12 July, 2009

मेरी तलाश (कविता )

मुझे तलाश थी
एक प्यास थी
तुम्हें पाने की
तुम मे आत्मसात हो जाने की
तभी तो
डूबते सूरज की एक किरण को
आत्मा मे संजोये निकली थी
तुम्हें ढूँढने
मैने देखा
कई बडे बडे देवों मुनियों को
किन्हीं अपसराओं मेनकाओं पर
आसक्त होते
तेरे नाम पर लडते झगडते
लूटते और लुटते
तेरे नाम पर
खून की नदियाँ बहाते
aअब कई साधु सँतों की दुकानों पर
तेरा नाम भी बिकने लगा है
फिर मन मे सवाल उठते
तेरी लीलाओं पर
कैसे तुम भरमाते हो
जानती हूँ
मेरी प्यास के लिये भी
तुम नित नये कूयेँ
दिखा देते हो
डूबती नित मगर प्यास
फिर भी शेष रहती
तुम्हें पाने की तुम मे
आत्मसात हो जाने की
इस लिये मैने तुम्हारी सब तस्वीरों को
राम -कृ्ष्ण खुदा गाड
सब को एक फ्रेम मे
बँद कर दिया है
ताकि तुम आपस मे
सुलझ लो और खुद लौट आयी हूँ
अपने अन्तस मे
और यहाँ आ कर मैने जाना की
मुझे तेरे किसी रूप को चेतना नहीं है
बल्कि तुम सब की सी
चेतना को चेतना है
तुझे पूजना नहीं है
तुम सा जूझना है
त्तुम्हें जपना नहीं
तुम सा तपना है
तुम्हारी साधना नहीं
खुद को साधना है
कितना सुन्दर है
धर्म से अध्यात्म का पथ
जहाँ तू मैं सब एक है
और अब मेरी प्यास
शाँत हो गयी है

31 comments:

  1. बड़ी सार्थक है आपकी तलाश.
    अद्भुत रचना.
    आपकी इन कड़ियों का तो जवाब नही बेहद संजीदा ढंग के प्रस्तुत किया आपने..

    तुझे पूजना नहीं है
    तुम सा जूझना है
    त्तुम्हें जपना नहीं
    तुम सा तपना है
    तुम्हारी साधना नहीं
    खुद को साधना है.

    रचना बेजोड़ है..
    बधाई!!!

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  2. खुद को साधने की इस अंतर्यात्रा को प्रणाम
    सारगर्भित रचना

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  3. मन में आस्था और विश्वास जगाती एक उत्कृष्ट रचना।

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  4. aap ko padhna hamesha hi achcha lagta hai ... jadu hai aap ke qalam mein

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  5. मन में, आस्था और विश्वास को चुनौती देती और तोडती एक उत्कृष्ट रचना।

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  6. खुद को तलाश करती.......... अपने आप की पहचानती सुन्दर काव्य कृति है......... प्रभू तो सच में एक माध्यम है जो प्रेरित करता है खुद को समझने को............. सुन्दर रचना

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  7. अब मेरी प्याश शांत हो गयी है,,
    सारी उदिग्नता खो गयी है,,
    सब बिशिस्ट दिख रहा है,,
    सब इष्ट दिख रहा है ,,
    अंतस मेंमें एक तीव्र ध्वनी ,,
    प्रस्फुटित होने लगी है ,,
    अब अन्मिलन से मिलन की,,
    ओरबढ़ रहा हूँ ,,
    हर पल निर्विकार हो रहा हूँ ,,
    तुझमे ही एकीकार हो रहा हूँ
    क्यों की ??
    अब मेरी प्याश शांत हो गयी है ,,,
    प्रणाम माँ आप की कविता की कड़ी चुराने की कोशिस की है माफ़ करना बहुत ही बेहतरीन अंतर्ध्वनि
    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084

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  8. बहुत सुन्दर रचना !

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  9. sabki yahi talaash hai........isi raah ke pathik hain........na jaane kya khoj rahe hain jo milka rbhi nhi milta .......jo hai apne andar hai bas wahin nhi dhoondhte.........ek bahut hi sarthak prernadayi rachna.........khud ko khojne aur paane ka anootha sammishran hai.

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  10. बेहतरीन रचना.....बधाई

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  11. बेहतरीन रचना.....बधाई

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  12. ईश्वर या अल्लाह सब तोतुम ही हो तुम्ही से जन्म लिया और तुम्ही मे विलीन हो जाना है ...........यही तो मेरा लक्ष्य है .....बेहतरीन प्रस्तुति

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  13. pyaas yadi jeevan me ho to me samajhtaa hoo jeevan me sangharsh karne kaa mazaa bad jaataa he/
    achhi lagi aapki rachna.

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  14. एक बहुत ही सुंदर रचना, जिसे बार बार मनन को दिल करता है.
    धन्यवाद

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  15. sunder rachana,ye talash hi jeevan ki niv hai shayad.

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  16. चलिए आपकी तलाश एक सही मुकाम तक जाकर ख़त्म हुई......दुआ करेंगे कई और लोग जो इस प्यास और तलाश में जीवन भर भटकते रहते हैं उन्हें भी यह पथ प्राप्त हो......सुंदर कविता....

    साभार
    प्रशान्त कुमार (काव्यांश)
    हमसफ़र यादों का.......

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  17. त्तुम्हें जपना नहीं
    तुम सा तपना है...
    आस्था को जगती ,सारगर्भित रचना

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  18. निर्मला जी ,

    बहुत - बहुत बधाई एक सशक्त रचना के लिए ....!!

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  19. तुम्हारी साधना नहीं
    खुद को साधना है!

    बहुत ही बेहतरीन रचना प्रस्‍तुति के लिये आभार्

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  20. राम -कृ्ष्ण खुदा गाड
    सब को एक फ्रेम मे
    बँद कर दिया है
    ak sarthak pahal .apne ko dhundhne ki achhai koshish me dhundh hi liya .
    kuch aise hi vichar mere man mebhi aaye hai krpya dekhe .
    dhnywad

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  21. क्या बात कही, सबको इकठ्ठा ही रख दिया.

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  22. बहुत सुन्दर कविता है......बधाई....

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  23. 'कितना सुन्दर है
    धर्म से आध्यात्म का पथ
    जहां तू मैं सब एक हैं'

    - एक सत्य का उदघाटन.

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  24. बहुत पवित्र रचना .. बडी खूबसूरती से लिखा है।

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  25. आदरणीय निर्मला जी ,
    आपकी इस कविता में तो वर्त्तमान यथार्थ,दर्शन,प्रेम,अध्यात्म सभी कुछ है.
    शुभकामनाएं
    पूनम

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  26. मुझे तलाश थी
    एक प्यास थी
    तुम्हें पाने की
    तुम मे आत्मसात हो जाने की
    तभी तो
    डूबते सूरज की एक किरण को
    आत्मा मे संजोये निकली थी
    तुम्हें ढूंढने.....

    सहजने वाली कृति, अच्छी रचना, बधाई।

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  27. बहुत सुन्दर रचना ....
    बधाई!!!

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