिन्ता हुई ----- ये भी जानती थी कि अधिक पी ली होगी तो किसी दोस्त के घर होंगे----- क्या करती मन मे एक डर भी था कि पी कर स्कूटर चलायेंगे कहीं रास्ते मे गिर ना पडे हों---- हार कर आधी रात को पडोसियों को जगाया------- साथ वाले शर्मा जे बहुत शरीफ् इन्सान थे---उन्हें मैने इनके एक दोस्त का पता दिया जिसका मुझे पता था कि अकेले रहते हैं और उनके साथ बैठना उठना अधिक है----- शर्मा जी अपनी गाडी मे इनको ले आये----- बडी मुश्किल से गाडी तक लाये थे ------फिर घर आ कर बडी मुश्किल से गाडी से उतारा---- और बेडरूम तक पहुँचाया------ शर्मा जी के जाते ही राजेश शुरू हो गये------- तो पीछे से शर्मा के साथ रास रचाती हो-------- ये आधी रात तक यहाँ क्या कर रहा था------ नीच कमीनी औरत आखिर तुम ने अपनी औकात दिखा ही दी---------- और जूता उतार कर मुझ पर फेंक दिया------- ये डाँट फटकार अब रोज़ इनका काम हो गया था बहाना तो कोई भी ढूँढ लेते
उस समय मेरी हालत क्या हुई होगी ये कोई भी समझ सकता है------- रोश उबल पडा------ क्रोध से दिल जिस्म अँगारा बन गया------- चिंगारियाँ उठने लगी------- बचपन से अब तक जितनी आग थी सुलग उठी------ आज उस चिंगारी ने मेरे स्त्रित्व के वज़ूद को जला कर राख कर दिया------- मेरे संस्कार समर्पण त्याग और कर्तव्य सब विद्रोह कर उठे------- अब नहीं सहेंगे ये उत्पीड्न------- ये अपमान ------- और आज मैने एक नया विद्रोही्रूप पाया -- ----- अगले कुछ दिन मैं चुपचाप रही मगर मैने अपनी ट्राँसफर चुपके से करवा ली और एक दिन राजेश को बिना बताये घर छोड कर अपनी बच्ची को ले कर दूसरे शहर चली आयी-----
नहीं जानती कि अच्छा किया या बुरा------ क्या खोया क्या पाया----स्वाभिमान या अभिमान ----- गर्व या दर्प कोई कुछ भी कहे-------क्या फर्क पडता है ---मैं तो बस जीना चाहती हूँ अपनी बच्ची के लिये------- अपने वज़ूद के साथ ------ टुकडों मे कोई कब तक जी सकता है------- स्वाभिमान का अधिकार मुझे चाहिये------ नहीं तो ये चिंगारी पूरे समाज को ---सृ्ष्टी को जला देगी----- बेटी को इस चिंगारी की भेट नही चढने देना चाहती थी------
काश कि पुरुष जौहरी होता------- सहेज लेता नारी मन और उसके अस्तित्व को------- नहीं तो अपना वज़ूद खो कर पत्थर बन जायेगी----- या विध्रोही आग मेरी इस चिंगारी को कसौटी पर कसना समाज का काम है-----जरूरत भी है समाज के वज़ूद के लिये ------ आप क्या कहते हैं कि ये चिंगारी यूँ ही सुलगती रह्ती या इसे बुझाने के लिये जो मैने किया वो सही है------ ऐसी ना जाने कितनी चिंगारियां रोज़ सुलगती हैं------- आपके जवाब का इन्तज़ार रहेगा
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