आओ कर लो मेरा वरण 
हे नवजीवन दाता
हे त्रिलोकी विधाता
शुद्ध करो मेरा
अन्त:करण
आओ कर लो मेरा वरण
मेरे अवचेतन मन पर
त्रिश्णाओं स्पर्धाओं का धूआँ
बन जायेगा एक दिन
मेरे विनाश का कूआँ
लगा लो अपनी शरण
आओ कर लो मेरा वरण्
मन को लगी है चोट
मन रही कचोट
छटपटा रहा मन दर्पण
आओ कर लो मेरा वरण
दे दो चेतन प्राण
दे दो दिव्य ग्यान
स्वीकार करो समर्पण
आओ कर लो मेरा वरण
सुसंकल्प जगा दो
सुविग्य बना द
लगाओ मुझे शरण्
आओ कर लो मेरा वरण
हे नवजीवन दाता
हे त्रिलोकी विधाता
आओ कर लो मेरा वरण
शुद्ध करो अन्त:करण

हे नवजीवन दाता
हे त्रिलोकी विधाता
शुद्ध करो मेरा
अन्त:करण
आओ कर लो मेरा वरण
मेरे अवचेतन मन पर
त्रिश्णाओं स्पर्धाओं का धूआँ
बन जायेगा एक दिन
मेरे विनाश का कूआँ
लगा लो अपनी शरण
आओ कर लो मेरा वरण्
मन को लगी है चोट
मन रही कचोट
छटपटा रहा मन दर्पण
आओ कर लो मेरा वरण
दे दो चेतन प्राण
दे दो दिव्य ग्यान
स्वीकार करो समर्पण
आओ कर लो मेरा वरण
सुसंकल्प जगा दो
सुविग्य बना द
लगाओ मुझे शरण्
आओ कर लो मेरा वरण
हे नवजीवन दाता
हे त्रिलोकी विधाता
आओ कर लो मेरा वरण
शुद्ध करो अन्त:करण
अति उत्तम रचना...खासकर संसार और ईश्वर के मध्य की आवाज़
ReplyDeleteutkrisht prabhu prem ko samarpit rachna.........samarpan aisa hi hona chahiye.
ReplyDeleteकितना सुन्दर गीत है. इसे तो गुनगुनाने का मन हो रहा है.
ReplyDeleteसरल, सहज और सुन्दर गीत के लिए बधाई!
ReplyDeleteअति सुन्दर गीत रचने पर बधाई
ReplyDelete-------
तख़लीक़-ए-नज़र
बहुत ही खुबसूरती से अपने मन के भावनाओ को पिरोया है ..........एक बेहद खुब्सूरत गीत.......
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, आभार्
ReplyDeleteuttam samarpan, utkrasht rachna ke liye nirmalaji, badhai.
ReplyDeleteअत्यंत सुंदर गीत. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
वरण का प्रयोग अच्छा है
ReplyDeleteshaj prakar...... sundar bhav......... wah.....
ReplyDeleteछटपटा रहा मन दर्पण
ReplyDeleteआओ कर लो मेरा वरण
दे दो चेतन प्राण
दे दो दिव्य ग्यान
स्वीकार करो समर्पण
आओ कर लो मेरा वरण....
ye lines vishesh taur par acchi lagi.
us nirakar ki bhakti aise hi ho sakti hai !!
अंतःकरण की शुद्धता बाह्यजगत को भी आलोकित करती है.
ReplyDeleteमन सात्विक हो उठा ! समर्पण सहज हो चला और मैं आत्म-विभोर हुआ ............प्रणाम! सादर चरण स्पर्श !
ReplyDeleteअद्भुत, शानदार, भक्ति-प्रेम से सराबोर इस सफल रचना की प्रस्तुति के लिए आभार. आप जिस विषय को कविता में उठाती हैं, जीवंत कर देती हैं...बधाई.
ReplyDeleteप्रभु चरणों में अपना पूर्ण समर्पण!!!
ReplyDeleteआपकी इस रचना को बार बार पढकर अपने अन्तर में सहेजने की कोशिश कर रहा हूँ।
अच्छी रचना.. वाह....
ReplyDeleteइस पुकार का अर्थ या कारण ? !
ReplyDeleteअरे
जब उसने किया मन निर्मल ,
तभी से मन में इक हूक उठी ,
उस से मिलन को रूह कूक उठी ,
छट गए सभी तृष्णाओं स्पर्धाओं के
कुहासे जो फैले थे भ्रम जालों से ,
पगले मन यही तो उसका वरण है,
यही तो वरण है
बहुत दिनों बाद याद किया , वैस मैं भी तो अन्तर-जाल पर ज्यादा घूम नहीं पाता एक आध पर ही जा पाता हूँ शारीरिक और मानसिक थकन दोनों अनुभव करने लगा हूँ |
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है ! बहुत बढ़िया लगा !इस बेहतरीन रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!
ReplyDeleteसुसंकल्प जगा दो
ReplyDeleteसुविज्ञ बना दो
लगाओ मुझे शरण्
आओ कर लो मेरा वरण
कितनी उत्तम कामना है... सुन्दर साधू!!
wah wah nirmala ji...
ReplyDeletevery nice composition..