18 December, 2009

कई दिन से बच्चे आये हुये हैं कुछ अधिक नया लिख नहीं पा रही। ये छोटी सी गज़ल जिसे प्राण भाई साहिब ने संवारा है उनके आशीर्वाद से आपके सामने प्रस्तुत कर रही हूँ
                                                                   गज़ल


करें कितना भरोसा हम इन्हें तो टूट जाना है
दरार आयी दिवारों का भला अब क्या ठिकाना है

ज़मीन पर पाँव रखती हूँ नज़र पर आसमां पर है
नहीं रोके रुकूँगी मैं कि ठोकर पर  जमाना   है

कहाँ औरत रही अबला कहाँ बेबस सी लगती   है
वो पहुँची है सितारों तक ,किसीको क्या दिखाना है

है ऊंची बाड़ के पीछे जड़ें खुद काटता    माली
लुटा जो अपनों के हाथों कहाँ उसका ठिकाना   है

ख़यालों में ही तू खोया रहेगा कब तलक यूँ ही
कि उठ मन बावरे अब ढूंढना तुझको ठिकाना है
               

37 comments:

  1. वाह! बहुत बेहतरीन ग़ज़ल है। अब यहाँ मुकर्रर तो नहीं ही चलेगा। मैं ही दुबारा पढ़ता हूँ।

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  2. बहुत बेहतरीन लिखा है आपने निर्मला जी!

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  3. नहीं रोके रूकूंगी मैं कि ठोकर पर ज़माना है
    ज़माने से मैं नहीं, मुझ से ज़माना है...

    जय हिंद...

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  4. kisko chunun , sabhi to ek se badhkar ek hain, behatareen.

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  5. वाह .. क्‍या खूब लिखा है !!

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  6. मोंम..... बेहतेरीन लफ़्ज़ों के साथ बहुत सुंदर ग़ज़ल....

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  7. निर्मला जी,

    एक बेहतरीन गज़ल पढ़ने को मिली, कितने सुन्दर तरीके से कहा है :-

    हैं ऊँची बाड़ के पीछे जड़े खुद काटता माली
    लुटा जो अपने के हाथों कहाँ उसका ठिकाना है

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  8. बेहतरीन रचना
    लगातार तीन बार पढ चुका हूं, अभी और पढने का मन है।

    प्रणाम स्वीकार करें

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  9. बड़ी गम्भीर बातों को कितनी सहजता से कह जाती हैं आप । बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है । बधाई और शुभकामनायें ।

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  10. बहुत सुन्दर और बेहतरीन गजल है बधाई स्वीकारें।

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  11. बहुत ही बेहतरीन रचना. शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  12. ग़ज़ल क़ाबिले-तारीफ़ है।

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  13. गजल पर जिस तरह आप मेहनत कर रही हैं और आप की प्रतिभा जिस तरह निखरती जा रही है, उससे मुझे खतरा महसूस होने लगा है. लगता है गजलें छोडकर किसी अन्य विद्या में परिश्रम करना पड़ेगा. आपकी कहानियों का तो पहले ही से मुरीद था, अब गजलों ने यह श्रद्धा और बढ़ा दी है. खुदा आपको ऐसा ही फलता-फूलता रखे.

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  14. व्यस्तता के रहते भी अपने इतनी अच्छी रचना लिखी है । बधाई।

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  15. वाह..... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....सच कहा कि नारी अबला नहीं है ....

    खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई

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  16. aapki gzl padh kar mn bahut khush huaa hai....achhaa lagtaa k aap mehnat kr rahi haiN...ghr meiN itni msrufiyat ke bavjood itna likh lene ki koshish karti haiN .
    gzl ke bhaav bahut hi sundar bn pade haiN...badhaaee svikaareiN .

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  17. हैं ऊँची बाड़ के पीछे जड़े खुद काटता माली
    लुटा जो अपने के हाथों कहाँ उसका ठिकाना है

    बेहतरीन ग़ज़ल,हमेशा की तरह.

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  18. बहुत ही खूबसूरत गजल है....
    आभार्!

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  19. हैं ऊँची बाड़ के पीछे जड़े खुद काटता माली
    लुटा जो अपने के हाथों कहाँ उसका ठिकाना है

    -एक उम्दा गज़ल पढ़कर आनन्द आ गया.

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  20. दरार आये दीवारों का क्या ठिकाना है ...दर्द है तो मगर उबरते देर नहीं लगी ...उठ मन बावरे अब ढूँढना तुझे ठिकाना है ...इस जज्बे को सलाम , प्रणाम ...नमन ...!!

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  21. हैं ऊँची बाड़ के पीछे जड़े खुद काटता माली
    लुटा जो अपने के हाथों कहाँ उसका ठिकाना है ।

    बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना, बेहतरीन पंक्तियों के साथ लाजवाब अभिव्‍यक्ति ।

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  22. नहीं रोके रूकूंगी मैं कि ठोकर पर ज़माना है
    ज़माने से मैं नहीं, मुझ से ज़माना है...


    Bahut hi badhiya is line ne vishesh taur par ek josh sa bhar diya...

    ..Par mujhe apne liye nahi lagi,

    ...mujhe to hamseha yahi lagta hai ki jamana hai to main hun, meri khushiyan hain, mera gum hai.
    Aur jaman nahi to main kuch bhi nahi, magar main nahi to jamana waise hi chalta rahega...
    To jamane ka hona zarrori hai, mere hone ke liye.

    हैं ऊँची बाड़ के पीछे जड़े खुद काटता माली
    लुटा जो अपने के हाथों कहाँ उसका ठिकाना है ।

    Sach main. Aapko miss kar raha tha.

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  23. kya bhav hain, asha bhi, nirasha bhi magar mann ko ashawan baney rakhne ki nasihat, lajawab.

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  24. निर्मला दी,



    ग़ज़ल पढ़कर आनंद आ गया. हर शेर उम्दा है... विशेषकर ठोकर में ज़माना वाला शेर बहुत ही मनभावन लगा और साथ ही आपकी उर्जा का परिचयक भी



    साधू!!

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  25. हैं ऊँची बाड़ के पीछे जड़े खुद काटता माली
    लुटा जो अपने के हाथों कहाँ उसका ठिकाना है

    जीवन के दर्शन को बहुत सुंदर तरीके से उतारा है आपने ............

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  26. बहुत बढ़िया ग़ज़ल की हर लाइन एक सच्चाई बयाँ करती हुई..अच्छा लगा..धन्यवाद निर्मला जी

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  27. बहुत अच्छी ग़ज़ल मैम! जब सर्वत जमाल और मुफ़लिस साब खुद तारीफ़ कर रहे हैं तो मेरी क्या बिसात।

    "जड़ें खुद काटता माली" वाला शेर तो बेमिसाल बना है मैम।

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  28. उनकी जफ़ा पर मेरी वफ़ा कहती है
    ख़ुदगर्ज़ चेहरों पर अब नक़ाब रहने दो


    बहुत ही खूबसूरत रचना है । जितना पढ़ती हूँ दिल में उतरती चली जाती है । बधाई इस सुन्दर अभिव्यक्ति के लिये ।

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