02 January, 2009


कविता

मम्मी से सुनी उसके बचपन की कहानी
सुन कर हुई बडी हैरानी
क्या होता है बचपन ऐसा
उड्ती फिरती तितली जैसा
मेरे कागज की तितली में
तुम ही रंग भर जाओ न
नानी ज्ल्दी आओ ना
अपने हाथों से झूले झुलाना
बाग बगीचे पेड दिखाना
सूरज केसे उगता है
केसे चांद पिघलता है
परियां कहाँ से आती हैं
चिडिया केसे गाती है
मुझ को भी समझाओ ना
नानी जल्दी आओ ना
गोदीमेंले कर दूध पिलाना
लोरी दे कर मुझे सुलाना
नित नये पकवान खिलाना
अच्छी अच्छी कथा सुनाना
अपने हाथ की बनी खीर का
मुझे स्वाद चखाओ ना
नानी जल्दी आओ ना
अपना हाल सुना नहीं सकता
बसते का भार उठा नही सकता
तुम हीघोडी बन कर
इसका भार उठाओ ना
नानी ज्ल्दी आओ ना
मेरा बचपन क्यों रूठ गया है
मुझ से क्या गुनाह हुअ है
मेरी नानी प्यारी नानी
माँ जेसा बचपन लाओ न
नानी ज्ल्दी आओ न !!

3 comments:

  1. मेरी नानी प्यारी नानी
    माँ जेसा बचपन लाओ न
    नानी जल्दी आओ न
    नानी तो आ जायेगी पर माँ जैसा बचपन अब आज कल के बच्चे कहाँ महसूस कर पायेंगे ..बहुत अच्छा लिखा है आपने .अमृता का ब्लॉग पढने का शुर्किया :)

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  2. वाह बचपन की कहानी को कविता के रूप में पढ़कर बचपना याद आ गया . बहुत बढ़िया लिखा है . धन्यवाद्.
    महेंद्र मिश्रा
    जबलपुर

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  3. बहुत सुंदर। बहुत ही सुंदर। इसे गा कर सुना

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